Dr.Mohan Bairagi

Monday, August 29, 2016

मेरा एक बड़ा गीत जिसकी कुछ पंक्तिया आपकी चेतना के लिए......
जो महसुस ना हो, वो एहसास नही चाहिये
जहां पंख से उड़ न सकु, वो आकाश नही चाहिये
कच्चे पक्के रिश्ते जैसे, रोज उघड़ते,रोज बिगड़ते
होठों,गालों,आखों,काजल से तो प्रेम नही हो जाता
प्रेम प्यार का मंदिर है तो,फिर मंदिर में पुजा ही हो
क्युकि मुझको बंद पलको का विश्वास नही चाहिये
जो महसुस ना हो...........
कसमे वादे रिश्तों का आधार यहां पर होते
मीरा मोहन,राम सिया के रिश्ते भी आकार यहीं पर लेते
तिमिर में जो खो गये,उन संबंधों को ढुंढो मत
जिसमें कुछ दिखाई ना दे,ऐसा प्रकाश नही चाहिये
जो महसुस ना हो..........
धड़कने जब नहीं,तो फिर आयु ही क्या
पंख जब ना हो,तो जटायु ही क्या
जानते है कि मरके कोई जीता नहीं
कोई संग ना हो,तो होने का आभास नही चाहिये
जो महसुस ना हो........
डॉ.मोहन बैरागी
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तुम धरा मैं गगन,हो नहीं जाउंगा
फिर पुकारोगी तब, मैं नही आउंगा
बांस ही का न टुकडा,यु समझो मुझे
चुम लोगी अधर से,तो गीत ही गाउंगा....
डॉ. मोहन बैरागी

Wednesday, August 17, 2016

मेरी एक और कविता के कुछ अंश ......
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
भोर के सुरज उजाले बाटतें हर सु फिरे
पर्वतो,पदियो,मरूथल या के जंगल से घिरे
बाद आती हे चमक भी,किरणो के आकार पर
सूद जैसे चढ गया खुद,कोई साहूकार पर
फिर उजाले बांटते,जब तुमसे रोशन हो जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
वो किसी आंगन की तुलसी,द्वारा का सतिया वही
होठ से तो कुछ ना बोले,आॅंखो से बतिया वही
मंदिरों की घंटियों के स्वर सरीखी तान वो
अक्षतों,कुमकुम वही,ओर आरती की थाल वो
रोशनी खुद उनसे
हम खयालों में भी अक्सर..........
लेकर,दीप भी जल जाते है
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है

डाॅ.मोहन बैरागी

Tuesday, August 16, 2016

जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
धुप बराबर पुरी चौखट,फिर क्यु आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जीवन के झंझावातों में.................
डॉ मोहन बैरागी

