Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, November 23, 2016

नैनो की देहरी पर आंसू की अठखेलियां
झुर्रिया सारी चेहरे की,आँखों की पहेलियां
शुष्क पत्तो सा आसमां,दरख्तों से घिरा
फिर कौन उमड़ घुमड़ कर रहा सरफ़ीरा
बून्द बून्द हे प्यासी,बादलो में भी उदासी
होठो पर बरस दर बरस असाढ़ सा जीवन
जाने मैंने किसको क्या दिया,क्या ले लिया
झुर्रिया सारी चेहरे.......
@डॉ मोहन बैरागी

Thursday, November 3, 2016

कविता गोष्ठी में हमारी भी कविता
लघुकथाकार संतोष सुपेकर जी के निवास पर आयोजित एक कविता/लघुकथा गोष्ठी में हमने भी अपनी कविता पड़ी,जिसको सभी ने सराहा और आशीर्वाद दिया। अवसर था वरिष्ठ लघु कथाकार श्री राम यतन यादव जी के स्वागत का तथा कविता व् लघुकथा पर उनके विचार जानने का।इस आयोजन के निमित्त संतोष सुपेकर रहे।गोष्ठी में व्यंगकार राजेंद्र देवधरे दर्पण,प्रभाकर शर्मा,गड़बड़ नागर, कोमल वाधवानी व् संतोष सुपेकर तथा श्री राम यतन यादव ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
आभार राजेंद्र देवधरे दर्पण ने माना।
मेरी कविता की कुछ पंक्तिया आपके लिए भी.....
अपनी प्रतिक्रिया से बताइयेगा जरूर,ताकि फिर इसको देशभर में आगे भी पड़ सकू।
…................................................................
जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सूरज के ,पर अंधियारे लूट गए
धुप बराबर पूरी चोखट,फिर क्यों आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारो पर पपड़ी देखि,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते सूरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु में उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रुकते,चलते-चलते,कितने किस्से आधे ही छूट गए
सपने थे सब सूरज के,पर अंधियारे लूट गए
जीवन के झंझावातों.............


Wednesday, November 2, 2016

नीर बन के नयन से निकलते रहे
झूठे ख्वाब जैसे आँखों में पलते रहे
सूर्य थे,जिंदगी के तुम,आभा तुमसे ही थी
पीर देकर हमें,रात दिन क्यों छलते रहे
@डॉ मोहन बैरागी
Copyright

Monday, October 24, 2016

मेरे एक और नये श्रृंगार गीत की कुछ पंक्तियां...
आप जांचिये और अपनी प्रतिक्रिया भी दिजिये
लाईक के साथ कुछ लिखेगें भी तो अच्छा लगेगा
पास आओ हमारी सुनो तो सही
दर्द का तुम पता पुछते क्यु नहीं
01.
जब हदय की शिराएं करे वेदना
अश्रु आकाश भर जब धरा पर बहे
जब हिमालय भी पीड़ा को सह न सके
मन निराश्रित सा होकर कहे बस यही
पास आओ हमारी सुनो.....
@Copyrite
डॉ.मोहन बैरागी

Sunday, October 23, 2016

में कथानक उस कथा का जिसमे तेरी याद हो
लाज का घूँघट का सजा,मेहंदी लगे और हाथ हो
उर में अंगारो की ज्वाला,देह धधकाती रही
धर अधर पर मन की तृष्णा,प्रेम धुन गाती रही
व्याकरण बदले नयन के,द्वार बंद होने लगे
पुष्प भी ज्यूँ शूल जैसे ,अनवरत चुभोने लगे
तब लगा जैसे कही पर फिर हुयी बरसात हो
में कथानक उस कथा का......
मखमली एहसास तुम्हारे मुझको बांधे यार
दर्पण में मैं खुद को देखु,जाने कितनी बार
01.गंध का मुधबन में फेरा,भ्रमर का कलियों पे डेरा
पंछी कोई आकाश में,बादल जो भटके प्यास में
जुगनू से बाते करता,अब में सारी रातों में
अंधियारों में देख उजाले,हंस दू,
कभी में गा लूं,कोई गीत मल्हार
मखमली एहसास तुम्हारे.....

