Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, May 12, 2021

कहानी - आक्सीजन

 कहानी  

आक्सीजन

प्रताप सिंह ने अपने घर के आंगन में एक छोटा सा बगीचा बनाया हुआ है, और रोज़ सुबह शाम इसमें पानी देतेे हैं। उन्हें शौक है, आंगन को हरा-भरा रखने का, वे आए दिन नई किस्म के पौधे ले आते हैं और आंगन में लगा देते हैं। आज भी वे अपने आंगन में बरगद का पौधा लगा रहें हैं। एक तरफ कोने में खुरपी से मिट्टी खोद कर बाहर कर रहें थे कि तभी उनका आठ वर्षीय पोता बिट्टू उनके पास आकर कहता है.....दादाजी...ये आप क्या कर रहें हैं..? मिट्टी क्यो निकाल रहें हैं...? बिट्टू बेटा....यहां हम बरगद का पेड़ लगाएगें...! आपको पता है...बरगत से हमें आक्सीजन मिलती है...! ये आक्सीजन क्या होती है दादाजी...? प्रताप सिंह...मिट्टी खोदकर...उसमें कुछ जैवीक खाद मिलाकर उलट-पलट करते हुए....बिट्टू बेटा...आक्सीजन प्राणवायु होती है...हम जो सांस लेते हैं ना...इसमें भी हम हवा से आक्सीजन ही लेते है....। अच्छा, बताओं बेटा...? आपको पता है...हमारा शरीर किससे बना है....? हाॅं.....दादाजी....हमारा शरीर हाथ, पेर, मुहॅं से बना है...? हा...हा....हा...हा.....नहीं बेटा.....हमारा शरीर पानी और आक्सीजन से मिल कर बना होता है, आक्सीजन गैस या हवा के रूप में होती है और पानी........ये दोनों मिलकर हमारे शरीर को बनाते है....हम इन दोनों के बिना जिंदा कोई नहीं रह सकता।, अच्छा दादाजी....!

प्रताप सिंह गड्डे में बरगद के पौधे का रखकर आसपास की मिट्टी से गड्डा भरते हुए.....अं....चलो बेटा हो गया....अब यह बड़ा होकर हमे छाया और आक्सीजन देगा....लेकिन इसके लिए हमको इसकी भी देखभाल करना पड़ेगी। प्रताप सिंह अपने पोते से बात कर ही रहे होते हैं कि तभी आवाज़ आती है....? बाबुजी....ये आप क्या दिनभर आंगन में पौधो को उधल-पुधल किया करते हैं....देखिये न मिट्टी और पत्तों का कचना पुरे घर में आता है....थोड़े उंचे स्वर में दरवाजे पर खड़े प्रताप ंिसह के बेटे अनिल सिंह ने कहा..?

हो गया....हो गया....मेरा काम बेटा अनिल....! (प्रताप सिंह)

ओके बाबूजी.....आईये....नाश्ता कर लिजिये....।

कहते हुए अनिल अपना बेग उठाकर आफिस के लिए निकल जाता है। समय गुज़रता है....! अनिल सिंह अब अपने आफिस में सबसे सिनियर मोस्ट अधिकारी हो गया है....उसके पास रूतबा, पैसा, गाड़ी सब आ गया, लेकिन बाबुजी की ज़िद की वजह से नया घर नहीं लिया....। बाबूजी को अपना वहीं पुराना घर पसंद है...क्योंकि उसके आंगन में उनके लगाये पेड़ पौधे वाला सुंदर सा गार्डन है, इस गार्डन उस बरगद सहित कई पौधे अब पेड़ की शक्ल ले चुके हैं। प्रताप सिंह अब सत्तर वर्ष से अधिक आयु के हो चुके हैं, लेकिन प्रकृति के नज़दिक रहने की वजह से आज भी एकदम स्वस्थ्य और फुर्ति एैसी की पच्चीस साल के नौजवान से मात दे दें। पोता बिट्टू अब काॅलेज पढ़ने जाने लगा हैं। आज बिट्टू का ग्रेजुएशन फाईनल ईयर का रिजल्ट आने वाला है...। प्रताप सिंह बिट्टू को आवाज देते हुए!

