Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, August 16, 2016

जीवन के झंझावातों में कितना बिखरे कितना टूट गए
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
धुप बराबर पुरी चौखट,फिर क्यु आधा उजियारा हे
जर्रा जर्रा रोशन करता,घर मेरे आकर के हारा हे
दीवारों पर पपड़ी देखी,और टकराकर लौट गया
शायद खुद के दिल पर भी,लेकर के कोई चोट गया
जीना किसको कहते,सुरज ने खुद आकर के देखा हे
तपता हु मैं उससे भी ज्यादा,कहती हाथो की रेखा हे
थकते,रूकते,चलते चलते,कितने किस्से आधे ही छुट गये
सपने थे सब सुरज के,पर अंधियारे लूट गये
जीवन के झंझावातों में.................
डॉ मोहन बैरागी

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