Tuesday, October 11, 2016

मेरे एक और श्रंृगार गीत की कुछ पंक्तियां
आप भी पढिय़े,अच्छा लगे तो बताईयेगा जरूर...
(हिन्दी साहित्य के अनुरूप नहीं है,पर अच्छी लगेगीं)

मखमली एहसास तुम्हारे मुझको बांधे यार
दर्पण में मैं खुद को देखु,जाने कितनी बार

01.गंध का मुधबन में फेरा,भ्रमर का कलियों पे डेरा
पंछी कोई आकाश में,बादल जो भटके प्यास में
जुगनू से बाते करता,अब में सारी रातों में
अंधियारों में देख उजाले,हंस दू,
कभी में गा लूं,कोई गीत मल्हार
मखमली एहसास तुम्हारे.....
ञ्चष्टशश्च42ह्म्द्बह्लद्ग
डॉ.मोहन बैरागी
व्हाट्सअप-9424014366

Monday, September 12, 2016

जिंदगी रेत की मानिंद फिसलती होगी
दरकते रिश्तों से दृग धार निकलती होगी
तिनका तिनका बिखरा कुनबा सारा क्यूं..
ठेस बुजूर्गो के दिल को भी तो लगती होगी।
डॉ.मोहन बैरागी
पत्तीयों का रंग हरा,क्यू पीत सा यूं हो गया
नजरें तेरी बदल गयी,प्रतीत सा यूं हो गया
ठहरी हुयी सी झील थी,कहां से ज्वार आ गया
पानी में खार आ गया,पानी में खार आ गया
पानी में खार......
डॉ.मोहन बैरागी
मेरी कविता के कुछ अंश आप भी पढि़ये......
जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
धुप बराबर पुरी चौखट,फिर क्यु आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जीवन के झंझावातों में.................
डॉ मोहन बैरागी
मेरी एक और कविता के कुछ अंश आप भी पढ़िये......
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
भोर के सुरज उजाले बाटतें हर सु फिरे
पर्वतो,पदियो,मरूथल या के जंगल से घिरे
बाद आती हे चमक भी,किरणो के आकार पर
सूद जैसे चढ गया खुद,कोई साहूकार पर
फिर उजाले बांटते,जब तुमसे रोशन हो जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
वो किसी आंगन की तुलसी,द्वारा का सतिया वही
होठ से तो कुछ ना बोले,आॅंखो से बतिया वही
मंदिरों की घंटियों के स्वर सरीखी तान वो
अक्षतों,कुमकुम वही,ओर आरती की थाल वो
रोशनी खुद तुमसे लेकर,दीप भी जल जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
डाॅ.मोहन बैरागी
09424014366
तुम धरा मैं गगन,हो नहीं जाउंगा
फिर पुकारोगी तब, मैं नही आउंगा
बांस ही का न टुकडा,यु समझो मुझे
चुम लोगी अधर से,तो गीत ही गाउंगा....
डॉ. मोहन बैरागी
मेरे एक गीत की कुछ और पंक्तिया आपके लिए....
तुम भाव प्रणय की प्रथम परीक्षा
हमारे मन को सता रही हो,
वो सांसे उथली,वो सांसे गहरी
पथिक खडा जो हमारी देहरी
हदय समर्पण किया हदय से
नदी जो आ के नदी में ठहरी
गरजती बिजली,बसरते बादल
गगन में जैसे घटा रही हो
तुम भाव प्रणय की ......
डॉ. मोहन बैरागी
तुम धरा मैं गगन,हो नहीं जाउंगा
फिर पुकारोगी तब, मैं नही आउंगा
बांस ही का न टुकडा,यु समझो मुझे
चुम लोगी अधर से,तो गीत ही गाउंगा....
डॉ. मोहन बैरागी
जाने क्यूं हर मुश्किल का हल नहीं मिलता
व्याधियों के लिए अब गंगाजल नही मिलता
इश्क,मुहब्बत किस्से हैं,अतीत के ये सब,
अब मुमताज, ताजमहल भी नहीं मिलता 
डॉ.मोहन बैरागी

Sunday, September 11, 2016


रिश्तों में बढती दुरियों पर मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां
रिश्तों में क्यु खारापन है
संवादों में भी अनबन है
जाने कैसी ये उलझन है
बोली में क्यू पैनापन है
दरका दरका सा दर्पन है.......
01.
सारे रिश्ते तपती रेती
लगता जैसे बंजर खेती
कैसे फसले लह लहाएं
हरियाली अब कैसे आएं
जाने कब बरसेंगे बादल
कैसे मन की प्यास बुझाए
अंधियारा हे बहुत यहां
और रात गहन है
रिश्तों में क्यु खारापन है.......
मोहन बैरागी 

