कहानी
चिड़िया
पंछीयों के चहचहाने की आवाज़ चारो और से ज़ोर ज़ोर से आ रही है....चैं....चैं...चैं......पी......पी......पी.....पीईईई......! घर के भीतर चारो और कुछ पछंी इधर उधर चहचहाते आवाज़ करते हुए उड़ रहे है। तभी..............आहहहह......ये किसने फेंका ग्लास.....कितनी ज़ोर से लगी हैं...? चश्मा टूट गया। आहहह.... ना जाने क्या है इस घर में....हर कोई चीज़े उठा-उठाकर फेंकता रहता है.......विद्याआआआआ.......अरे ओ विद्याआआ.....देखो माथे में कपाल के कोने से खुन निकलने लगा... स्यअआआआ....घुम्मा उठ गया, चश्मा अलग टूट गया....? विद्याआआआ....अअआआआहहहह.....विद्या........मैं यहाँ दर्द के मारे मरा जा रहा हूँ......कहाँ हो तुम..? लखीराम शर्मा ने दर्द सहते हुए.........एक हाथ से टूटे चश्मे को जोड़ने की कोशिश करते हुए, दुसरा हाथ चोट पर प्रेशर से रखकर अपनी पत्नी को फिर आवाज़ दी....! विद्या....कहाँ हो....लाओ ज़रा कपड़ा और काॅटन दो....अअआआआहहह....और कितने दर्द सहना है...इस उम्र में अब....?
क्या हुआआआ.....पंछियों से बचते हुए, उन्हें श्श्शशशशश.....फुर्रर्रर्र.....आवाज़ के साथ हाथ का इशारा कर भगाते हुए दौड़कर विद्या कमरे मंे दाखिल होती है। अरे....क्या हुआ......? मैं किचन में थी.....! ये चोट कैसे लगी आपको.....देखू तो.......है भगवान....इसमें से तो खून निकल रहा है....! तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू उठाकर कोने को इकट्ठा कर एक पोटली बनाई और लखीराम के माथे पर रखते हुए........साड़ी के उस पोटली वाले कोने को फाड़कर....लो पकड़ो इसको...ज़ोर से दबाकर रखो.....मै क्रीम पट्टी लेकर आती हूँ....! तुरंत भागकर पट्टी क्रीम हाथ में लेकर लौटी और क्रीम लगाते हुए.......ये अरूण को पानी देने में ज़रा देर क्या हुई...चीज़े फंेकना शुरू कर देता है....? हे भगवान कैसा नसीब दिया है....शादी के आठ साल बाद एक बेटा दिया वो भी बीमार.....? तीस साल का होने को आया...अभी तक....बीमारी नहीं गई....कब बड़ा होगा ये....कब ठीक होगा......आँखें नम करते हुए.....ऐसी ज़िंदगी भी ज़िंदगी है.....जिसे हम दोनों के बुढ़ापे का सहारा बनना चाहिये....उसे अब तक हमारे सहारे की ज़रूरत है...? तभी दुसरे कमरे से आवाज़ आई.......
मम्मीमीईईई.....मम्मी......मम्मीमीमीईईई.......पानीनीईईई.....पानी पीना है...प्यास लगी है....टीशर्ट पायजामा पहने हल्की दाढ़ी बिखरे हुए बाल, आँखों पर मोटा चश्मा, गोरे रंग का दिखने वाले दिवार से सटे पलंग पर बैठे अरूण ने फिर आवाज़ लगाई....। मम्मीमीईईई.......पानीनीईईई......!
