नीर बन के नयन से निकलते रहे
झूठे ख्वाब जैसे आँखों में पलते रहे
सूर्य थे,जिंदगी के तुम,आभा तुमसे ही थी
पीर देकर हमें,रात दिन क्यों छलते रहे
@डॉ मोहन बैरागी
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झूठे ख्वाब जैसे आँखों में पलते रहे
सूर्य थे,जिंदगी के तुम,आभा तुमसे ही थी
पीर देकर हमें,रात दिन क्यों छलते रहे
@डॉ मोहन बैरागी
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