सपने सोते नींदे जागे,जाने क्युं अब रातोंं को
किसने समझा,किसने जाना,एकाकी जज्बातोंं को
पुष्पित सारा मधुबन लेकिन,गंध हमारे पास नही
तेरा होना,मेरा होना,यह भी तो एहसास नहीं
एक अधुरा जीवन जैसे झोली लेकर चलते हैं
उदित होना तो सुक्ष्मभर ही,बाकी हर पल ढलते हैं
हम भी तो उपवन का हिस्सा हैं,तुमको क्या मालुम नहीं
छोडो किस्सा मेरा तुम तो,जाने भी दो बातों को
झरे पुष्प भी उठा लिये,छोड दिया क्युं पातो को
किसने समझा...............
उनकी अपनी उलझन,मेरा भी मन पानी सा
बहता जाता बिन मंजिल के,कोई अधुरी कहानी सा
जाने कौन कहां मिलेगा,हम भी,वो भी जाने ना
मीठा हो या खारा जल, एक दरिया मेंं रहते है
पोखर,झीलों,नदियों,तालाबों में बहते है
किस्से,कहानियों को छोडो,जाने भी दो बातों को
प्यास है मुझको भी सागर की, समझो ना हालातो को
किसने समझा...........
क्या उनके जैसा होना मुझकों, जो जीभर गरल पी गये
वैसे भी तो लगता जैसे,हर पल विष ही पीते है
किसकी चिंता किसको होती,सब अपने मेंं जीते है
हदय द्रवित हो,राहे तकता,फिर भी उनके आने का
खुद ही अपने मन को करते जाने क्युं समझाने का
खुद ही खुद को समझाना था,कह दिया तुमसे बातों को
जाने भी दो बातें, छोडो अब मीरा ओ सुकरातो को
किसने समझा...............
सपने सोते नींदे जागे,जाने क्युं अब रातोंं को
किसने समझा,किसने जाना,एकाकी जज्बातोंं को
डॉ.मोहन बैरागी
२७/७/२०१६