Monday, September 5, 2016

शिक्षक ब्रम्हाण्ड की धुरी है। शिक्षक से ही सर्वथा श्रृेष्ठ समाज का निर्माण होता है। सर्वपल्ली राधा$कृष्णन के जन्म दिवस 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक दिन,उस महान व्यक्तिव को याद करने के लिए विशेष रूप से निर्धारित कर लिया गया,गौरव की बात है। परंतु शिक्षक के लिए जो एक सभ्य सुसंस्कृत तथा शिक्षित व्यक्ति एंव फिर उससे सभ्य समाज का निर्माण करता है,उसके लिए एक ही दिन को क्यों निर्धारित कर लिया गया है? क्या शिक्षक सिर्फ एक ही दिन सम्मान का हकदार है? हालांकि भारतीय परंपरा मैं गुरू पुर्णिमा को भी गुरूजन का सम्मान किया जाता है। विभिन्न संस्कृतियों वाले उत्सवधर्मी भारत देश में ही एैसी परंपरा है कि शिक्षक को वर्ष में दो बार सम्मानित किया जाता है। गुरू तथा शिष्य अथवा शिक्षक और छात्र के संबंधों की परंपरा भी अतिप्राचीन है। परंतु वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में देश में विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के शिक्षक न केवल शिक्षा देने का कार्य करते है अपितु उन्हें अन्य कार्याे जैसे- कॉपी जॉंचना,सेमेस्टर की तैयारी करना,चुनावों ड्युटी,प्रशासनिक कार्य,जनगणना आदि अनेक काम में लगा दिया जाता है जिससे शिक्षा के स्तर कां नि:संदेह ह्स हो रहा है,तथा शिक्षक अपने विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में असमर्थ से दिखाई पड़ते है। आवश्यकता शिक्षक को पुर्णत: शिक्षा पर एवं छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देने की है जिसके लिए सरकारी तौर पर एैसी व्यवस्थाएं हो कि शिक्षक को सिर्फ और सिर्फ शिक्षण प्रशिक्षण के कार्य ही दिये जाए,जिससे हर शिक्षक श्रृेष्ठ तथा उसका हर शिष्य सर्वश्रृेष्ठ बन सके। सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की अनेक शुभकामनाएं व चरणवंदन।
डॉ.मोहन बैरागी

Monday, August 29, 2016

मेरा एक बड़ा गीत जिसकी कुछ पंक्तिया आपकी चेतना के लिए......
जो महसुस ना हो, वो एहसास नही चाहिये
जहां पंख से उड़ न सकु, वो आकाश नही चाहिये
कच्चे पक्के रिश्ते जैसे, रोज उघड़ते,रोज बिगड़ते
होठों,गालों,आखों,काजल से तो प्रेम नही हो जाता
प्रेम प्यार का मंदिर है तो,फिर मंदिर में पुजा ही हो
क्युकि मुझको बंद पलको का विश्वास नही चाहिये
जो महसुस ना हो...........
कसमे वादे रिश्तों का आधार यहां पर होते
मीरा मोहन,राम सिया के रिश्ते भी आकार यहीं पर लेते
तिमिर में जो खो गये,उन संबंधों को ढुंढो मत
जिसमें कुछ दिखाई ना दे,ऐसा प्रकाश नही चाहिये
जो महसुस ना हो..........
धड़कने जब नहीं,तो फिर आयु ही क्या
पंख जब ना हो,तो जटायु ही क्या
जानते है कि मरके कोई जीता नहीं
कोई संग ना हो,तो होने का आभास नही चाहिये
जो महसुस ना हो........
डॉ.मोहन बैरागी
@copyright
तुम धरा मैं गगन,हो नहीं जाउंगा
फिर पुकारोगी तब, मैं नही आउंगा
बांस ही का न टुकडा,यु समझो मुझे
चुम लोगी अधर से,तो गीत ही गाउंगा....
डॉ. मोहन बैरागी

Wednesday, August 17, 2016

मेरी एक और कविता के कुछ अंश ......
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
भोर के सुरज उजाले बाटतें हर सु फिरे
पर्वतो,पदियो,मरूथल या के जंगल से घिरे
बाद आती हे चमक भी,किरणो के आकार पर
सूद जैसे चढ गया खुद,कोई साहूकार पर
फिर उजाले बांटते,जब तुमसे रोशन हो जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
वो किसी आंगन की तुलसी,द्वारा का सतिया वही
होठ से तो कुछ ना बोले,आॅंखो से बतिया वही
मंदिरों की घंटियों के स्वर सरीखी तान वो
अक्षतों,कुमकुम वही,ओर आरती की थाल वो
रोशनी खुद उनसे
हम खयालों में भी अक्सर..........
लेकर,दीप भी जल जाते है
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है

