मेरी एक और कविता के कुछ अंश ......
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
भोर के सुरज उजाले बाटतें हर सु फिरे
पर्वतो,पदियो,मरूथल या के जंगल से घिरे
बाद आती हे चमक भी,किरणो के आकार पर
सूद जैसे चढ गया खुद,कोई साहूकार पर
फिर उजाले बांटते,जब तुमसे रोशन हो जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
पर्वतो,पदियो,मरूथल या के जंगल से घिरे
बाद आती हे चमक भी,किरणो के आकार पर
सूद जैसे चढ गया खुद,कोई साहूकार पर
फिर उजाले बांटते,जब तुमसे रोशन हो जाते है
हम खयालों में भी अक्सर..........
वो किसी आंगन की तुलसी,द्वारा का सतिया वही
होठ से तो कुछ ना बोले,आॅंखो से बतिया वही
मंदिरों की घंटियों के स्वर सरीखी तान वो
अक्षतों,कुमकुम वही,ओर आरती की थाल वो
रोशनी खुद उनसे
हम खयालों में भी अक्सर..........
लेकर,दीप भी जल जाते हैहोठ से तो कुछ ना बोले,आॅंखो से बतिया वही
मंदिरों की घंटियों के स्वर सरीखी तान वो
अक्षतों,कुमकुम वही,ओर आरती की थाल वो
रोशनी खुद उनसे
हम खयालों में भी अक्सर..........
हम खयालों में भी अक्सर उनको सम्मुख पाते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
हम खडे से देखते और वो यु ही मुस्काते है
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