Dr.Mohan Bairagi

Friday, January 20, 2017

जो मचल जाते थे तुम मेरी आह पर
वो चाहते खो गयी,हैं मेरी चाह पर

कभी खुद के भीतर गए क्यूँ नहीं
देख पाती के अब भी अधूरे हो तुम
प्यार का सिर्फ तुमने वादा किया
थोड़ा भी वादा निभा पाती तुम
छल रहे खुद को,अकारण ही तुम
प्रेम मिलता नहीं है कही राह पर
जो मचल जाते थे........

जैसे साँसों की गिनती भी होती नहीं
कोई आयु भी निश्चित नहीं देह की
वेसे तुमने भी थोड़े समय के लिये
ली परीक्षा थी क्योंकर मेरे नेह की
प्यार दो दिन का कोई नहीं खेल है
डूबकरके जो पाती यदि थाह पर
जो मचल जाते थे..........

मुझे लग रहा है कि खुश तुम नहीं
तुम्हारी तड़प कह रहा ये आसमां
रिक्त अब दिल का भवन लग रहा
आँखों में भी हे खालीपन ख़ामख़ा
प्यार स्वीकार कर निभा पाती तुम
और मुझे घेर लेती यदि बाँह पर
जो मचल जाते थे.......

है प्यार पाना तो,खुशबु संजोकर जियो
महको खुद भी,और बाग़ महकाओ तुम
अगर सच में मुझसे हो ही गया प्यार तो
करो देख रेख,ये रिश्ता निभाओ भी तुम
कोर के आंसुओ से कहो न आये बस करें
अब तो रहता हे प्यार बस इस निगाह पर
जो मचल जाते थे......
@डॉ मोहन बैरागी
20/01/17
मुझसे मुझको लेकर के तुम नादिया नीर बहो
इक पतवार,नैय्या,माँझी, कल कल खुद में गहो

आस के पीपल को बांधे हम साँझ सवेरे धागे
क्या जाने क्या नियति,होगी मेरी तेरी आगे
सिंदूरी सूरज को भी हमने अर्पण जलधार किये
मन भीतर के खालीपन को भी आकार दिए
सुधिया कहती बढ़ते जाना,हर पल बढ़ते रहो
मुझसे मुझको लेकर के तुम........

राह भंवर में उलझेगी भी,और तूफां कई कई होंगे
चुपचाप सफर चलना होगा,पथ कांटे निश्चय होंगे
आरोहो अवरोहो की सब लय पर सांसे भारी होंगी
तन का पंछी उड़ता होगा, जाने की तैय्यारी होगी
मन भगवन की अनिश्चित दुरी कैसे तय हो कहो
मुझसे मुझको लेकर के तुम........
Copyright@डॉ मोहन बैरागी
21/1/17

Thursday, January 19, 2017

आंसू बरसे आँखों से बूंदों की झड़ी लगायी
तुमने मुझको कैसा जाना कैसी रीत निभायी
तेरा प्यार नहीं हरजाई,तेरा प्यार नहीं हरजाई

01.
ज्यो मंदिर की पूजा जैसा प्यार मेरा था पावन
आँखों में अब बदरा क्यूँ हे,बरसे क्यूँ ये सावन
कोयल गाती थी गीतों को मेरे संग संग प्यारी
समय के पल पल में थी जैसे बाते सिर्फ हमारी
जाने,अब ये किस्मत से कैसी हे लड़ाई......
तेरा प्यार नहीं हरजाई......

02.
तेरे आगे सब थे छोटे क्या धरती क्या अम्बर
मेरे संग संग जान लुटाता जर्रा जर्रा तुझ पर
बगिया,माली,कालिया,काँटा,भौरा,जलते तुझपर
तेरे एहसासों की खुशबु केवल बिखरी मुझपर
गजलो में तुम थी, तुम ही रुबाई....
तेरा प्यार नहीं हरजाई.....