डाॅ.मोहन बैरागी

Tuesday, August 16, 2016

जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
धुप बराबर पुरी चौखट,फिर क्यु आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जीवन के झंझावातों में.................
डॉ मोहन बैरागी

Wednesday, August 10, 2016

हिन्दी: लोक भाषा से लेकर राष्ट्रभाषा तक
मनुष्य में भाषा की समझ अपने परिवार तथा परिवेश से आती है। भाषा एवं संस्कार साथ साथ विकसित व संवर्धित होते है,जिस वातावरण,में मनुष्य जन्मता है उसी के अनुरूप उसमें संस्कार और भाषा का भी विकास होने लगता है तथा धीरे धीरे वह अपने परिवेश की बोली को बोलने लगता है जो बाद में जाकर हिंदी या अंग्रेजी के रूप में बदलकर विकसित हो जाती है। भारत के इतिहास में भाषा के विकास में बोलियों का महत्वपुर्ण योगदान है।
यहां ४०० से ज्यादा बोलियां और हिंदी तथा अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाएं भी बोली जाती है। भारत में सत्तर के दशक  के बाद से हिंदी के विकास ने जोर पकडा। भारत के संविधान ने २३ भाषाओं को मान्यता दी है, २००१ की जनगणना के अनुसार भारत में ४५ प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है जिनमें से सिर्पहृ २५ प्रतिशत आबादी एैसी है जिसकी मातृभाषा हिंदी है,बाकी के २० प्रतिशत की मातृभाषा कुछ और है। इससे पुर्व १९९१ की जनगणना में ३९ प्रतिशत लोग ही हिंदी भाषी थे। स्वतंत्रता से पुर्व भारत में हिंदी और उर्दू बोली व लिखी जाती थी,विंहृतु अंग्रेजों ने भारत छोडने से पुर्ण हिंदी और उर्दु को इस आधार पर अलग अलग करके गये कि उर्दु मुल रूप से अरबी लिपी से निकल कई आई है तथा हिंदी संस्कृत के तत्सम और तत् भव से विकसित हुई।
भाषा का विकास हमारे भाव और स्वभाव में अंतर्निहित है,हमे अपने घर परिवार में बोली जाने वाली बोलियों का उपयोग करते हुए समाज से रूबरू होते है। तथा विकसित भाषा का प्रयोग करते है। यह मनुष्य के स्वभाव पर निर्भर करता है कि वह किस भाषा का प्रयोग अपने विचारो के प्रगटीकरण के लिए करता है। भारत में आज भी दक्षिण तथा पश्चिम के कुछ राज्यों में क्षैत्रिय बोलियां ही बोली तथा लिखी व समझी जाती है। भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली बांग्ला तथा दुसरे नंबर पर मराठी है। यहीं बोलियां हमारे भीतर अपने विचारों को व्यक्त करने का माध्यम बनती है तथा शनै शनै विकसित होकर भाषा का रूप ले लेती है और यही भाषा दुर सुदुर तक यात्रा करती है। वर्तमान परिदृश्य में हिंदी भाषा ने भी अमेरिका से लेकर अप्रहृीका तथा चाईना व जापान से लेकर अन्य खाड़ी देशो की यात्रा की है तथा वहां भी हिंदी को बोला व समझा जाता है। लेकिन चिंता इस बात की है कि वैश्विक स्तर पर जिस धीमी गति से हिंदी ने यात्रा की है उतनी ही तीव्र गति से अब इसका रूपांतरण भी होता जा रहा है। इसको सहेजने के लिए सिंतबर माह की १४ तारीख को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है तथा गत वर्ष सितंबर में १० से १२ सितंबर २०१५ को भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।
जहां हिंदी पर अपनी चिंता जताने सारे विश्व के लोग एकजुट हुए और हिंदी की स्थिति पर चिंतन मनन किया। परंतु हिंदी का विकास और हिंदी को सार्वभौम भाषा बनाने और स्थापित करने के लिए स्वयं से शुरूवात करना होगी। आज हिंदी के स्वरूप में को हमने स्वयं ही बदल दिया है तथा उसमें अन्य भाषा के शब्दों को मिला कर मिलीजुली हिंदी बोलने लगे है। हिंदी के लिए देश में बडे बडे विश्वविद्यालय खुल गये है किंतु हिंदी सिर्फ पाठ्यक्रमों में लिखाई पढाई जाती है। हमारा स्वभाव तो हिंग्लिश का हो गया है,जिसमें हम हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी के भी शब्दो का प्रयोग करने लगे है। जैसे- अब हम आपके घर कार में ही आऐंगे,या अब तो नहाने के लिए गीजर की आवश्कता होने लगी है अथवा नल आएगा तो पानी भर लेना।
यहां भाषा के विकास के साथ नयी गढ़ती भाषा को नजर अंदाज नही किया जा सकता,सामान्यतः हर बार व्यक्ति बोलने से पहले हिंदी के परंपरागत शब्दों को ढुंढने की बजाय वैकल्पिक तथा आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले शब्दो का प्रयोग कर भाषा का संचार करता है। इस पर हिंदी के लिए समर्पित लोगो का मानना है कि हिंदी का क्षरण होता जा रहा है तथा हिंदी नष्ट हो रही है।लेकिन ये हिंदी के बदलाव है जो सामान्य व्यवहार तथा बोलचाल में उपयोग होने लगे है। हां यह भी सही है कि हिंदी में अंग्रेजी एवं उर्दु तथा अन्य भाषा के अधिकतम शब्दों के प्रयोग या उपयोग से हिंदी की अपनी पहचान खोने का भी डर है परंतु इसके लिए हिंदी को सरल और सुगम बनाना होगा जिससे वह हर इंसान के संवाद संप्रेषण की भाषा बन सके। इसके विपरीत यह अलग बात है कि हिंदी दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी भाषा है तथा दुनिया के ४५ करोड लोग इस भाषा में संप्रेषण करते है,वहीं अंग्रेजी तीसरे नंबर पर आती है,लेकिन अग्रेजी का प्रभाव इसलिए भी ज्यादा पड़ता है क्युंकि यह दुनिया के ७५ देशों के कामकाज की आधिकारिक भाषा है तथा हिंदी सिर्फ भारत सहित एक अन्य देश के कामकाज की भाषा है। आजादी के बाद से यह फल फुल रही है तथा लोकभाषा से आगे चलकर राष्ट्रभाषा का स्वरूप अपना रही है।
डाॅ.मोहन बैरागी
जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार
संपादक:- अक्षर वार्ता मासिक षोध पत्रिका
एवं सांध्य दैनिक अक्षर वार्ता समाचार पत्र
पताः- 43,क्षीर सागर,द्रविढ मार्ग,उज्जैन,मप्र.
फोन:- 0734-2550150
मोबा:- 8989547427
ई मेल:-drmohan128@gmail.com

