कहानी
पाॅंच रूपये का बंटी
मनोकामना पूर्ण महादेव मंदिर के मुर्तिकक्ष में पंडित के हाथ कीं पुजा थाली में पाॅंच रूपये का सिक्का आकर गिरता है। यकायक पंडित अपनी नज़र भगवान की मुर्ति से हटाता और देखता है, मुर्ति कक्ष के बाहर से एक जोड़ा खड़ा है। पुरूष हाथ जोड़े खड़ा है तो वहीं महिला के हाथ में फूल-प्रसाद की टोकरी है, जिसे वह माथे पर लगा कर मुर्तिकक्ष की तरफ शीश झुका रही है। पंडित तुरंत कुछ मंत्रों का उच्चारण शुरू कर इस दंपति को आशीवार्द देने की मुद्रा में आ जाता है, फुल-प्रसाद की टोकरी लेने के लिए हाथ बढ़ाता है, और कहता है... भगवान सभी की इच्छा पुर्ण करते हैं....., आंखे बंद कर मन में भगवान का पवित्र मन से नाम लेकर अपनी मनोकामना कहंे, भगवान अवश्य पुर्ण करेंगे...!
इतना कहकर पंडित...दंपत्ति से....अपना नाम बताईये....अ...जी....पंडित जी, मैं अजय और ये मेरी पत्नी कविता है।
पंडित दोनो को नाम उच्चारते हुए भगवान की प्रतिमा पर फुल अर्पित कर प्रसाद को प्रतिमा के सामने निचे रखकर फिर कुछ मंत्र कहने लगता है...ओम............ओम.......आमे.......भगवान मनोकामना पूर्ण महादेव आपकी मनोकामना पूर्ण करेंगे। हाथ जोड़ लिजिये भगवान के।
अजय और कविता हाथ जोड़ कर, सत झुकाते हुए मंदिर से बाहर की ओर जाने लगते है।
(अजय और कविता की शादी को दस साल हो गये है। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं है। अजय पढ़ा लिखा नौजवान है, जो एक आई टी कंपनी में काम कर अपना जीवन यापन कर रहा है।)
मंदिर से बाहर निकलते हुए कविता, अजय से कहती है..... तुम ना....एकदम कंजुस हो.....। भगवान के मंदिर में भी पाॅंच रूपये चढ़ा रहें हो केवल, सौ रूपये का एक नोट चढ़ा देते.....शायद हमारी भगवान सुन ले, और हमे बच्चा हो जाये..?
कितने साल हो गये हमारी शादी को, अभी तक हमको संतान सुख नहीं मिला....! सब कर लिया हमने, हर मंदिर में माथा टेका, वैद्य, हकिम, डाक्टर क्या....सब तो कर चुके है..? तभी अजय कहता है.....
अजय पलटकर कविता से कहता है, भगवान में आस्था होनी चाहिये, श्रद्धा होनी चाहिये, भगवान चढ़ावे से नहीं खुश होते है...
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अजय फिर कहता है.....देखो कविता, मैं कई बार कह चुका हूॅ, ये मेडिकल प्राब्लम है, हमारा डाक्टर से ईलाज चल रहा है ना...हो जायेगी ये प्राब्लम भी जल्दी ठीक....तुम ज्यादा चिंता मत करो....और चलो अब जल्दी घर....मुझे आफिस भी जाना है..!
अजय चलने को तैयार होता है और जैसे ही अपनी स्कुटर स्टार्ट करता है, तभी कविता की नज़र मंदिर के पास बह रही नदी किनारे कुछ लोगों के झुण्ड पर पड़ती है, वो तुरंत अजय से कहती है....रूको, देखों......वो नदी में लोग क्या कर है....इतनी भीड़ क्यों है वहां...? अजय कहता है...अरे...कविता......होगा कुछ...हमें क्या करना है....तुम चलों ना...!