लखीराम के सर पर पट्टी बांधकर.....लो.....बंध गई पट्टी.....वहाँ अलमारी में दर्द की टेबलेट पड़ी है उसमें से आप टेबलेट ले लो, उससे दर्द नहीं होगा....और शाम को जाकर डाक्टर से टिटेनस का इंजेक्शन भी लगवा आना। मैं देखती हँू...अरूण पानी के लिए चिल्ला रहा है....ऊपर से ये चिड़ियों का शोर....पुरे घर को जंगल बना के रखा है आपने....? विद्या तुरंत अरूण के कमरे में जाकर उसे पीने का पानी देते हुए गुस्से से कहती है.....क्यो रे........तु हमारी जान लेकर ही मानेगा क्या....देखा तुने......सर फोड़ दिया तुने पापा का.....कितना बड़ा घुम्मा सा हो गया.....चश्मा टूटा सो अलग......तंग आ गए हैं तेरी हरकतो ंसे....चीजे़ उठाकर तोड़ने का शौक हैं न.....आँखें चैड़ी करते हुए डांटते हुए....एक हाथ से अरूण का पानी पिला दुसरे हाथ को माथे पर फेरते....स्वर बदलते हुए.....बेटा अब तु बडा हो गया है....काबू क्यों नही रखता खुद पर.....? क्यों इतना गुस्सा करता है....? इसी गुस्से की वजह से बार बार बेहोश हो जाता है....? लड़खड़ाकर चलता है....कितना ईलाज करवा चुके है तेरा....बड़े-बड़े नामी डाक्टरों को दिख दिया....फिर भी तेरी मानसिक, शारीरिक हालत ठीक नहीं होती....? बेटा अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा कर....तु ठीक है....खुद को एैसा समझ....तेरी ऐसी हालत से हम दोनो पति-पत्नी पर क्या गुज़रती है....सोचा कभी.....? अच्छा चल....मैं चाय बनाकर लाती हूँ....पलंग के बगल में पड़ी टेबल पर पानी का ग्लास रखते हुए.....दुसरे हाथ में साड़ी के पल्लु से नम आँखों को पोछते हुए विद्या चली जाती है।
उधर लखीराम शर्मा टूटे चश्में को हाथ में लिए सोचने लगते हैं........पुरे जीवन कोई बुरा काम नहीं किया....ईश्वर की उपासना की.....सात्विक जीवन जीया.....पर्यावरण विभाग में रहते पशु-पक्षियों से इतना प्रेम किया कि रिटायरमेंट के बाद आज भी पुरे घर आँगन में पक्षी चहचहाते हैं....रोज़ इनको दाना पानी देता हुँ....गाय को चारा खिलाता हँु......जीवन में एक पैसे का दाग़ नहीं.....विभाग के लोग आज भी मुझे याद करते हैं कि कोई अफसर था हमारा भी......! अपने सर को ऊँचा कर....जैसे ऊपर वाले से भरे मन से सवाल हो....हे भगवान....ये कैसी ज़िंदगी दी है.....एक बेटा दिया.....वो भी......? कम से कम इसकी बेहोशी को तो ठीक कर दे...? एक बार बेहोश पर चैबीस-चैबीस घण्टे तक होश नहीं आता...?
हिम्मत हार चुके हारे हुए एक पिता की तरह......आँखंे बंद कर गहरी साँस लेते हुए.....खैर......जो प्रभु इच्छा....! पंछियों को दाना-पानी देने का समय हो गया है.....बेचारे भूखे होंगे....? दे आंऊ। लखीराम शर्मा आंगन में आकर मुख्य द्वार पर दरवाजे़ की चैखट के ऊपर फर्शी पर पानी के एक छोटे टब में पंछियों के लिए पानी भरकर वहीं पास में कुछ दाना बिखेर कर...आंगन में एक कोने में नीचे भी पंछियों के लिए दाना बिखेर कर लौट आता है। लखीराम शर्मा के कोई दो दर्जन से ज्यादा पक्षी दरवाजे़े की मुंडेर पर....खिड़की के कोने में, दिवार के सहारे लगे पाईप के ऊपरी कोने में तो आंगन में लगे पेड़-पौधो पर मंडराते रहते है। इनमें से कई पक्षी घर के भीतर भी कमरों में यहाँ-वहाँ उड़ते रहते है। लखीराम की पत्नी इनसे काफी परेशान है। एक बार वह दरवाजे़ की चैखट के ऊपर बने घोंसले को कचरा समझ फेंक भी आई थी......?, जिसमें चिड़िया के अंडे थे, जिनसे बच्चे निकलने वाले थे। विद्या को वह घटना आज भी कहीं न कहीं भीतर से परेशान करती है।
दिनभर की रूटीन के बाद शाम को खाना बनाकर पति और बेटे को खिलाकर विद्या आराम करने चली जाती है.....लेकिन उसे देर रात तक नींद नहीं आती....अजीब सी बैचेनी मन में है....कुछ अजीब घटना होने के संकेत जैसे मिल रहे हों....?