बिट्टू....बेटा बिट्टू....कहां हो भाई....आज तुम्हारा इम्तेहान का रिजल्ट आने वाला है....।

एं...ये लो मैं वहां सारे घर में तुमको ढूंढ रहा हूॅ और तुम यहां कम्प्युटर पर लगे हुए हो.....आॅंखें खराब हो जायं्रेगी....! ज़्यादा मत चलाया करों इस कम्प्युटर को। 

हां दादाजी...।

चलो, जल्दी तैयार हो जाओ, आज मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ, तुम्हारे काॅलेज...तुम्हारा रिजल्ट जो है आज..?

कहकर प्रताप सिंह कमरे से बाहर निकल गया। बिट्टू ने भी अपना कंप्यूटर बंद किया और दीवार की खुंटी पर टंगा टावेल लेकर बाथरूम की तरफ नहाने चला गया। थोड़ी देर बाद फिर से आवाज आई....तैयार हुए की नहीं बिट्टू...? देखो...पेड़-पौधो को पानी देकर मंदिर भी जाना है....फिर काॅलेज...। सुबह के दस बज गये है। जल्दी करों...?

बिट्टू अगले पांच मिनट में तैयार हो कर आ गया और दुसरी तरफ प्रताप सिंह भी आंगन के पेड़-पौधो को पानी देकर जाने के लिए एकदम रेडी है।

चलो दादाजी.....प्रताप सिंह के हाथ में हेलमेट देकर...दुसरा हेलमेट खुद बिट्टू पहनते हुए कहता है...इसे पहल लिजिये दादाजी..! स्कुटर स्टार्ट कर....आईये दादाजी बैठिये...। प्रताप सिंह, हेलमेंट पहनकर बिट्टू से कहते हैं...मंदिर होते हुए चलना है बेटा....कोई भी शुभ ओर अच्छा काम करने से पहले भगवान के दर्शन जरूर करना चाहिए।

प्रताप सिंह और बिट्टू मंदिर के दर्शन करने के बाद सीधे काॅलेज पंहूचते हैं जहां नोटिस बोर्ड पर रिजल्ट लगा हुआ है....उसके सामने बच्चों की भीड़ है...एक दुसरे को धक्का देकर हर कोई नोटिस बोर्ड तक पंहुचने की कोशिश कर रहा है...बिट्टू, प्रताप सिंह से भीड़ के बाहर ही कहता है...दादाजी आप यहीं खड़े रहिये, भीड़ बहुत है...आप इस भीड़ में मत चलिये....मैं नोटिस बोर्ड पर रिजल्ट देखकर आता हूॅ। कहकर बिट्टू...भीड़ में खड़े काॅलेज के बच्चों के कंधे पर हाथ से पिछे की और धकेलते.हुए खुद आगे बढ़ता है, वह भीड़ को ऐसे चिरते हुए नोटिस बोर्ड के पास पंहुच जाता है, जैसे पानी में कोई पत्थर फेंके तो वह पानी की सतह को चिरकर तलहटी में चला जाता है। नोटिस र्बोर्ड के पास पंहुच कर बिट्टू अपनी जेब से रोल नंबर वाला नामांकन पत्र निकालता है ओर दुसरे हाथ रिजल्ट लिस्ट की तरफ करते हुए उंगली से अपना रोल नंबंर देखने लगता है। नोटिस बोर्ड पर लगी दो-तीन सुची में तीन-चार बार उंगली से उपर-नीचे देख लेने के बाद भी बिट्टू को अपना रोल नंबर इस रिजल्ट सुची में कहीं नहीं मिलता....उसके चेहरे से हवाईयां उड़ जाती है...वह अचानक खुद को असहज महसुस करने लगता है....और निराश सा चेहरा लेकर वापस भीड़ से टकराते हुए बाहर निकलता है। घबराता हुआ प्रताप सिंह के पास पंहुचकर....दादाजी रिजल्ट लिस्ट में कहीं भी मेरा रोल नंबर नहीं है..? 

