Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, May 12, 2021

कहानी - उम्मीद का दरख़्त

 


कहानी  


उम्मीद का दरख़्त

 लक्ष्मी....ऐ...लक्ष्मी....कहाँ है....? देख लक्ष्मी....., आज मैं तेरे लिए जलेबी लेकर आया हूूँ। आज तो खूब बिक्री हुई..! कितने महकते फूल थे आज के गुलदस्तों में...! वाह मज़ा आ गया....। है ईश्वर बस ऐसे ही बरकत बख्शता रह हम ग़रीबों पर...तेरा बहुत एहसान हम पर। लेकिन लक्ष्मी कहाँ चली गई....लक्ष्मी.....एै....लक्ष्मी.....! (राम आसरे)

आइइइईईई.....क्या हुआ.....क्यों इतना शोर मचा रहे हो....। मैं पिछे की दिवार को लीप-छाब रही थी.....कितनी सीद आने लगी दिवारों से...पुरा घर गीला हो जाता है....इस मौसम....?

कब से कह रही हँू......घर की दीवारें पक्की बनवा लेते हैं....ईंट-गारा कब तक टिकेगा....? हमारे सपनों के जैसे हर सुबह इनसे भी टूटकर मिट्टी बिखरने लगती है......? (लक्ष्मी)

बनवा लेंगे....जल्दी ही....! तु धीरज धर....

लक्ष्मी....देख....आज मैं जलेबी लाया हँू। आज महकते फूलों के पुरे चैदह गुलदस्तों की बिक्री हुई। ले.....ये बचे हुए तेरह सो पचास रूपये संभाल कर रख दें...! जरूरत के समय बचत ही काम आती है। और फिर हमको अपने घर की दीवारों को भी पक्का करवना है....ले.....रख ले....पाई-पाई जोड़कर ही घर बनता है।

जलेबी की थैली लक्ष्मी को देकर....चल अब खाना परोस दे.....मैं हाथ मुँह धोकर आता हँू...! (राम आसरे)

तभी घर के बाहर से मुनादी की आवाज़ आती है?

सुनो...सुनो...सुनो.....सरकारी फरमान है....गौर से सुनननो....मौसम विभाग के अनुसार....देश में सुखा पड़ने की आशंका हैएएए.....? सुखे और अकाल से निपटने के लिए सरकार को धन की जरूरत हैएएए...! सभी लोग अपनी जमा पुँजी सरकारी खजाने में जमा कर देंएएए.....नहीं तो देशद्रोही मानकर जेल में डाल दिया जायेगा...? सुनो.... सुनो..... सुनननोओओ....।

हाय राम...! ये क्या...?

हम अपना पैसा सरकार को दे देंगे....? तो हम क्या करेंगे....हमें अपना घर बनवाना है..! और भी घर के खर्चे है....बड़ी मुश्किल में मेहनत मजदुरी करके तो अपना पेट पालते है.....ये कैसी निर्दयी सरकार है....?

अरे क्या हुआ लक्ष्मी.....ला खाना रख जल्दी, बड़ी जोर की भुख लगी है....?

भुखी तो सरकार हो गई है हमारे खुन की......? सुना तुमने....(लक्ष्मी)

क्या....? क्या हुआ.....? अचानक से क्यों इतनी आगबबुला हो रही है...? कौनसी आफत टुट पड़ी आसमान से....? (राम आसरे)

आसमान से ही तो टुटी है.....? हम ग़रीब लोग, बड़ी मुश्किल से अपने लिए दो जुन की रोटी की जुगाड़ कर पाते हैं...? ठीक से खाने को नहीं...ओढ़ने-पहनने को नहीं... तुम्हारे दो जोड़ी कपड़े खरीदने के लिए कब से सोच रहे हैं...अब तक नहीं ला पाये...? चारपाई टूट गई....उसे ठीक करवाना है....कच्चे टूटे बर्तन में खाना बनता है....स्टील के बर्तन लाना है...और ये सरकार है कि...आम जनता पर ही जुल्म ढाने वाली है...? बताओ.....? अब हमको अपनी जमा पुँजी सरकार को देना होगी...? कोई अपने घर में रूपया जमा नहीं कर सकता...? आँखों में आँसू भर....रामआसरे को खाना परसते हुए बोली...!

कोई बात नहीं.....ईश्वर पर भरोसा रखो......ऊपरवाला सब ठीक करेगा....! तुने सुना है न वो कहते कि ऊपरवाला सबका ध्यान रखता है, तो हमारा भी रखेगा। देख, हमारे पास खेती-बाड़ी नहीं...., कोई और आमदनी नहीं...., पुरे गाँव में सबसे गरीब.....ले-देकर कुल जमा यह दो कमरों का घर ही है...हमारी जमा पुँजी..! अच्छा है....सरकार ने जमीन जायदाद भी नहीं माँग ली जनता से....? और इसके बाद तो सारे गाँव में सब एक बराबर हो जाएंेगे....! क्या गरीब...क्या अमीर..., सब एक। तकलीफ तो उनकी है....जिन्होंने तिजोरी भर रखी अपनी काली-सफेद कमाई से..? हल्के अनमने मन से खाना खाते हुए रामभरोसे ने पत्नी से कहा- ला...ले...आ....जितना रूपया है...हमारे पास....तो दे आऊ सरकारी खजाने में...।

