Dr.Mohan Bairagi

Friday, January 20, 2017

मुझसे मुझको लेकर के तुम नादिया नीर बहो
इक पतवार,नैय्या,माँझी, कल कल खुद में गहो

आस के पीपल को बांधे हम साँझ सवेरे धागे
क्या जाने क्या नियति,होगी मेरी तेरी आगे
सिंदूरी सूरज को भी हमने अर्पण जलधार किये
मन भीतर के खालीपन को भी आकार दिए
सुधिया कहती बढ़ते जाना,हर पल बढ़ते रहो
मुझसे मुझको लेकर के तुम........

राह भंवर में उलझेगी भी,और तूफां कई कई होंगे
चुपचाप सफर चलना होगा,पथ कांटे निश्चय होंगे
आरोहो अवरोहो की सब लय पर सांसे भारी होंगी
तन का पंछी उड़ता होगा, जाने की तैय्यारी होगी
मन भगवन की अनिश्चित दुरी कैसे तय हो कहो
मुझसे मुझको लेकर के तुम........
Copyright@डॉ मोहन बैरागी
21/1/17

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