Dr.Mohan Bairagi

Sunday, October 23, 2016

में कथानक उस कथा का जिसमे तेरी याद हो
लाज का घूँघट का सजा,मेहंदी लगे और हाथ हो
उर में अंगारो की ज्वाला,देह धधकाती रही
धर अधर पर मन की तृष्णा,प्रेम धुन गाती रही
व्याकरण बदले नयन के,द्वार बंद होने लगे
पुष्प भी ज्यूँ शूल जैसे ,अनवरत चुभोने लगे
तब लगा जैसे कही पर फिर हुयी बरसात हो
में कथानक उस कथा का......

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