अपने ही जल को आँचल में भरके,नदी प्यासी हे
उड़ती ये चिड़िया साँसों की आसमां में प्रवासी हे
अनगिनत साँसे उधारी इस देह को क्या मालूम
एक तीली,कुछ लकड़िया, और राख ज़रासी हे
अब तो उनके कहने से ही बादल उमड़ते घुमड़ते
हवाएं क्या करे बेचारी,वो सरकारो की देवदासी हे
मंजर ये भी के अन्नदाता रो रहा अपने ही दालान में
घोषणाएं सरकारी सूखे सी,चेहरे पर फिर उदासी हे
खुशनुमा हुवा है माहौल, चेहरा उनका आँखों में आया
मेहरबाँ चाँद तो छत पे आया नहीं,फिर भी पूर्णमासी हे
पास रहे या दूर,उनका होना न होना भी एक बराबर है
घुटती घर के बस आँगन चक्की,जैसे पीर उर्मिला सी है
@डॉ मोहन बैरागी
11/01/17
उड़ती ये चिड़िया साँसों की आसमां में प्रवासी हे
अनगिनत साँसे उधारी इस देह को क्या मालूम
एक तीली,कुछ लकड़िया, और राख ज़रासी हे
अब तो उनके कहने से ही बादल उमड़ते घुमड़ते
हवाएं क्या करे बेचारी,वो सरकारो की देवदासी हे
मंजर ये भी के अन्नदाता रो रहा अपने ही दालान में
घोषणाएं सरकारी सूखे सी,चेहरे पर फिर उदासी हे
खुशनुमा हुवा है माहौल, चेहरा उनका आँखों में आया
मेहरबाँ चाँद तो छत पे आया नहीं,फिर भी पूर्णमासी हे
पास रहे या दूर,उनका होना न होना भी एक बराबर है
घुटती घर के बस आँगन चक्की,जैसे पीर उर्मिला सी है
@डॉ मोहन बैरागी
11/01/17
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