सुन ज़रा ऐ चितेरे,
खिंच रेखाये मन की मेरे
अक्स सच का ही बिम्बित जहां हो
हों वहाँ दृश्य अपने ही तेरे
शब्द कहते नहीं हो जहाँ पर
भाव बोलें स्वयं आसमां पर
दर्पणों की जहाँ ना जरुरत
हो इकाई जहाँ सैकड़ो पर
हो सघन मेघ,बारिशों के डेरे
सुन ज़रा ऐ.......
उम्मीद के सब घरोंदे बनाएँ
खाली दीवारों दर पर सजाएँ
दूर क्षितिज तक होकर आएँ
क्या पढ़े खाली हाथ रेखाएँ
किसने समझे ये दुनिया के फेरे
सुन ज़रा ऐ चितेरे......
खिंच रेखाये मन की मेरे
अक्स सच का ही बिम्बित जहां हो
हों वहाँ दृश्य अपने ही तेरे
शब्द कहते नहीं हो जहाँ पर
भाव बोलें स्वयं आसमां पर
दर्पणों की जहाँ ना जरुरत
हो इकाई जहाँ सैकड़ो पर
हो सघन मेघ,बारिशों के डेरे
सुन ज़रा ऐ.......
उम्मीद के सब घरोंदे बनाएँ
खाली दीवारों दर पर सजाएँ
दूर क्षितिज तक होकर आएँ
क्या पढ़े खाली हाथ रेखाएँ
किसने समझे ये दुनिया के फेरे
सुन ज़रा ऐ चितेरे......