03.
प्रेम शिवाला,प्रेम हिमाला, नाम खुदा का दूजा
प्रेम था शबरी के बेरों में,उर्मिला ने प्रेम को पूजा
मीर, कबीरा,जिगर, ने गाया प्रेम हे सबसे ऊंचा
प्रेम हे मीरा के भजनों में,प्रेम तुलसी की चौपाई
पुकारू में तुझको,दे दुहाई.....
तेरा प्यार नहीं हरजाई.......
@डॉ मोहन बैरागी
Copyright
जिंदगी ने हमें कैसे पल ये दिए
मांगते जिंदगी,जिंदगी के लिए

प्रीत का हर भवन खाली खाली हुआ
लय से गीतों को धड़कने गाती नहीं
जब शेष आयू समर में गुजरती लगे
कोई बूढ़ा है गर शजर तो यही रीत हैं
छाँव बैठे घड़ी को, के फिर चल दिए
जिंदगी ने हमें.........

आस के ताने बाने ज़माने में कितने बुने
उम्र ही काट दी चाह में और कितना सुने
खुद के भीतर समेटे रहे जिंदगी,जिंदगी
और बोलता कौन जब हम, स्वयं मौन थे
जरा मुस्कुरा भी न पाये थे जो पल दिए
जिंदगी ने हमें...........

देह मायूस ये सोचकर,क्या मिला क्या गया
स्वपन जो एक आकार, साकार हो न सका
परायी ये साँसे अपनी, हुयी ना रही उम्रभर
प्रश्न अपने किससे पूछे निरुत्तर यहाँ हैं सभी
ढोंग करले कोई जाने,अजाने छल सभी ने किए
जिंदगी ने हमें.........
Copywrite@
डॉ मोहन बैरागी
20/1/2017
जिंदगी ने हमें कैसे पल ये दिए
मांगते जिंदगी,जिंदगी के लिए

प्रीत का हर भवन खाली खाली हुआ
लय से गीतों को धड़कने गाती नहीं
जब शेष आयू समर में गुजरती लगे
कोई बूढ़ा है गर शजर तो यही रीत हैं
छाँव बैठे घड़ी को, के फिर चल दिए
जिंदगी ने हमें.........

आस के ताने बाने ज़माने में कितने बुने
उम्र ही काट दी चाह में और कितना सुने
खुद के भीतर समेटे रहे जिंदगी,जिंदगी
और बोलता कौन जब हम, स्वयं मौन थे
जरा मुस्कुरा भी न पाये थे जो पल दिए
जिंदगी ने हमें...........

देह मायूस ये सोचकर,क्या मिला क्या गया
स्वपन जो एक आकार, साकार हो न सका
परायी ये साँसे अपनी, हुयी ना रही उम्रभर
प्रश्न अपने किससे पूछे निरुत्तर यहाँ हैं सभी
ढोंग करले कोई जाने,अजाने छल सभी ने किए
जिंदगी ने हमें.........
Copywrite@
डॉ मोहन बैरागी
20/1/2017

Tuesday, January 17, 2017

आंसू बरसे आँखों से बूंदों की झड़ी लगायी
तुमने मुझको कैसा जाना कैसी रीत निभायी
तेरा प्यार नहीं हरजाई,तेरा प्यार नहीं हरजाई

01.
ज्यो मंदिर की पूजा जैसा प्यार मेरा था पावन
आँखों में अब बदरा क्यूँ हे,बरसे क्यूँ ये सावन
कोयल गाती थी गीतों को मेरे संग संग प्यारी
समय के पल पल में थी जैसे बाते सिर्फ हमारी
जाने,अब ये किस्मत से कैसी हे लड़ाई......
तेरा प्यार नहीं हरजाई......

02.
तेरे आगे सब थे छोटे क्या धरती क्या अम्बर
मेरे संग संग जान लुटाता जर्रा जर्रा तुझ पर
बगिया,माली,कालिया,काँटा,भौरा,जलते तुझपर
तेरे एहसासों की खुशबु केवल बिखरी मुझपर
गजलो में तुम थी, तुम ही रुबाई....
तेरा प्यार नहीं हरजाई.....

