Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, May 12, 2021

कहानी - गड्ढा

 कहानी  

गड्ढा


तुफान सिंह बेहद गरीब परिवार का एकलौता लड़का है, घर में माँ और एक बहन है। पुरा मजदुरी कर अपना गुजर बसर करता है। तुफान सिंह को शराब की लत है। हर रात को शराब के नशे में धुत्त रहता है तो दिन में मजदुरी करते हुए भी शराब का सेवन कर लेता है। तुफान सिंह की गरीबी उसकी टुटी बिखरी छप्पर वाली छत, जो सिर्फ सर ढंकती है और कच्ची दीवारों वाला एक कमरे का घर बयां करती है। तुफान सिंह करीब तीस साल का नौजवान है। घर का खर्चा पुरे परिवार की कमाई से चलता है। परिवार की स्थिति अत्यंत दयनिय है, गरीब बस्ती में सड़क के आखरी में किनारे पर बना घर, जो तुफान सिंह के पिता ने बनाया था, इसी में पुरा परिवार रहता है। पिछले हफ्तेभर से तुफान सिंह काम पर नही गया है, उसकी बुढ़ी माँ और बहन मिलकर घर खर्च चला रहे है। माँ की इच्छा है कि उसकी लड़की की शादी किसी कमाने-धमाने वाले नेक लड़के से हो जाये। आज भी माँ और बहन फटे उघड़-ढके चिथडे़नुमा कपड़ो में मजदुरी कर घर जैसे ही आये हैं, उन्हें तुफान सिंह जमीन पर पड़ा बड़बड़ाते मिलता है.....! 

आज भी तुने दारू पी है....कितना पियेगा....पी...पी...के मर जायेगा....? (तुफान सिंह की माँ)

पीना हहहहह....है तो पीना हहहहह...ह....है...लाला....ला...लाला...ला....मरने से कोन डरता है...? (तुफान सिंह)

पी....नास पिटे......पी और मर जा...बाप के जैसा....? मुझे भी मर मर के ही तो जीना है.....छोटी की शादी करना है.....बड़ी मुश्किल से मजूरी कर कर के पैसे जमा कर रही हूँ, के कोई अच्छा मेहनत करने वाला लड़का देख के इसके हाथ पिले कर दूं। तु तो बस दारू में ही मर.....तेरी कोई जिम्मेवारी नहीं है, छोटी के लिए....?

क्या.....तु.....पैसे जमा कर रही है.....हरामखोर....? मेरे उपर इतना कर्जा है.....कलाली वाले का....बीड़ी-तंबाकू वाले का....? और तु छुपा-छुपा के पैसे जमा कर रही है...? कर देंगे छोटी की शादी भी....मुझे भी फिकर है....मेने देखे भी है...एक दो लड़के इसके लिए.....कल ही शाम को विक्रम के साथ उसका दोस्त आया था कलाली पे...बड़ा अच्छा लड़का है....मैं सब कर दूंगा....? (तुफान सिंह)

तभी बीच में छोटी बोल पड़ी....माँ थक गये.....अभी रोटी भी बनानी है....तुम दोनो क्यो लड़ रहे हो....हो जायेगी शादी-वादी...! रोज़-रोज़ तुम दोनो लड़ते हो....देखना मैं खुद भाग जाऊंगी किसी के साथ....?

पड़ा रहने दो इसको दारू के नसे में....? मैं जा के रोटी बनाती हँू।....मर...तू ऐसे ही.....तुफान सिंह की तरफ गुस्से से देखते हुए कोने में चार ईंट के बने चुल्हे के पास जाकर चुल्हा जलाने की तैयारी करने लगती है।

नास पिटे ने जिंदगी नास कर दी....ना खुद जीता है....न दुसरों को चेन से जीने देता है....? (तुफान सिंह की माँ)

तुफान सिंह नशे की हालत में लड़खड़ाते हुए उठने की कोशिश करता है....और ......बता...पैसे कां छुपाऐ.....बता....नई तो माड् डालूंगा...बता. लड़खड़ाते हुए अपनी माँ की तरफ बढ़ता है कि उसकी माँ उसे एक हाथ आगे कर धक्का देती है, अगले ही पल तुफान सिंह फिर जमीन पर गिर जाता है....और बड़बड़ाते हुए....माआआआ....ड् डालूंगा..?

