मेरी कविता के कुछ अंश आप भी पढि़ये......
जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
धुप बराबर पुरी चौखट,फिर क्यु आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जीवन के झंझावातों में.................
डॉ मोहन बैरागी
डॉ मोहन बैरागी
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