Dr.Mohan Bairagi

Sunday, September 11, 2016


रिश्तों में बढती दुरियों पर मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां
रिश्तों में क्यु खारापन है
संवादों में भी अनबन है
जाने कैसी ये उलझन है
बोली में क्यू पैनापन है
दरका दरका सा दर्पन है.......
01.
सारे रिश्ते तपती रेती
लगता जैसे बंजर खेती
कैसे फसले लह लहाएं
हरियाली अब कैसे आएं
जाने कब बरसेंगे बादल
कैसे मन की प्यास बुझाए
अंधियारा हे बहुत यहां
और रात गहन है
रिश्तों में क्यु खारापन है.......
मोहन बैरागी 

No comments:

Post a Comment