Dr.Mohan Bairagi

Thursday, November 3, 2016

कविता गोष्ठी में हमारी भी कविता
लघुकथाकार संतोष सुपेकर जी के निवास पर आयोजित एक कविता/लघुकथा गोष्ठी में हमने भी अपनी कविता पड़ी,जिसको सभी ने सराहा और आशीर्वाद दिया। अवसर था वरिष्ठ लघु कथाकार श्री राम यतन यादव जी के स्वागत का तथा कविता व् लघुकथा पर उनके विचार जानने का।इस आयोजन के निमित्त संतोष सुपेकर रहे।गोष्ठी में व्यंगकार राजेंद्र देवधरे दर्पण,प्रभाकर शर्मा,गड़बड़ नागर, कोमल वाधवानी व् संतोष सुपेकर तथा श्री राम यतन यादव ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
आभार राजेंद्र देवधरे दर्पण ने माना।
मेरी कविता की कुछ पंक्तिया आपके लिए भी.....
अपनी प्रतिक्रिया से बताइयेगा जरूर,ताकि फिर इसको देशभर में आगे भी पड़ सकू।
…................................................................
जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सूरज के ,पर अंधियारे लूट गए
धुप बराबर पूरी चोखट,फिर क्यों आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारो पर पपड़ी देखि,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते सूरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु में उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रुकते,चलते-चलते,कितने किस्से आधे ही छूट गए
सपने थे सब सूरज के,पर अंधियारे लूट गए
जीवन के झंझावातों.............


No comments:

Post a Comment