प्रताप सिंह.....अरे क्या हुआ....इतना घबरा क्यूं रहे हो बिट्टू....रिलेक्ट रहो बेटा...गहरी सांस लो....आक्सीजन अंदर जायेगी तो घबराहट दुर हो जायेगी.....लेकिन....।

ठीक से देखा तुमने बेटा...होगा वहीं लिस्ट में होगा रोल नंबर....?

बिट्ट....नहीं है, दादाजी...मैनें....तीन-चार बार देखा...फैल और पास....दोनो लिस्ट में मेरा नंबर नहीं है।

प्रताप सिंह.....ऐसा कैसे हो सकता है....चलो....आफिस में चलकर पता करते है...रोल नंबर क्यूॅं नहीं है लिस्ट में...? आओ... कहते हुए बिट्टू और प्रताप सिंह दोनों आफिस की तरफ चल दिये।

कौन हैं यहां....कोई जिम्मेदार व्यक्ति है.......

आईये सर....कहिये....आफिस में टेबल के दुसरी तरफ ज़ोर-ज़ोर से खांसते हुए, संर्दी के मारे नाक बंद से बोलने की कोशिश करते हुए...हांफते-हांफते, पुरी तरह से चेहरा लाल, ओर एकदम बीमार बैठी महिला ने कहा।

मेरा नाम प्रताप सिंह है...और ये मेरा पोता बिट्टू है....आपके काॅलेज में ग्रेजुऐशन में पढ़ता है....लेकिन बाहर बोर्ड पर लिस्ट में इसका रोल नंबर ही नहीं है...देखिये.....बच्चे की हालत कैसी हो गयी.....घबराहट के मारे एकदम इसकी....कम से कम क्या रिजल्ट है..? वो तो लगाईये बोर्ड पर...?

सर्दी के मारे नाक से सुड़-सुड़ और साथ में हांफते-खांसते हुए.....साॅरी सर....आप बैठिये....सर बिट्टू हमारे काॅलेज का सबसे ब्रिलियंट स्टूडेंट है। और इसका रिजल्ट...खों...खों...(रूमाल से नाक पोछते और खांसते हुए) प्रिंसिपल सर के पास है....वो अखबारों में देने के लिए न्यूज बनवा रहें है....बिट्टू ने टाॅप किया है...पुर काॅलेज में बिट्टू फस्र्ट आया है। हमे गर्व है आपके पोते पर...वी आ...आ...आ...आर प्राउड आॅफ हिम...। मैं आपके बिट्टू के रिजल्ट की शीट का दुसरी काॅपी देती हूॅं....ये लिजिये...।

यह सब सुनते ही प्रताप सिंह के चेहरे पर सागरभर खुशी दौड़ गई...बिट्टू ने तुरंत प्रताप सिंह के पैर छू लिये...। अरे...अरे...जीते रहो बेटा...खुब तरक्की करो...देखा.....तु वैसे ही घबरा रहा था...काॅलेज में टाॅप किया है तुने...चल अब घर...वापस चलते हुए फिर से मंदिर में चलकर भगवान के दर्शन करना और फिर तेरे पापा अनिल को भी ये खुशखबरी देना। चल....और चेहरे पर अप्रतीम खुशी लेकर काॅलेज के आफिस से बाहर निकल गये।

उधर प्रताप सिंह के जाते ही आफिस में बैठी महिला ने दवाई लेने के लिए अपना पर्स खोला और दवाई खाने के लिए निकाली....और....है भगवान...कितना सर्दी-जुकाम....कहा से हो गया ये...डाक्टर की रिपोर्ट भी देखू...क्या आया है जांच रिपोट में......रिपोर्ट देखकर उसकी आॅंखें एकदम खुली की खुली रह जाती है..? ये क्या....रिपोर्ट में तो भयानक जानलेवा संक्रमित बीमारी की पाजीटीव रिपोर्ट.....?

