रिश्तों में बढती दुरियों पर मेरे एक गीत की कुछ पंक्तियां
रिश्तों में क्यु खारापन है
संवादों में भी अनबन है
जाने कैसी ये उलझन है
बोली में क्यू पैनापन है
दरका दरका सा दर्पन है.......
संवादों में भी अनबन है
जाने कैसी ये उलझन है
बोली में क्यू पैनापन है
दरका दरका सा दर्पन है.......
01.
सारे रिश्ते तपती रेती
लगता जैसे बंजर खेती
कैसे फसले लह लहाएं
हरियाली अब कैसे आएं
जाने कब बरसेंगे बादल
कैसे मन की प्यास बुझाए
अंधियारा हे बहुत यहां
और रात गहन है
रिश्तों में क्यु खारापन है.......
मोहन बैरागी
सारे रिश्ते तपती रेती
लगता जैसे बंजर खेती
कैसे फसले लह लहाएं
हरियाली अब कैसे आएं
जाने कब बरसेंगे बादल
कैसे मन की प्यास बुझाए
अंधियारा हे बहुत यहां
और रात गहन है
रिश्तों में क्यु खारापन है.......
मोहन बैरागी
No comments:
Post a Comment