Dr.Mohan Bairagi

Sunday, July 31, 2016

मन शरारती हे मन शरारती
तुम्हे ही तुम्हे ही ,बस तुम्हे ही, मोहब्बते पुकारती
मन शरारती,,,,,,,,
तितलियों सी शोखियां वो बांकपन
और ज़रा सी ज़ालिम अदा
बस तुझे ही बस तुझे ही देखे सभी
हो रहे हे देखो फ़िदा
पर मेरी नजर को तेरी नजर बस रहे निहारती
हे मन शरारती हे मन शरारती
,,,,,,,,,,
तुम गणित के शुन्य सी हो श्रंखला
और सभी हे बारहखड़ी
अग्र भाग पश्च भाग जिसमे लगो
उसकी कीमते घटी बड़ी
आँखों में नशा, होठों में नमी
क्या अदा हे मेरे यार की
हे  मन शरारती हे मन शरारती
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मीत बन के प्रीत से तुम आओ ना
मन मेरा ये राहे तके
हे प्रणय के हे प्रणय के दिल में मेरे
कितने ही अरमा जगे
रोम रोम से धरा से व्योम से
हे सदा पुकारती ........
शरारती शरारती हे मन शरारती
तुम्हे ही तुम्हे ही, बस तुम्हे ही मोहब्बते पुकारती
मन शरारती हे मन शरारती

डॉ मोहन बैरागी
31/7/2016

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