उधर प्रताप सिंह और बिट्टू खुशी के मारे फूल के कुप्पा हुए जैसे घर पंहुचते है....और दोनो खाना साथ खाते हैं...खाने के बाद....बिट्टू अब में अपने कमरे मंे जा रहा हूॅं....कुछ थकावट हो जैसा लग रहा है....थोड़ी देर आराम करूंगा...कहते हुए प्रताप सिंह अपने कमरे की तरफ चल देता है और बिट्टू अपने दोस्तों को फोन कर काॅलेज में टाॅप करने की खुशखबरी देने लगता है।

शाम होते होते प्रताप सिंह के कमरे से कराहने की आवाज आने लगती है। बिट्टू यह सुन तुरंत अपने दादा के कमरे की तरफ भागता है, दादाजी....दादाजी...क्या हुआ.....जैसे ही वह कमरे में दाखिल होता है...देखता है कि.....!

प्रताप सिंह जोर जोर से सांसे ले रहा है.....ज़ुकाम के मारे सुड़-सुड़ और रह-रह कर खाॅंसी से हालत खराब है।

दादाजी आप ठीक तो हैं...क्या हुआ आपको..... प्रताप सिंह के हाथ पर बिट्टू अपना हाथ रखता है....अरे...दादाजी आप की तबीयत तो खराब है.....कितना गरम हो रहा है आपका शरीर......रूकिये मैं पापा को फोन करता हुॅं.....आपको हास्पिटल ले चलते है.....

हैलो.....पापा......, हाॅं, बिट्टू बोलो.......

पापा, दादाजी की तबीयत खराब है, आप जल्दी आईये, हास्पिटल ले जाना पड़ेगा......है भगवान...क्या हुआ बाउजी को....रूको मैं अभी आता हॅंू। अगले ही कुछ मिनटों में अनिल सिंह अपने पिता प्रताप सिंह के पास पंहुचता है.....क्या हुआ...बाउजी...आप ठीक हैं..? बिट्टू, जल्दी से कार निकालो....चलिये उठिये बाउजी....हास्पिटल चलते है.....! उधर प्रताप सिंह एकदम बेसुध...? जैसे-तैसे अनिल के कंधे का सहारा लेकर खड़े होते है और अनिल धीरे-धीरे के साथ कार की तरफ बढ़ते हैं, बिट्टू भी कार का दरवाजा खोलकर वापस आकर प्रताप सिंह को सहारा देकर कार मैं पीछे की सीट पर लेटा देता है।

अस्पताल पंहुचकर.....डाॅक्टर साहब......डाक्टर साहब...देखिये बाउजी को क्या हुआ....डाॅक्टर चेकअप करते है....इनको एडमिट करना होगा....सिवियर इंफेक्शन लगता है....आप जाईये काउंटर से एडमिट करने की प्रोसेस कर लिजिये....! अनिल सिंह पेशेंट भर्ती करने की सारी प्रक्रिया पुर कर लौैटकर क्या देखता है.....? प्रताप सिंह के मुंह पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ है, हाथ में सलाईन की सुई लगी है....दिल की धड़कन देखने के लिए सीने पर ईसीजी मशीन की काॅर्ड लगी हुई है, और डाक्टर इंजेक्शन लगा रहे है....। तुरंत डाक्टर से पुछता है.... क्या हुआ बाउजी को, ठीक हो जायेंगे ना......! इनकी हालत बहुत सीरियस है..? पुरी बाॅडी में जनलेवा इंफेक्शन हुआ है...सांस लेने में दिक्कत है....आक्सीजन देना पड़ेगी, और हमारे हास्पिटल क्या.....शहर के किसी भी हास्पिटल में आक्सीजन नहीं हैं...इस बीमारी की वजह से सारे शहर में आक्सीजन की कमी है.....?

पास ही खड़ा बिट्टू यह सब बातें सुनता है, उसे बचपन की दादाजी की वो बात अचानक याद आ जाती है, जो उन्होनें बरगद का पौधा लगाते हुए कही थी....की ये बरगद हमे आक्सीजन देता है...।

 

कहानी- आक्सीजन

लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी



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