Sunday, July 31, 2016

मन शरारती हे मन शरारती
तुम्हे ही तुम्हे ही ,बस तुम्हे ही, मोहब्बते पुकारती
मन शरारती,,,,,,,,
तितलियों सी शोखियां वो बांकपन
और ज़रा सी ज़ालिम अदा
बस तुझे ही बस तुझे ही देखे सभी
हो रहे हे देखो फ़िदा
पर मेरी नजर को तेरी नजर बस रहे निहारती
हे मन शरारती हे मन शरारती
,,,,,,,,,,
तुम गणित के शुन्य सी हो श्रंखला
और सभी हे बारहखड़ी
अग्र भाग पश्च भाग जिसमे लगो
उसकी कीमते घटी बड़ी
आँखों में नशा, होठों में नमी
क्या अदा हे मेरे यार की
हे  मन शरारती हे मन शरारती
,,,,,,,,,
मीत बन के प्रीत से तुम आओ ना
मन मेरा ये राहे तके
हे प्रणय के हे प्रणय के दिल में मेरे
कितने ही अरमा जगे
रोम रोम से धरा से व्योम से
हे सदा पुकारती ........
शरारती शरारती हे मन शरारती
तुम्हे ही तुम्हे ही, बस तुम्हे ही मोहब्बते पुकारती
मन शरारती हे मन शरारती

डॉ मोहन बैरागी
31/7/2016

Wednesday, July 27, 2016

सपने सोते नींदे जागे,जाने क्युं अब रातोंं को
किसने समझा,किसने जाना,एकाकी जज्बातोंं को

पुष्पित सारा मधुबन लेकिन,गंध हमारे पास नही
तेरा होना,मेरा होना,यह भी तो एहसास नहीं
एक अधुरा जीवन जैसे झोली लेकर चलते हैं
उदित होना तो सुक्ष्मभर ही,बाकी हर पल ढलते हैं
हम भी तो उपवन का हिस्सा हैं,तुमको क्या मालुम नहीं
छोडो किस्सा मेरा तुम तो,जाने भी दो बातों को
झरे पुष्प भी उठा लिये,छोड दिया क्युं पातो को
किसने समझा...............

