Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, October 11, 2016

मेरे एक और श्रंृगार गीत की कुछ पंक्तियां
आप भी पढिय़े,अच्छा लगे तो बताईयेगा जरूर...
(हिन्दी साहित्य के अनुरूप नहीं है,पर अच्छी लगेगीं)

मखमली एहसास तुम्हारे मुझको बांधे यार
दर्पण में मैं खुद को देखु,जाने कितनी बार

01.गंध का मुधबन में फेरा,भ्रमर का कलियों पे डेरा
पंछी कोई आकाश में,बादल जो भटके प्यास में
जुगनू से बाते करता,अब में सारी रातों में
अंधियारों में देख उजाले,हंस दू,
कभी में गा लूं,कोई गीत मल्हार
मखमली एहसास तुम्हारे.....
ञ्चष्टशश्च42ह्म्द्बह्लद्ग
डॉ.मोहन बैरागी
व्हाट्सअप-9424014366

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