Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, March 29, 2017

होता नहीं है सांसो का, जीवन से अनुबंध
रह जाए कुछ रोशनी,एैसा करो प्रबंध
सब एक जैसे धरा पर गगन में सितारें है
खुशबू,फूल,पवन,हवा,नदी किनारे हैं
और आईने टुटते नहीं खुद चटक कर के
वो जो दिल तोड़ते है वो अपने हमारे है
- मोहन बैरागी

Tuesday, March 7, 2017

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवर्तन पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का सम्पन्न
उज्जैन। कृष्णा बसन्ती संस्था द्वारा महर्षि पाणिनि संस्कृत और वैदिक विश्वविद्यालय के सहयोग से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी उज्जैन में सम्पन्न हुई। यह संगोष्ठी  वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवर्तन: चुनौतियां और सम्भावनाएँ विषय पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि ओरिएण्टल यूनिवर्सिटी के चांसलर डॉ के एल  ठकराल थे। अध्यक्षता पूर्व कमिश्नर एवं महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ मोहन गुप्त ने की। संगोष्ठी की उपलब्धियों पर विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने प्रकाश डाला।

श्री ठकराल ने अपने उद्बोधन में कहा कि दुनिया को आज बड़ी संख्या में भारत की युवा प्रतिभाओं की जरूरत है। भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी ने अपने मन, वचन और कर्म की एकता से नया मोड़ उपस्थित किया। आज इस देश को उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है।

डॉ मोहन गुप्त ने अपने उद्बोधन में कहा कि परिवार समाज की कोशिका है। बगैर परस्पर अवलम्ब के पारिवारिक जीवन नहीं चल सकता है। पीढ़ियों का टकराव आज नई चुनौतियाँ दे रहा है।

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि विकास के नए प्रतिमान हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि और पर्यावरणीय सरोकारों को बेदखल कर रहे हैं। एक समय प्रकृति के साथ मनुष्य का सहज संबंध बना हुआ था। वह अब तेजी से निस्तेज हो रहा है। नवपूंजीवाद, उदारवाद और उपभोक्तावाद के रहते आज सब कुछ भौतिकता की तराजू पर तोला जा रहा है। ऐसे में मानवीय संबंधों के सामने कई चुनौतियां हैं। यह समस्या जितनी आर्थिक है, उससे अधिक मनोवैज्ञानिक और मूल्यपरक है।

संस्थाध्यक्ष डॉ मोहन बैरागी ने प्रारम्भ में स्वागत भाषण दिया। श्री ठकराल को इस अवसर पर शिक्षा एवं समाज के क्षेत्र में किए गए कार्यों के लिए अक्षर वार्ता सारस्वत सम्मान 2017 से अलंकृत किया गया।

संगोष्ठी के तीसरे और चौथे सत्र में मॉरीशस के विद्वान श्री लीलाधर हीरालाल, डॉ शिव चौरसिया, डॉ प्रेमलता चुटैल, डॉ गीता नायक, डॉ बालकृष्ण शर्मा, डॉ जगदीश शर्मा, डॉ मायाप्रकाश पांडे आदि सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये। अतिथियों का स्वागत श्री कृष्णदास बैरागी, डॉ शुभम शर्मा,  डॉ रत्ना कुशवाह, नन्दकिशोर शर्मा, डॉ अखिलेश द्विवेदी, डॉ शुभम शर्मा,  डॉ भेरूलाल मालवीय, डॉ संकल्प मिश्र, डॉ पराक्रम सिंह, रूपाली सारये, श्वेता पंड्या आदि ने किया। संगोष्ठी में विभिन्न विषयों से जुड़े विद्वान एवं शोधार्थीगण ने भाग लिया।

संगोष्ठी के सत्रों में साहित्य, लोक साहित्य, समाज, इतिहास, नैतिकता, कला, पर्यावरण, आदिवासी चेतना, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, भाषा, संचार आदि विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थित परिवर्तनों पर आलेख वाचन एवं विमर्श किया गया।
इस अवसर पर 5 मार्च की रात्रि को कालिदास अकादेमी संकुल में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।