उनकी अपनी उलझन,मेरा भी मन पानी सा
बहता जाता बिन मंजिल के,कोई अधुरी कहानी सा
जाने कौन कहां मिलेगा,हम भी,वो भी जाने ना
मीठा हो या खारा जल, एक दरिया मेंं रहते है
पोखर,झीलों,नदियों,तालाबों में बहते है
किस्से,कहानियों को छोडो,जाने भी दो बातों को
प्यास है मुझको भी सागर की, समझो ना हालातो को
किसने समझा...........

क्या उनके जैसा होना मुझकों, जो जीभर गरल पी गये
वैसे भी तो लगता जैसे,हर पल विष ही पीते है
किसकी चिंता किसको होती,सब अपने मेंं जीते है
हदय द्रवित हो,राहे तकता,फिर भी उनके आने का
खुद ही अपने मन को करते जाने क्युं समझाने का
खुद ही खुद को समझाना था,कह दिया तुमसे बातों को
जाने भी दो बातें, छोडो अब मीरा ओ सुकरातो को
किसने समझा...............

सपने सोते नींदे जागे,जाने क्युं अब रातोंं को
किसने समझा,किसने जाना,एकाकी जज्बातोंं को

डॉ.मोहन बैरागी
२७/७/२०१६

Monday, July 11, 2016

गोवा या गोआ
(कोंकणी: गोंय), क्षेत्रफल के
हिसाब से भारत का सबसे छोटा और जनसंख्या के हिसाब से चौथा सबसे छोटा राज्य है। पूरी दुनिया में गोवा अपने खूबसूरत समुंदर के किनारों और मशहूर स्थापत्य के लिये जाना जाता है। गोवा पहले पुर्तगाल का एक उपनिवेश था। पुर्तगालियों ने गोवा पर लगभग 500 सालों तक शासन किया और दिसंबर 1961 में यह भारतीय प्रशासन को सौंपा गया।
महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गाय चरानेवालों के देश के रूप में मिलता है। दक्षिण कोंकण क्षेत्र का उल्लेख गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है। संस्कृत के कुछ अन्य पुराने स्त्रोतों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता है। गोवा को बाद में कहीं कहीं गोअंचल भी कहा गया है। अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन औरगोमंत प्रमुख हैं। टोलेमी ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है। अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद मे उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया।
जनश्रुति के अनुसार गोवा जिसमें कोंकण क्षेत्र भी शामिल है (और जिसका विस्तार गुजरात से केरल तक बताया जाता है) की रचना भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक यज्ञ के दौरान अपने बाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोवा में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं। उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है।
वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही प्रकृति गोवा को कुछ ऐसा ही अलग, लेकिन अदभुत स्वरूप प्रदान करती है। यह स्थान शांतिप्रिय पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को बहुत भाता है। गोवा में छोटे-बड़े लगभग 40 समुद्री तट है। इनमें से कुछ समुद्र तट अंर्तराष्ट्रीय स्तर के हैं। इसी कारण गोवा की विश्व पर्यटन मानचित्र के पटल पर अपनी एक अलग पहचान है।
गोवा के मनभावन बीच की लंबी कतार में पणजी से 16 किलोमीटर दूर कलंगुट बीच, उसके पास बागा बीच, पणजी बीच के निकट मीरामार बीच, जुआरी नदी के मुहाने पर दोनापाउला बीच स्थित है। वहीं इसकी दूसरी दिशा में कोलवा बीच ऐसे ही सागरतटों में से है जहां मानसून के वक्त पर्यटक जरूर आना चाहेंगे। यही नहीं, अगर मौसम साथ दे तो बागाटोर बीच, अंजुना बीच, सिंकेरियन बीच, पालोलेम बीच जैसे अन्य सुंदर सागर तट भी देखे जा सकते हैं।
पुर्तगाली शासन के आधीन रहने के कारण यहाँ यूरोपीय संस्कृति का प्रभाव बहुत महसूस होता है। गोवा की लगभग 60त्नप्रतिशत जनसंख्या हिंदू और लगभग 28 प्रतिशतत्न जनसंख्या ईसाई है। गोवा की एक खास बात यह है कि, यहाँ के ईसाई समाज में भी हिंदुओं जैसी जाति व्यवस्था पाई जाती है।
गोवा के दक्षिण भाग में ईसाई समाज का ज्यादा प्रभाव है लेकिन वहाँ के वास्तुशास्त्र में हिंदू प्रभाव दिखाई देता है। सबसे प्राचीन मन्दिर गोवा में दिखाई देते है। उत्तर गोवा में ईसाइ कम संख्या मे हैं इसलिए वहाँ पुर्तगाली वास्तुकला के नमूने ज्यादा दिखाई देते है।
संस्कृति की दृष्टि से गोवा की संस्कृति काफी प्राचीन है। 1000 साल पहले कहा जाता है कि गोवा "कोंकण काशी" के नाम से जाना जाता था। हालाँकि पुर्तगाली लोगों ने यहाँ के संस्कृति का नामोनिशान मिटाने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन यहाँ की मूल संस्कृति इतनी मजबूत थी की धर्मांतरण के बाद भी वो मिट नही पाई।
कमीशनखोरी के अडडे अस्पताल,बिगडती सेहत,मरीजों के बुरे हाल

