Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, July 29, 2014

ाqटप्पणी
आस्था में अवरोध क्यूं?
मोहन बैरागी
उज्जैन। श्रावण के तीसरे सोमवार को फिर से उज्जैन में कावड़ यात्रियों के साथ पत्थरबाजी की घटना  घट गई। इंदौर से कावड़ यात्रियों का जत्था महाकाल मंदिर जा रहा तथा तब उज्जैन स्थित हरिफाटक ओवरब्रिज क्षैत्र में इस जत्थे पर पथराव किया गया। इसी समय रास्ते से गुजर रहें उज्जैन के प्रभारी मंत्री वैâलाश विजयवर्गीय की गाड़ी रूकवाकर कावड़ियों ने घटना की शिकायत की। मंत्री जी के आदेश पर इस इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया तथा पुलिस केस दर्ज कर जांच शुरू की गई। यहां बता दें कि अभी इसी माह की १४ जुलाई को महाकाल मंदिर में कावड़ियों की हुई पिटाई की जांच का नतीजा तो आया ही नही है और फिर से नई जांच शुरू हो गई। लेकिन क्या निकलकर आऐगा इस जांच में? क्या आस्था की गलती हो सकती है,कृत्य घोर निंदनीय है,ये कावड़ यात्री कई किलोमीटर से पैदल चलकर महाकालेश्वर को जल चढ़ाने के लिए आते है। ये आस्था का विषय है और आस्था में ये बार बार वैâसा अवरोध? आस्था नीजी विषय है लेकिन जब सामूहिक रूप से प्रदर्शित होती है तब सामूहिक हो जाती है ओर तब इसका असर समाज पर पड़ता है। किसी को भी किसी की भी आस्था में अवरोध पैदा करने का अधिकार नही है। इसे मौलिक अधिकार कह सकते है। लेकिन किसी भी तरह से किसी भी स्थिति में यदि व्यक्ति को अपनी आस्था पुर्ण करने में कोई बाधा उत्पन्न करता है तो ये घोर नींदनीय है और अक्षम्य भी। इस अवरोध को स्वीकार नही किया जा सकता,खासकर तब तो बिलवूâल नही जब,समय विषेश पर शृद्धालू अपनी अनन्य आस्था के साथ अपने आराध्य को श्रद्धा के जल अर्पित करने जा रहा हो। जो भी हो हमको अपनी सोच परिष्कृत करना होगा और आस्था को तथा उन सभी को आदर देना होगा अन्यथा यदि इसे सामान्य घटना समझा तो फिर ये कहीं किसी बड़े घटना का रूप ना ले लें।

Tuesday, July 15, 2014

‘शिव’और ‘शिवराज’- ‘खास’ के कारण पिटते ‘आम’
कल श्रावण का पहला सोमवार था। भगवान महाकालेश्वर को जल चढ़ाने के लिए कावड़ यात्री दुर दुर से उज्जैन आए थें। और यहां पुलिस की मारपीट का शिकार हो गये। बाहर से आए कावड़ यात्रियों को नहीं पता था कि प्रदेश के मुखिया शिवराज  सिंह चौहान सपत्निक महाकालेश्वर के दर्शन के लिए आने वाले है। वे तो सामान्य सहज हमेशा की तरह अपने देवता भगवान शिव की पुजा अर्चना करने तथा श्रावण के विशेष महत्व तथा पहले सोमवार को शिवलिंग को जल चढ़ाने आए थे।
लेकिन उज्जैन पुलिस ने इन कावड़ यात्रियों की पिटाई कर दी। पुलिस को ‘शिव’ (शिवराज सिंह चौहान) के लिए व्यवस्थाएं बनाना थी,जबकि पुलिस की डुयटी सब के लिए ‘शिव’(भगवान महाकालेश्वर) के दर्शनों की व्यवस्था करना भी थी। लेकिन पुलिस ने शिव भक्तोें को महाकाल गर्भग्रह के पास रेंप तथा नंदी हॉल से कावड़यात्रियों को बाहर करना शुरू किया,जब सहज ही कावड़ यात्रियों ने इसका विरोध किया तो पुलिस बर्बरता से उन पर टुट पड़ी और उनकी पिटाई कर दी,इतनी की एक कावड़ यात्री को अस्पताल में भर्ती तक करवाना पड़ा।
सवाल ये खड़ा होता है कि इस सब का जिम्मेदार कौन है,वे पुलिस वाले,जिन्होनें कावड़ यात्रियों की पिटाई कर दी,या फिर खुद कावड़ यात्री जिनको ये पता था कि वे कितने भी महाकालेश्वर के भक्त हो जाये,आखिर वे हैं सामान्य नागरिक ही,और इस नाते उनका अधिकार बाद में आता है? या फिर खुद ‘शिव’ (शिवराज सिंह चौहान) जिनको पता था कि श्रावण के पहले सोमवार में बाहर से आए कावड़ यात्रियों की संख्या अधिक है तो व्यवस्थाएं ना बिगडे,इसके आदेश पुर्व से दिये जा सकते  थे। जो भी हो ‘आम’ फिर ‘आम’ ही रह गया और ‘खास’ ‘खास’ ही होता है ये भी सिद्ध हो गया। इसलिए अगली बार कोई भी ‘आम’ एैसे किसी भी स्थान पर जाएं तो पहले ये देख ले कि वहां कोई ‘खास’ तो नही आने वाला,अन्यथा फिर से पुलिस की मार खानी पड़ सकती है?