Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, November 23, 2016

नैनो की देहरी पर आंसू की अठखेलियां
झुर्रिया सारी चेहरे की,आँखों की पहेलियां
शुष्क पत्तो सा आसमां,दरख्तों से घिरा
फिर कौन उमड़ घुमड़ कर रहा सरफ़ीरा
बून्द बून्द हे प्यासी,बादलो में भी उदासी
होठो पर बरस दर बरस असाढ़ सा जीवन
जाने मैंने किसको क्या दिया,क्या ले लिया
झुर्रिया सारी चेहरे.......
@डॉ मोहन बैरागी

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