नजी अस्पतालों ने छोड रखे है दलाल,मरीजों को लाने पर देते है मोटा कमीशनदवा से लेकर पैथालाजी की जांचे व डाक्टरों के कमीशन तय होते है

अक्षर वार्ता/डॉ.मोहन बैरागी/उज्जैन। नये शहर स्थित गुरुनानक अस्पताल में शनिवार को अस्पताल में बुलाकर चन्द्रावतीगंज निवासी गोपाल शर्मा की पीटपीट कर हत्या कर दी गई। मारपीट करने वाले अस्पताल के मेनेजर सहित आधा दर्जन आरोपियों पर माधवनगर थाना में प्राणघातक हमले सहित हत्या का प्रकरण दर्ज किया गया है।जानकारी के अनुसार गोपाल को अस्पताल के कर्मचारियों ने लटठ व पाईप से इतना मारा की उसकी मौत हो गई। जानकारी के अनुसार अस्पताल में मरीजों को लाने की दलाली और चोरी के कारण गुरुनानक अस्पताल के कर्मियों ने गोपालको अस्पताल बुलाकर मारपीट कर हत्या कर दी। 
 अभ् ाी संभ् ााग के सबसे बड़े अस्पलात चरक सुर्खियों में था ही कि एक और अस्पताल ने दलाली के चक्कर मे  एक आदमी की जान ले ली। और इस बार अस्पताल प्रबंधन ने इसे खुद अस्पाल में बुलाकर इतना पीटा की इसकी जान ही चली गयी। जहां मौत के मुंह से निकालकर जीवन देने की जगह हो वहीं बुलाकर मौत दे दी जाये तब क्या कहा जाय। शहर के हर अस्पताल ने अपने अपने दलाल बाजार में छोड़ रखे है जो मरीजो को कम खर्च में अच्छे इलाज का बहाना बनाकर इन अस्पतलों ले जाते है जिसके एवज में इन्हे तगड़ा कमीशन मिलता है। आगर रोड़ का सरकारी अस्पताल,चरक अस्पताल,माधव नगर का सरकारी अस्पताल एैसी जगह है जहां दलाल सक्रीय होकर घुमते रहते है तथा बाहर से आने वाले मरीज के परिजनो से दोस्ती कर निजी नर्सिंग होग में अच्छे इलाज करवाने का भ् ारोसा देकर यहां से ले जाते है। दलाली का यह धंधा इस कदर पनप रहा है कि सभ् ाी बड़े निजी नर्सिंग होम ने मरीजो को लाने पर कमीशन तय कर रखे है। बाद में इन बीमारों से मंहगी जांचे,दवांईयों के नाम पर हजारो-लाखों  रुपये ले लिये जाते है। सुत्रों की माने तो शहर में करीब २०० से ज्यादा दलाल सक्रीय है जिनमें सरकारी और निजी अस्पतालों के कर्मचारी सहित,छोटी कालोनियों में प्रेक्टिस करने वाले नकली डॉक्टर भ् ाी शामिल है।  सेहत के दलाल,बड़े बड़े अस्पताल इन दिनों खुब चांदी काट रहे है। मरीजों की जान से जाय तो जाये इन्हे अपनी तिजोरी भ् ारने से मतलब होता है।
ये जगह जहां दलाल सक्रिय
मरीजों की सेहत से खेलने वाले दलाल शहर में कई स्थानों पर सक्रिय है तथा ग्रामीण इलाकों से आये भ् ाोले भ् ााले लोगो को झांसा देकर निजी अस्पतालों मे ले जाते है जहां अच्छे इलाज के नाम पर हजारो लाखों रुपये लुट लिये जाते है। शहर में इस तरह के दलालों ने अपने स्थाई अडडे बना रखे है जहां ये देखकर समझ जाते है कि आदमी अस्पताल जाने वाला है। शहर के ये अडडे, रेलवे स्टेशन,देवास गेट बस स्टेण्ड,जिला चिकित्सालय,चामुण्डा माता चौराहा,बहादुर गंज,चरक के बाहर, माधव नगर अस्पताल,चेरीटेबल अस्पताल तथा आर डी गार्डी के बाहर आदि।