नही.....नहीं.., मुझे देखना हैं, इतनी सारी लेडिज...जेट्स....रूको न प्लीज......!
अजय अपना स्कुटर वापस स्टेण्ड पर लगाकर...कविता को थोड़ा नदी किनारे के पास लेकर जाता है....और उसे देखते-समझते देर नहीं लगती.....?
वह चैंक जाता है.....उसके मुंह से बरबस निकलता है.....ओह....भगवान इस बच्चे की आत्मा को शांती दें......!
चलो...चलो.....कविता.., मैं बताता हूॅं...तुमको...!
वापस स्कुटर की तरफ लौटते हुए,वह कविता से कहता है.....ये यहाॅं की प्रथा है, जब कोई छोटा बच्चा, असमय मर जाता है, किसी भी बिमारी या किसी एक्सीडेंट, या ऐसी ही किसी और दुर्घटना से...तो उसकी लाश का अंतिम संस्कार एैसे ही किया जाता है....उसकी लाश को ऐसी किसी टोकरी में रखकर उसके पास एक सिक्का रखकर नदी में बहा दिया जाता है।
यह सुनते ही अत्यंत भावुक स्वभाव की कविता की आंखें डबडबा जाती है......और उसके मुंह से निकलता है....भगवान इतना निर्दयी भी है। अगले ही पल अपने दोनो हाथों से अजय की बांह पकड़ लेती है और दोनों स्कुटर की तरफ चलने लगते है।
स्कुटर स्टार्ट कर दोनो घर चले जाते है!
मध्यमवर्गीय परिवार के बेहद समझदार अजय और कविता आम जिं़दगी गुज़र-बसर कर रहे हैं, लेकिन शादी के दस साल बाद भी दोनों में प्यार, सामंजस्य तथा एक-दुसरे के लिए सम्मान की काई कमी नही है। हालांकि संतान नहीं होने से दोनो पति-पत्नी कुछ परेशान जरूर रहते है लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता हैं और कविता की एक दिन अचानक तबीयत खराब होने लगती है, वह तुरंत ही अजय को उसके आफिस फोन करती है....हैलो....अजय.....जल्दी घर आओ....मेरी तबीयत खराब हो रही है....बहुत उल्टियां हो रही है......! अजय अपना काम बंद कर अपने बाॅस से परमिशन लेकर घर भागता है। घर पहंुचकर ...क्या हुआ कविता.....तुम ठीक तो हो ना.... चलो तुमको डाक्टर के पास ले चलता हुॅं। दोनो डाक्टर के पास पंहुचते है....डाॅक्टर कविता का चेकअप करती है....और ड्रेसिंग रूम से बाहर निकलकर हाथ पौछते हुए......बधाई हो अजय....कविता गर्भ से है....तुम बाप बनने वाले हो.....। यह सुनते ही अजय की खुशी का ठिकाना नहीं रहता....वह भागकर तुरंत ड्रेसिंग रूम में पहुंचता है.......सुना कविता तुमने डाक्टर ने क्या कहा......तुम माॅं बनने वाली हो....कांग्रेचुलेशन स्वीटहार्ट...मुअअअआाााह....! आज मैं बहुत खुश हॅू।
अजय कविता को घर लेकर आता है और, अब तुम अपना ध्यान रखों। अब बिल्कुल काम नहीं करना है....घर में कामवाली बाई लगवा लो, पर अब तुम कोई भी भारी काम नहीं करोगी।