Wednesday, August 10, 2016

हिन्दी: लोक भाषा से लेकर राष्ट्रभाषा तक
मनुष्य में भाषा की समझ अपने परिवार तथा परिवेश से आती है। भाषा एवं संस्कार साथ साथ विकसित व संवर्धित होते है,जिस वातावरण,में मनुष्य जन्मता है उसी के अनुरूप उसमें संस्कार और भाषा का भी विकास होने लगता है तथा धीरे धीरे वह अपने परिवेश की बोली को बोलने लगता है जो बाद में जाकर हिंदी या अंग्रेजी के रूप में बदलकर विकसित हो जाती है। भारत के इतिहास में भाषा के विकास में बोलियों का महत्वपुर्ण योगदान है।
यहां ४०० से ज्यादा बोलियां और हिंदी तथा अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाएं भी बोली जाती है। भारत में सत्तर के दशक  के बाद से हिंदी के विकास ने जोर पकडा। भारत के संविधान ने २३ भाषाओं को मान्यता दी है, २००१ की जनगणना के अनुसार भारत में ४५ प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है जिनमें से सिर्पहृ २५ प्रतिशत आबादी एैसी है जिसकी मातृभाषा हिंदी है,बाकी के २० प्रतिशत की मातृभाषा कुछ और है। इससे पुर्व १९९१ की जनगणना में ३९ प्रतिशत लोग ही हिंदी भाषी थे। स्वतंत्रता से पुर्व भारत में हिंदी और उर्दू बोली व लिखी जाती थी,विंहृतु अंग्रेजों ने भारत छोडने से पुर्ण हिंदी और उर्दु को इस आधार पर अलग अलग करके गये कि उर्दु मुल रूप से अरबी लिपी से निकल कई आई है तथा हिंदी संस्कृत के तत्सम और तत् भव से विकसित हुई।
भाषा का विकास हमारे भाव और स्वभाव में अंतर्निहित है,हमे अपने घर परिवार में बोली जाने वाली बोलियों का उपयोग करते हुए समाज से रूबरू होते है। तथा विकसित भाषा का प्रयोग करते है। यह मनुष्य के स्वभाव पर निर्भर करता है कि वह किस भाषा का प्रयोग अपने विचारो के प्रगटीकरण के लिए करता है। भारत में आज भी दक्षिण तथा पश्चिम के कुछ राज्यों में क्षैत्रिय बोलियां ही बोली तथा लिखी व समझी जाती है। भारत की सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली बांग्ला तथा दुसरे नंबर पर मराठी है। यहीं बोलियां हमारे भीतर अपने विचारों को व्यक्त करने का माध्यम बनती है तथा शनै शनै विकसित होकर भाषा का रूप ले लेती है और यही भाषा दुर सुदुर तक यात्रा करती है। वर्तमान परिदृश्य में हिंदी भाषा ने भी अमेरिका से लेकर अप्रहृीका तथा चाईना व जापान से लेकर अन्य खाड़ी देशो की यात्रा की है तथा वहां भी हिंदी को बोला व समझा जाता है। लेकिन चिंता इस बात की है कि वैश्विक स्तर पर जिस धीमी गति से हिंदी ने यात्रा की है उतनी ही तीव्र गति से अब इसका रूपांतरण भी होता जा रहा है। इसको सहेजने के लिए सिंतबर माह की १४ तारीख को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है तथा गत वर्ष सितंबर में १० से १२ सितंबर २०१५ को भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन भी किया गया।
जहां हिंदी पर अपनी चिंता जताने सारे विश्व के लोग एकजुट हुए और हिंदी की स्थिति पर चिंतन मनन किया। परंतु हिंदी का विकास और हिंदी को सार्वभौम भाषा बनाने और स्थापित करने के लिए स्वयं से शुरूवात करना होगी। आज हिंदी के स्वरूप में को हमने स्वयं ही बदल दिया है तथा उसमें अन्य भाषा के शब्दों को मिला कर मिलीजुली हिंदी बोलने लगे है। हिंदी के लिए देश में बडे बडे विश्वविद्यालय खुल गये है किंतु हिंदी सिर्फ पाठ्यक्रमों में लिखाई पढाई जाती है। हमारा स्वभाव तो हिंग्लिश का हो गया है,जिसमें हम हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी के भी शब्दो का प्रयोग करने लगे है। जैसे- अब हम आपके घर कार में ही आऐंगे,या अब तो नहाने के लिए गीजर की आवश्कता होने लगी है अथवा नल आएगा तो पानी भर लेना।
यहां भाषा के विकास के साथ नयी गढ़ती भाषा को नजर अंदाज नही किया जा सकता,सामान्यतः हर बार व्यक्ति बोलने से पहले हिंदी के परंपरागत शब्दों को ढुंढने की बजाय वैकल्पिक तथा आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले शब्दो का प्रयोग कर भाषा का संचार करता है। इस पर हिंदी के लिए समर्पित लोगो का मानना है कि हिंदी का क्षरण होता जा रहा है तथा हिंदी नष्ट हो रही है।लेकिन ये हिंदी के बदलाव है जो सामान्य व्यवहार तथा बोलचाल में उपयोग होने लगे है। हां यह भी सही है कि हिंदी में अंग्रेजी एवं उर्दु तथा अन्य भाषा के अधिकतम शब्दों के प्रयोग या उपयोग से हिंदी की अपनी पहचान खोने का भी डर है परंतु इसके लिए हिंदी को सरल और सुगम बनाना होगा जिससे वह हर इंसान के संवाद संप्रेषण की भाषा बन सके। इसके विपरीत यह अलग बात है कि हिंदी दुनिया की दुसरी सबसे बड़ी भाषा है तथा दुनिया के ४५ करोड लोग इस भाषा में संप्रेषण करते है,वहीं अंग्रेजी तीसरे नंबर पर आती है,लेकिन अग्रेजी का प्रभाव इसलिए भी ज्यादा पड़ता है क्युंकि यह दुनिया के ७५ देशों के कामकाज की आधिकारिक भाषा है तथा हिंदी सिर्फ भारत सहित एक अन्य देश के कामकाज की भाषा है। आजादी के बाद से यह फल फुल रही है तथा लोकभाषा से आगे चलकर राष्ट्रभाषा का स्वरूप अपना रही है।
डाॅ.मोहन बैरागी
जिला स्तरीय अधिमान्य पत्रकार
संपादक:- अक्षर वार्ता मासिक षोध पत्रिका
एवं सांध्य दैनिक अक्षर वार्ता समाचार पत्र
पताः- 43,क्षीर सागर,द्रविढ मार्ग,उज्जैन,मप्र.
फोन:- 0734-2550150
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