निजी अस्पतालों ने पैदा किये दलाल
निजी अस्पतालों ने व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा और अस्पताल चलाने के लिए शहर में मरीज लाने के लिए शहर के अंदर ही नहीं वरन आस पास के ग्रामीण इलाकों में भ् ाी दलाल पैदा कर दिये है। ये दलाल अपने कमीशन के चक्कर में भ् ाोले भ् ााले ग्रामिणों को बहलाकर इन अस्पतालों में ले आते है जहां ईलाज के नाम पर मरीज के परिजनों से हजारों लाखों रुपये ले लिये जाते है,जिसमें अस्पताल का शुल्क,डॉक्टर का शुल्क,दवाईयां आदि का खर्च ही होता है। इन निजी अस्पतालों ने मेडिकलस्टोर संचालकों से लेकर आस पास के गांवों में व छोटी कालोनियों में बैठे नकली डॉक्टरों को भ् ाी दलाल के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।
अस्पताल में हर चीज का कमीशन
एक बार मरीज के परिजन यदि मरीज को अस्पताल में एडमिट कर देते है उसके बाद तो खर्चे को कोई पैमाना नही है। क्युंकि कैसा भ् ाी मरीज हो इन अस्पतालों में हर मरीज को इन्वेस्टीगेशन करवाना पडती है। बहुत सारी जांचे तो इन अस्पतालोंं में ही हो जाती है जिनमें नाम मात्र का खर्च आता है लेकिन मरीज के परिजनों से उसके जी हजारों रुपये  वसुल लिये जाते है। जो जांचे इन अस्पतालों में नहीं हो पाती उन्हे ये अस्पताल अपने जान पहचान के पेथालाजी में भ् ोजते है जहां से तगड़ा कमीशन अस्पताल व डाक्टर को मिलता है। इस पर भ् ाी खास बात यह कि इन जांचों को करने वाले अप्रशिक्षीत टेक्निशियन होते है और पेथोलोजिस्ट के हस्ताक्षर से जांच रिपोर्ट जारी हो जाती है,जिसके सटीक होने पर संदेह होता है। अभ् ाी हाल ही में एक होटल व्यवसायी के पुत्र को एक जांच केन्द्र पर अपेडिक्स बताया गया तथा दुसरी जगह नार्मल बताया गया। हद तो तब है जब कमीशन के चक्कर में शहर में कई पैथालाजी सेंटर टेक्निशियनों द्वारा ही संचालित किये जा रहे है,और पेथालाजिस्ट डाक्टर को कमीशन देकर जांच पर साईन करवा लिये जाते है।
मेडिकल एक्ट की अनदेखी
सभ् ाी निजी नर्सिंंग होग शासन के मेडिकल प्रेक्टिशनर व नर्सिंग होम एक्ट के नियमों के विपरित चल रहे है। शासन के नियमानुसार कोई  भ् ाी डॉक्टर व नर्सिंग होम विज्ञापन नही कर सकते है लेकिन इन डॉक्टरों व नर्सिंग होम के बड़े बड़े विज्ञापन अखबारों व शहर में होर्डिंगों पर नजर आते है। जाहिर हे ये सब स्वास्थ्य विभ् ााग के आला अधिकारियों की शै के बिना नहीं हो सकता।