Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, January 17, 2017

 जब रात नैनो की उदासी काटती है
जब तुम्हारे स्वप्न आँखों में उभरते
चुप्पियां जब,मन की तेरे गीत गाती
अर्थ जज़बातों के जीवन में उतरते
डॉ मोहन बैरागी                      

जैसे गुज़री हुई इक घड़ी ये डगर
जीना है साथ सुख दुःख के हाथ में
आड़ी तिरछी लकीरो का है ये सफर
डॉ मोहन बैरागी                      

शर्म आँखों की तुम,बेहिचक तोड़ दो
गोपियों से घिरा कृष्ण आधा लगे
रिश्ता 'मोहन ' से,राधिका सा जोड़ दो
डॉ मोहन बैरागी

No comments:

Post a Comment