इधर तुफान सिंह की छोटी बहन ईट के बने चुल्हे में कुछ लकड़िया सुलगाकर चुल्हा जलाकर रोटी बनाने के लिए आटा मसते हुए उसमें मिलाने के लिए डिब्बों में नमक ढूंढने लगती है....नमक का डिब्बा खाली है.....माँ नमक नहीं है....खाली पड़ा है डिब्बा....?

चार दिन पहले तो लाई थी चार नमक की थैली.....लगता हैं वो भी इस नास पिटे हराम के पिल्ले ने बेच दी होगी...! बिना नमक के बना ले.....चेहरे पर परेशाली और झल्लाहट के भाव लिये तुफान सिंह की माँ ने कहा...। थोड़ी देर बाद दोनों माँ-बेटी बिना नमक की रोटी मिर्ची के साथ खाकर एक चटाई पर पास-पास सो जाते है। अगले दिन सुबह......

तुफान सिंह की माँ जैसे ही उठती है....देखती हैं कि.....उसकी बेटी भी नहीं है....और तुफान सिंह भी गायब है..? एक कमरे का घ बिखरा पड़ा है....? वह तुरंत उठकर छप्पर की तरफ देखती है.....कच्चे छप्पर में नीचे से बनाए एक गड्डे नुमा जगह से मिट्टी सरक कर निचे गिर रही है.....वह चैंक जाती है....उसके मुँह से निकलता हैं....हे राम....मेरे पैसे...मेरे पैसे.....?

वो तुरंत उठकर देखती है....उस गड्डे में अपना हाथ डालकर चारो तरफ घुमाती है...गड्डा खाली....उसके आँसू निकलने लगते है और मुंह से गालियां...। हरामी.....कुत्ता.....नास पिटा.....दारू पिने के वास्ते मेरे सारे पैसे चुरा ले गया, बड़ी मुस्किल से थोड़ा-थोड़ा जमा कर बेटी की शादी के लिए दस हजार रूपे एकट्टठा किये थे.....? तुफान सिंह की माँ अपनी फटी साड़ी का पल्लू कांधे पर डालकर, बिखरे बाल और मलिन जैसी हालत में ही घर के बाहर दौड़ लगा देती है......और भागकर बस्ती के बाहर कोेेेई सो मीटर दुर सड़क किनारे कलाली पहँुचती है....सुबह का वक्त है....कलाली पर शराबियों की भीड़ और पास ही खुले अहाते में कई लोग दारू पीने में मस्त हैं...एक-एक कर सब पर नज़र दौड़ाती है..... तभी एक किनारे पर कोने में मिट्टी से लथपथ लेटा तुफान सिंह का दोस्त विक्रम दिखाई दे जाता है.....क्यों रे...विक्रम....नास पिटे....कां है...तुफान.....तुने सब नास मार दिया मेरे छोरे का......कां हैं.....तुफान बता....?

तुफान दारू पिने आया था.....कलाली पे.....उधार चुकता करके...उसने खुब दारू पी......और मेरे दोस्त को जान से मारने के लिए ढूंढने गया है......मुझे भी मारा.......मैं छोडुंगा नही तुफान को.........तेरी छोरी.....मेरे दोस्त के साथ भाग गई है.......? (विक्रम सिंह)

सुनते ही तुफान सिंह की माँ के पैरों तले ज़मीन खिसक गई.....? दहाड़े मार कर रोने लगी.....ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी.....मैं मर गयी....बरबाद हो गई......कहीं का नहीं छोड़ा इन दोनों भाई-बहन ने.....? और रोते-रोते.....वापस अपनी छोपड़ी नुमा कच्चे मकान में आकर एक कोने मैं गुमसुम सी बैठकर....छप्पर के नीचे बने बस गड्ढे को निहारने लगी.....जिसमें बेटी की शादी के लिए पैसे जमा कर रखे थे।


कहानी- गड्ढा

लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी


No comments:

Post a Comment