Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, November 2, 2016

नीर बन के नयन से निकलते रहे
झूठे ख्वाब जैसे आँखों में पलते रहे
सूर्य थे,जिंदगी के तुम,आभा तुमसे ही थी
पीर देकर हमें,रात दिन क्यों छलते रहे
@डॉ मोहन बैरागी
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