Dr.Mohan Bairagi

Monday, September 5, 2016

शिक्षक ब्रम्हाण्ड की धुरी है। शिक्षक से ही सर्वथा श्रृेष्ठ समाज का निर्माण होता है। सर्वपल्ली राधा$कृष्णन के जन्म दिवस 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक दिन,उस महान व्यक्तिव को याद करने के लिए विशेष रूप से निर्धारित कर लिया गया,गौरव की बात है। परंतु शिक्षक के लिए जो एक सभ्य सुसंस्कृत तथा शिक्षित व्यक्ति एंव फिर उससे सभ्य समाज का निर्माण करता है,उसके लिए एक ही दिन को क्यों निर्धारित कर लिया गया है? क्या शिक्षक सिर्फ एक ही दिन सम्मान का हकदार है? हालांकि भारतीय परंपरा मैं गुरू पुर्णिमा को भी गुरूजन का सम्मान किया जाता है। विभिन्न संस्कृतियों वाले उत्सवधर्मी भारत देश में ही एैसी परंपरा है कि शिक्षक को वर्ष में दो बार सम्मानित किया जाता है। गुरू तथा शिष्य अथवा शिक्षक और छात्र के संबंधों की परंपरा भी अतिप्राचीन है। परंतु वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में देश में विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के शिक्षक न केवल शिक्षा देने का कार्य करते है अपितु उन्हें अन्य कार्याे जैसे- कॉपी जॉंचना,सेमेस्टर की तैयारी करना,चुनावों ड्युटी,प्रशासनिक कार्य,जनगणना आदि अनेक काम में लगा दिया जाता है जिससे शिक्षा के स्तर कां नि:संदेह ह्स हो रहा है,तथा शिक्षक अपने विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में असमर्थ से दिखाई पड़ते है। आवश्यकता शिक्षक को पुर्णत: शिक्षा पर एवं छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान देने की है जिसके लिए सरकारी तौर पर एैसी व्यवस्थाएं हो कि शिक्षक को सिर्फ और सिर्फ शिक्षण प्रशिक्षण के कार्य ही दिये जाए,जिससे हर शिक्षक श्रृेष्ठ तथा उसका हर शिष्य सर्वश्रृेष्ठ बन सके। सभी शिक्षकों को शिक्षक दिवस की अनेक शुभकामनाएं व चरणवंदन।
डॉ.मोहन बैरागी

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