रामभरोसे अपनी सारी जमा पुँजी सरकारी खजाने में जमा कर आया। घर आकर देखता है...लक्ष्मी सुबक कर रो रही है...और बड़बड़ाते हुए सरकार को कोसती गालियां निकाल रही है। ......चल सो जा अब...रात होने को है.....ना जाने कल से ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी....अकाल देश में ही नहीं....हम सब के जीवन में पड़ने वाला है....क्या होगा....कैसे होगा ....? है राम.....कृपा करो....! बुदबुदाते-बड़बड़ाते दोनों सो गए...लेकिन नींद जैसे....उसे तो अकाल ने अभी से लील लिया हो.....आने का नाम ही नहीं ले रही थी...? सारी रात आँखों ही आँखों में कट गई।

गरीबी के हालात में दोनों अपना जीवन गुज़र बसर कर रहे थे, दिन बीता..., महीना बीता... आशंका सच साबित हुई....अकाल पड़ा....आसमान से पानी बरसने का नाम नहीं लेता.....जाड़े के मौसम मंे भी चिलचिलाती धुप...? पशु-पक्षी पानी को प्यासे....खेत-खलिहान सुखे....हवा का नामो निशान नहीं....,तो वहीं दुसरी और इस दौरान गाँव में चोर लुटेरों ने भी खूब आंतक मचाया.....लोगों के घरो से बर्तन, सामान और राशन की चोरियां होने लगी...? एक सुबह जैसे ही लक्ष्मी की आँख खुली.....

हाय राम......ज़ोर-ज़ोर से दहाड़ मारकर छाती पिटते.....ये क्या हो गया.....हरामखोरों ने खाने को भी नहीं छोड़ा....सब चोरी कर लिया.....देखो...देखो तो....सुनो...उठो....अंअंअंअअअ...नाशपिटों ने कुछ नहीं छोड़ा....सब ले गये......है भगवान...इससे तो अच्छा मौत दे दे....फांके में तो यूं भी न जी सकेगें। सुनोओओ...उठो....!

क्या हुआ...सुबह-सुबह क्यूं इतना रो रही है लक्ष्मी.....ऐसा क्या पहाड़ टुट पड़ा है..?(रामभरोसे)

नाशपिटे सब ले गये....राशन, बर्तन.....सब...?(लक्ष्मी)

दो महिनों से नून रोटी खाकर बसर कर रहे थे.....वो भी ले गये? अब क्या होगा...?

रामभरोसे, सुनकर दंग रह जाता है....थोड़ी देर गुमसुम....,फिर संभल कर.....

चिंता न कर....ऊपर वाले ने पेट दिया है...वहीं कुछ न कुछ इंतजाम करेगा...!

अगले सात दिन तक सिर्फ पानी से पीकर खाते-सोते.....दोनों सिर्फ आसमान निहारा करते......कब बरखा होगी...कब फुल खिलेंगे.....

अब तो हड्डियां दिखने लगी दोनों की....शरीर में जान ही न रही मानो...? लेकिन विश्वास का पक्का रामभरोसे....हिम्मत नहीं हारता....घर के बाहर माथे पर हाथ धरे बैठा था कि....अचानक कहीं से माथे पर पानी की बुंद टपकी....नज़रे उठाकर आसमान की तरफ देखा तो बादल आ रहे थे.....थोड़ी ही देर में मानो करिश्मा हो गया....बिजली की गड़गड़ाहट होने लगी....और देखते ही देखते ज़ोरदार बारिश होने लगी.....रामभरोसे चिल्लाया......लक्ष्मीईईईई.....लक्ष्मीईईईई....लक्ष्मी देख....मैं न कहता था... ऊपरवाला सबकी सुनता है....देख बारीश होने लगी बाहर......ला जल्दी कपड़े दे....मैं जाकर देखू....दरख्त को........?

रूआंसी आँखों से....खुशी के मारे लक्ष्मी के आँसू छलक पड़े...बोली-कपड़े कहाँ हैं......यही जो तन पर है....यही बचा है हमारे पास...बाकी तो सब लूट ले गये...?

कोई बात नहीं....मैं एैसे ही जाता हँू.....! रामभरोसे दरख्त के पास आकर देखता है....बारिश में तरबतर दरख्त पर फूल खिलने को हैं.....यह देखकर खुशी के मारे वह चार फर्लांग कुदने लगा....और भागकर घर आकर...देख लक्ष्मी मैं न कहता था...कि ऊपर भगवान है और निचे दरख्त.....अब फिर अच्छे फुल खिलेंगे...फिर गुलदस्ते बेचकर खुब कमाई होगी, खुब हरियाली होगी, खुब खुशहाली होगी।

कहानी- उम्मीद का दरख्त

लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी




 

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