कहानी
इंजेक्शन
(1)
‘नवीन‘ आज फिर अस्पताल से दो इंजेक्शन चुरा कर ले आया और अस्पताल के बाहर वाली दवाई की दुकान पर ऊँचे दाम में बेच दिये। उसकी इस करतूत को अस्पताल के बाहर मेन गेट के पास बैठी एक भिखारिन अपने बारह वर्ष के बेटे के साथ देख रही थी, क्योंकि यह ‘नवीन‘ का रोज का किस्सा है। वह सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर के पद पर नौकरी करता है और अच्छी खासी तन्खाह उसे मिलती है, लेकिन ज्यादा धन की लालच में वह अस्पताल से दवाईयों की चोरी कर ऊँचे दाम में बेच देता है, उसके अंदर की मानवता कुंठित होकर शायद कहीं भीतर ही दब सी गई है। घर में एक छोटी बहन ‘रचना‘ है, जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है, उसका सपना है कि बहन कि शादी किसी अमीर डाक्टर से करेगा। लेकिन बहन एक पैर से पोलियोग्रस्त है, शरीर से एकदम दुबली-पतली बहन अक्सर बीमार रहती है..? भाई कंपाउंडर है तो गाहे-बगाहे बहन पर अपनी डाक्टरी झाड़ लेता है, बहन ठीक भी हो जाती है, नवीन को इस बात का अभिमान है कि वह ऐसी परिस्थितियों को भी आसानी से हेंडल कर लेता है। ‘नवीन‘ की सक्रीयता और अस्पताल में भर्ती मरीजों की अच्छी-खासी तीमारदारी की वजह से पुरा अस्पताल प्रशासन उसे ही ज्यादातर कामों की जिम्मेदारी देता है। अस्पताल में आज एक नए डाक्टर की पोस्टिंग भी हुई है..! मुख्य प्रशासनिक अधिकारी ने नवीन को बुलाया....‘नवीन‘......देखों, आज से नये डाक्टर साहब...डाॅ. विकास की पोस्टिंग हमारे अस्पताल में हुई है, अब तुम इन्हीं के अंडर में काम करोगे...आओ...तुमको ‘डाॅ. विकास‘ से मिलाये देते है..!
नमस्कार डाॅ. विकास....कैसे हैं आप...? मैं इस अस्पताल का चीफ एडमिनिस्ट्रेटिव आफिसर हँू.....और ये है ‘नवीन‘...कंपाउंडर। अब से यही आपको असिस्ट करेगा।
आईये....आईये...मैं ठीक हँू...! आप कैसे है.....और ‘नवीन‘ तुम कैसे हो....।
डाक्टर ‘विकास‘ की कुर्सी के पास पड़ी बेसाखी देख.....‘नवीन‘ कुछ पलों के लिए गुम सा हो गया और फिर संभलते हुए बोला.....मैं ठीक हँू सर....। आप कैसे हैं...? पुछते हुए उसकी निगाह डाॅक्टर ‘विकास के पैरो की तरफ दौड़ गई....! उसे एक पैर कुछ पतली लकड़ी जैसा दिखा.....‘नवीन‘ से रहा न गया और, आँखों में तैरते सवाल को उसने ‘डाॅ. विकास‘ तरफ उछाल ही दिया....? सर..., ये बेसाखी....?
हाँ....‘नवीन‘......, ‘पोलियोमाईलाईटीस‘..? तुम तो जानते ही हो इस बीमारी को....जो ज़िंदगीभर के लिए टीस देती है...! ‘पोलियो....‘।, मैं ऐसा डाक्टर हँू जो दुसरों को बीमारी से निजात दिलाकर दौड़ता कर देता हूँ और खुद इस बेसाखी के सहारे चलता हूँ?(कुर्सी के पास पड़ी बेसाखी को हाथ लगाकर)। अगले ही पल खुद को मजबुत करते हुए ‘डाॅक्टर विकास‘ ने कहा- छोड़ो ये सब, तुम मुझे मेरे वार्ड में भर्ती मरीजो की फाईलें बताओं...कितने मरीज भर्ती हैं और क्या बीमारी है इनकी....ज़रा देख लूं....और लग जाएं सेवा में...।
‘नवीन‘ कहीं खो-सा गया था....उसे अपनी बहन के लिए जैसे दुल्हा मिल गया मानो....उसके दिमाग में इस समय और कुछ नहीं, बस अपनी बहन के सुनहले भविष्य के सपने पलने लगे थे जैसे....। तभी वह अचानक चैंका...जैसे उसे किसी ने आवाज लगाई हो....‘नवीन‘.....‘नवीन‘....कहां खो गए भाई.....लाओ फाईलें लाओ सब...। जी, अभी लाया डाक्टर साहब....। वार्ड भी भर्ती मरीजों की सभी फाईलें डाॅक्टर को दिखाने के बाद निर्देशानुसार मरीजों को दवाई देकर उसकी ड्यूटी खत्म कर घर पँहुचे ही....,कहाँ हैं मेरी प्यारी बहना.....रचनाआआ....ओ रचनाआ...., जी आई भय्याआआ....बेखासी के सहारे लंगड़ाते हुए ‘रचना‘....क्या बात है...? आज बड़े खुश दिखाई दे रहे हो.....? हाँ, आज मुझे तेरे उजले भविष्य के लिए उम्मीद की किरण दिखाई दी। इसलिए आज खुश हँू.....भगवान करे, तेरा घर बस जाएं.....तु दुल्हन बने.....तेरी डोली सजे....मैं खुब नाँचू-गाऊ..!, पगली.....तेरे ब्याह के ख़याल से खुश हूँ। एक बहुत अच्छा लड़का देखकर जल्दी तेरी शादी कर दूंगा। आज तो अस्पताल में लगा, जैसे मेरी ये इच्छा जल्दी ही पुरी हो जायेगी।
