Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, January 17, 2017

कैसे तुम आये औ आकर चले गये
या के तेरी प्रीत थी या हम छले गए

उंगलिया चटकी थी कितनी प्यार से
लग रही थी अप्सरा,प्रेम के श्रृंगार से
बोल जैसे इत्र तेरी,आँखों में गुलाब थे
थी महक गयी जिंदगी,हम आबाद थे
क्यों अपने ही अरमानो को लूट ले गये
कैसे तुम आये औ.........

दृढ प्रेम ये निश्चल,भी तुम्हे स्वीकार था
इतना पावन के सतियों का आकार था
पूजते तुलसी के जैसी तुमको आँगन में
एक ही तो पुष्प थी तुम सारे उपवन में
क्यों टूट गया पुष्प, हाथों में फांस ले गए
कैसे तुम आये...........

पर बिन तुम्हारे सब सृष्टि सिर्फ़ वीरान है
शुन्य हे अनंत में देह का खाली मकान है
सांसे साँसों पर भारी, खुद अपना जीवन
है अनंतिम प्रतीक्षा के तुम्हारा हो आगमन
लोटा दो मेरी धड़कने जो तुम सांस ले गए
कैसे तुम आये औ........

कैसे तुम आये औ आकर चले गए
या के तेरी प्रीत थी या हम छले गए
@डॉ मोहन बैरागी
11/01/17

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