अगले दिन सुबह......विद्या आज उठने में लेट हो गई, आँख खुलते ही....अलसाई सी उठकर कमरे से बाहर आकर देखती है, लेखीराम चिड़ियों को दाना डाल रहे हैं......! ‘आज जल्दी उठ गये क्या आप....?‘, नहीं आज तुम देर से उठी हो....! मैं नहाकर, पुजा पाठ करके पौधों को पानी दे चुका हँू, बस अब पक्षियों को दाना डालकर अखबार पढ़ना है...तब तक तुम ज़रा चाय बना लाओ....!
विद्या अपनी साड़ी ठीक करते हुए किचन की तरफ चली जाती है। तभी आवाज़ आती है......मम्मीमी...च...चायय....!
अरूण लड़खड़ाते हुए पलंग से उठता है और चलने की कोशिश करने लगता है.....आंशिक विकलांगता के कारण लंगड़ाते-लड़खड़ाते हुए दिवार से टकराते जैसे-तैसे बाहर की तरफ बढ़ता है....!
अरे.....अरूण बेटा...तुम क्यो उठे पलंग से.....तुम्हारी मम्मी चाय बनाकर ला रही है....हम दोनो साथ पियेंगे...! कहते हुए लखीराम दरवाजे पर अरूण का सहारा देने लगते हैं.....अरूण दरवाजे से बाहर निकलने की मुद्रा में खुद को खींचकर बाहर करना चाहता है। अच्छा...अच्छा...चलो...आंगन में बैठकर चाय पियेंगे...। जैसे.....दोनो दरवाजे़ की चैखट के बाहर होते हैं....अरूण यकायक जमीन पर गिरकर बेहोश हो जाता है। अरे....बेटा....बेटा......अरूण....गाल पर थपकी मारते हुए...जगाने का प्रयास करते लखीराम......!
सु...न...सुनो......सुनो....विद्या.....देखो, अरूण फिर बेहोश हो गया....जल्दी आओ.....?
क्या हुआ......भागते हुए विद्या दरवाजे़ पर पहँूची....अरे....आँख में आँसू लिए.....अरूण...बेटा अरूण.....हे भगवान.....ये क्या हो रहा है....सारी विपदा हम पर ही क्यों आन पड़ी......उठो बेटा.....देखो मैं चाय बना लाई तुम्हारे लिए......अरूण....सुनो, लगता है फिर अरूण को अस्पताल ले जना पड़ेगा।
लखीराम और विद्या आपस में बात कर ही रहे होते हैं कि तभी अचालक चिड़ियों का शोर सुनाई देता है....? ऊपर चिड़ियों का एक झुण्ड इकट्ठा हो जाता है और ज़ोर ज़ोर से चहचहाने की आवाज़ आने लगती है.....विद्या को उनकी आवाज़ कर्कश लगती है ओर ऊपर की और देखते हुए हाथ से झुण्ड को भगाने का प्रयास करती है, फिर अरूण की तरफ उसका ध्यान जाता है......कुछ पल बाद देखती है ऊपर से पानी की धार गिर रही है....जो अरूण के चेहरे पर गिरती है.....विद्या और लेखीराम अरूण को झूंझलाते हुए होश में लाने का प्रयास कर रहे होतेे है, तभी अरूण हाथ पैर हिलाने लगता है.....और चेहरे पर गिर रहे पानी से चेहरे को बचाने का प्रयास करता है। यह देखकर विद्या और लेखीराम अचानक से खुश होने लगते है, जैसे उन्हें मनचाहा वरदान मिल गया हो... उनका बेटा अरूण जो होश में आ गया था।
विद्या को समझते देर न लगती है...कि ऊपर से पानी कहाँ से आया.....वह तुरंत उठकर देखती है....दरवाजे के चैखट के ऊपर चिड़ियों के जल पात्र को आड़ा पड़ा देखती है...उसके आस-पास काफी सारी चिड़िया बैठी है.....उसे ग्लानि होने लगती है....और याद आता है....वह घोंसला जिसे विद्या ने कचरा समझकर फंेक दिया था और उसमें चिड़िया के अण्डे थे।
कहानी- चिड़िया
लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी
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