हाँ.. हाँ.., मैं बोझ जो हूँ आप पर....लंगड़ी, बेसाखी घसीटकर चलने वाली....बीमार रहने वाली....कौन नहीं चाहेगा ऐसे इंसान से छूटकारा..? आँखें छलकाते बोल पड़ी।
अरे...नहीं पगली.....हर भाई का सपना होता है....उसकी बहन की शादी किसी अच्छे लड़के से हो....वो महलों में जाये....राज करें....और फिर मैं तूझे ऐसे थोड़ी कहीं भी ब्याह दूंगा.....किसी अच्छे राजकुमार से ब्याहुंगा....तु मझसे दूर नहीं होगी....पगली....मैं हँू न तेरे साथ....चल अब खाना लगा दे...बहुत भूख लगी है। दोनो भाई बहन खाना खाकर अपने अपने कमरे में सोने चले जाते है...लेकिन ‘नवीन‘ की आँखों में बहन के ब्याह कि चिंता से तो ‘रचना‘ की आँखों में भाई की परेशानी की वजह से रातभर नींद नहीं आती। आँखों ही आँखों में रात गुज़र जाती है।
(2)
अगले दिन सुबह रोज़ की तरह ‘नवीन‘ डाक्टर के चार्ट के हिसाब से वार्ड के सभी मरीजों को दवाईयां देकर पेशेंट शीट में इंट्री करने के बाद दवाइयों के स्टोर रूम में जाकर सबसे नज़रे चुराते हुए चुपके से कुछ महंगे इंजेक्शन जेब से रूमाल निकालकर उसमें पोटली बनाकर वापस जेब में ठंूस देता है, मेहनती और लगनशील होने की वजह से उसका अस्पताल के हर हिस्से में आना जाना आसान है, कोई उस पर शक नहीं करता...? वह अस्पताल के कंपाउंड से बाहर जा रहा ही होता है कि उस भिखारिन की नज़र फिर ‘नवीन‘ पर पड़ती है....आज ‘नवीन‘ की शारीरिक मुद्रा में कुछ अजीब सी बैचेनी झलक रही है, मेने गेट से बाहर निकल ही रहा होता है कि अचानक उसके मोबाईल की घण्टी बज उठती है.....टननटनन......टननटनन....हड़बड़ाहट में जेब में हाथ डालकर मोबाईल निकालता है......तभी जेब में रखी इंजेक्शन की पोटली नीचे जमीन पर गिर जाती है....‘नवीन‘ को इसका ध्यान नहीं रहता......हेलो....हेलो......दुसरी तरफ से......‘नवीन‘...‘नवीन‘....सुनो.....तुम्हारी बहन को हमारे अस्पताल में एडमिट किया है....उसे हार्ट अटेक आया है.....उसकी हालत ज्यादा सीरियस है...हमने ‘डाॅ. विकास‘ को काॅल किया है...वो आ रहे हैं.....तुम जल्दी आओ वार्ड में....? यह सुनकर ‘नवीन‘ के पैरो तले जैसे जमीन खिसक गई....एक पल के लिए जैसे उसकी दुनिया ही लुट गई...अगले ही पल होश संभालते हुए....दौड़कर वार्ड में जाता है......रचना.....रचना......मेरी बहन....क्या हुआ तुझे....? तु चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा.....मैं हूँ ना यहाँ......तुझे कुछ नहीं होगा मेरी बहन....। तभी डाॅक्टर विकास आकर ‘रचना‘ को देखते हैं....अपना आला लगाकर ‘रचना‘ की धड़कने चेक करते हुए......‘नवीन‘ जल्दी से आईसीयू में ले चलो....वेंटीलेटर पल लेना होगा....हालत ज्यादा खराब लगती है...सीवियर अटेक हुआ लगता है.......डाॅ. साहब, ये मेरी छोटी बहन है....इसे बचा लिजिये...मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ...प्लीज....! हाँ...हाँ...सब ठीक होगा, तुम जल्दी करो...पेशेंट को आईसीयू में शिफ्ट करो....कुछ इंजेक्शन लिखता हँू...इन्हें जल्दी से अस्पताल के दवाई स्टोर से लेकर आओ, तुरंत लगाना होंगे...! ‘नवीन‘ रचना को आईसीयू में शिफ्ट कर अस्पताल के दवाई स्टोर में इंजेक्शन लेने भागता है, वहाँ पंहूचकर देखता है कि डाॅक्टर के इंजेक्शन स्टोर में नहीं है.....हड़बड़ाहट में उसे कुछ समझ नहीं आता...., वह तुरंत इंजेक्शन के लिए अस्पताल के बाहर के मेडिकल स्टोर की तरफ भागता है.......मेने गेट सामने जैसे ही पहँूचता है......सामने वह भिखारिन हाथ में रूमाल की पोटली लिये खड़ी है....जिसमें वहीं इंजेक्शन है...जो डाक्टर ने ‘रचना‘ को लगाने के लिए लिखे थे। भिखारिन उसे बिना कुछ कहे पोटली दे देती है.....! ‘नवीन‘ आईसीयू में आकर नर्स को इंजेक्शन देते हुए ग्लानि से दहाड़े मारकर रोने लगता है।
कहानी- इंजेक्शन
लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी
No comments:
Post a Comment