Dr.Mohan Bairagi

Monday, October 24, 2016

मेरे एक और नये श्रृंगार गीत की कुछ पंक्तियां...
आप जांचिये और अपनी प्रतिक्रिया भी दिजिये
लाईक के साथ कुछ लिखेगें भी तो अच्छा लगेगा
पास आओ हमारी सुनो तो सही
दर्द का तुम पता पुछते क्यु नहीं
01.
जब हदय की शिराएं करे वेदना
अश्रु आकाश भर जब धरा पर बहे
जब हिमालय भी पीड़ा को सह न सके
मन निराश्रित सा होकर कहे बस यही
पास आओ हमारी सुनो.....
@Copyrite
डॉ.मोहन बैरागी

Sunday, October 23, 2016

में कथानक उस कथा का जिसमे तेरी याद हो
लाज का घूँघट का सजा,मेहंदी लगे और हाथ हो
उर में अंगारो की ज्वाला,देह धधकाती रही
धर अधर पर मन की तृष्णा,प्रेम धुन गाती रही
व्याकरण बदले नयन के,द्वार बंद होने लगे
पुष्प भी ज्यूँ शूल जैसे ,अनवरत चुभोने लगे
तब लगा जैसे कही पर फिर हुयी बरसात हो
में कथानक उस कथा का......
मखमली एहसास तुम्हारे मुझको बांधे यार
दर्पण में मैं खुद को देखु,जाने कितनी बार
01.गंध का मुधबन में फेरा,भ्रमर का कलियों पे डेरा
पंछी कोई आकाश में,बादल जो भटके प्यास में
जुगनू से बाते करता,अब में सारी रातों में
अंधियारों में देख उजाले,हंस दू,
कभी में गा लूं,कोई गीत मल्हार
मखमली एहसास तुम्हारे.....

Tuesday, October 11, 2016

मेरे एक और श्रंृगार गीत की कुछ पंक्तियां
आप भी पढिय़े,अच्छा लगे तो बताईयेगा जरूर...
(हिन्दी साहित्य के अनुरूप नहीं है,पर अच्छी लगेगीं)

मखमली एहसास तुम्हारे मुझको बांधे यार
दर्पण में मैं खुद को देखु,जाने कितनी बार

01.गंध का मुधबन में फेरा,भ्रमर का कलियों पे डेरा
पंछी कोई आकाश में,बादल जो भटके प्यास में
जुगनू से बाते करता,अब में सारी रातों में
अंधियारों में देख उजाले,हंस दू,
कभी में गा लूं,कोई गीत मल्हार
मखमली एहसास तुम्हारे.....
ञ्चष्टशश्च42ह्म्द्बह्लद्ग
डॉ.मोहन बैरागी
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