03.
प्रेम शिवाला,प्रेम हिमाला, नाम खुदा का दूजा
प्रेम था शबरी के बेरों में,उर्मिला ने प्रेम को पूजा
मीर, कबीरा,जिगर, ने गाया प्रेम हे सबसे ऊंचा
प्रेम हे मीरा के भजनों में,प्रेम तुलसी की चौपाई
पुकारू में तुझको,दे दुहाई.....
तेरा प्यार नहीं हरजाई.......
@डॉ मोहन बैरागी
 जब रात नैनो की उदासी काटती है
जब तुम्हारे स्वप्न आँखों में उभरते
चुप्पियां जब,मन की तेरे गीत गाती
अर्थ जज़बातों के जीवन में उतरते
डॉ मोहन बैरागी                      

जैसे गुज़री हुई इक घड़ी ये डगर
जीना है साथ सुख दुःख के हाथ में
आड़ी तिरछी लकीरो का है ये सफर
डॉ मोहन बैरागी                      

शर्म आँखों की तुम,बेहिचक तोड़ दो
गोपियों से घिरा कृष्ण आधा लगे
रिश्ता 'मोहन ' से,राधिका सा जोड़ दो
डॉ मोहन बैरागी
जब नेह के समर्पित भाव सारे उष्ण होने लगे
जब साथ समय के रिश्ते बर्फ से पिघलने लगे
दूर धुंए सा उड़ जाये प्यार, अपना बदलने लगे
एक पल ख्वाब जैसे, वो आये और चलने लगे
@डॉ मोहन बैरागी
कैसे तुम आये औ आकर चले गये
या के तेरी प्रीत थी या हम छले गए

उंगलिया चटकी थी कितनी प्यार से
लग रही थी अप्सरा,प्रेम के श्रृंगार से
बोल जैसे इत्र तेरी,आँखों में गुलाब थे
थी महक गयी जिंदगी,हम आबाद थे
क्यों अपने ही अरमानो को लूट ले गये
कैसे तुम आये औ.........

दृढ प्रेम ये निश्चल,भी तुम्हे स्वीकार था
इतना पावन के सतियों का आकार था
पूजते तुलसी के जैसी तुमको आँगन में
एक ही तो पुष्प थी तुम सारे उपवन में
क्यों टूट गया पुष्प, हाथों में फांस ले गए
कैसे तुम आये...........

पर बिन तुम्हारे सब सृष्टि सिर्फ़ वीरान है
शुन्य हे अनंत में देह का खाली मकान है
सांसे साँसों पर भारी, खुद अपना जीवन
है अनंतिम प्रतीक्षा के तुम्हारा हो आगमन
लोटा दो मेरी धड़कने जो तुम सांस ले गए
कैसे तुम आये औ........

कैसे तुम आये औ आकर चले गए
या के तेरी प्रीत थी या हम छले गए
@डॉ मोहन बैरागी
11/01/17
अपने ही जल को आँचल में भरके,नदी प्यासी हे
उड़ती ये चिड़िया साँसों की आसमां में प्रवासी हे

अनगिनत साँसे उधारी इस देह को क्या मालूम
एक तीली,कुछ लकड़िया, और राख ज़रासी हे

अब तो उनके कहने से ही बादल उमड़ते घुमड़ते
हवाएं क्या करे बेचारी,वो सरकारो की देवदासी हे

मंजर ये भी के अन्नदाता रो रहा अपने ही दालान में
घोषणाएं सरकारी सूखे सी,चेहरे पर फिर उदासी हे

खुशनुमा हुवा है माहौल, चेहरा उनका आँखों में आया
मेहरबाँ चाँद तो छत पे आया नहीं,फिर भी पूर्णमासी हे

पास रहे या दूर,उनका होना न होना भी एक बराबर है
घुटती घर के बस आँगन चक्की,जैसे पीर उर्मिला सी है

@डॉ मोहन बैरागी
11/01/17