धीरे धीरे समय गुज़रता हैं। और ठीक नो महीने बाद कविता एक सुंदर से हष्ट-पुष्ट बेटे को जन्म देती है। अजय की खुशी का ठिकाना नहीं रहता...। वह नाचने लगता है, अपने अपने बेटे का गोद में उठाकर चुमते हुए प्यार करने लगता है.....मुउउउअअआाााा...,गोदी में झुलाते हुए गाना गाने लगता है....तुझे सुरज कहूं या चंदा...तुझे दीप कहूं या तारा....मेरा नाम करेगा रोशन...जग में मेरा राजदुलारा......मुउउउअआााााा...। ये गाते गाते....बेटे को कविता के पास लेटा देता है, और कविता से कहता है, मैं मंदिर जाकर आता हॅंू। कहते हुए अजय सीधे मनोकामनापुर्ण महादेव के मंदिर में पंहुचता है...और मुर्तिकक्ष के बाहर साष्टांग दण्डवत होकर शीश नवाने लगता है...उठकर हाथ जोड़ते हुए, बिना कुछ कहे पाॅंच रूपये का सिक्का भेंट पात्र में डालकर उल्टे पैर दोड़कर कविता के पास पंहुचता है और कविता से कहता है, अब तुम अपने खाने पीने का और ज्यादा ध्यान रखोगी, कोई काम नहीं करोगी, बेटे की ओर तुम्हारी दोनो की सेहत का ध्यान रखना पडे़ेगा....। कविता पलटकर कहती है....जो आज्ञा मेरे पतिदेव....अच्छा सुनो, इसका नाम क्या रखें... देखो तो एक दम गोलू-मोलू सा तुम पर गया है...मेरे जैसी तो बस इसकी नाक है...लेकिन बाकी सब तुम पर गया है....!
अजय- इसका स्कूल में नाम हम अलग रखेंगे...बाद में अच्छे से सोचकर और जन्मकुंडली में राशी के हिसाब-किताब को देखकर। लेकिन अभी से ये हमारा बंटी है। आज से इसका नाम बंटी.....मुउउउअआआाााा।
आज के दिन अजय और कविता बेहद खुश है, आखिर शादी के दस साल बाद जो उनके यहां कोई संतान हुई है। अगले दिन अजय आफिस में पुरे स्टाफ के लिए मिठाई लेकर जाता है, और बहुत खुश होते हुए सबको मिठाई देते हुए कहता है...ये लिए बाॅस आप बड़े पापा बन गये,...लो समीर, रजनीश, विकास, (आफिस के अन्य कर्मचारी) तुम भी मिठाई खाओ....तुम सब चाचा बन गये हो।
अरे...बधाई हो अजय हो सर...मिठाई के साथ पार्टी बनती भी बनती है अब तो......
अजय- हाॅं....हाॅं.....जरूर...पार्टी भी होगी..! बड़ी पार्टी करेंगे।....कहते हुए अजय अपनी टेवल पर जाकर काम करने लगता है।
समय गुज़रता है, अजय ओर कविता दोनो बंटी की देखभाल ओर हद दर्जे की केयर करने लगते है...।
अब बंटी दो एक साल का हो गया है। सब ठीक चलता है।
और अचालक एक दिन टीवी और पेपर्स में समाचार आता है कि हमारे देश में एक भयंकर बीमारी का प्रवेश हो गया है। ‘कोरोना‘..!
क्या बच्चे क्या बड़े सब इसकी चपेट में आ रहे हैं, और यह जानलेवा बीमारी हैं....इसके संक्रमण से सीधे जान जाने का खतरा है...इसलिए सभी लोग सावधानी बरतें...थोड़ी भी बीमारी का अंदेशा या लक्षण हो तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं।
अजय....समाचार को देखा-अनदेखा, सुना-अनसुना कर देता है।
लेकिन अगले लगभग पन्द्रह दिनों में ही इस बीमारी से देशभर में कोहराम मच जाता है, लाखों लोग इससे संक्रमित हो जाते है। हजारो लोगों की जान चली जाती है। सरकार को भी समझ नहीं आता, इस बीमारी को कैसे रोका जाये।
एक दिन देश का प्रधान टीवी पर आकर घोषणा करता है कि इस गंभीर बीमारी ने हमारे देश को भी चपेट में ले लिया है और दुनिया के कई देश इससे झुझ रहे हैं। इस बीमारी से बचने का तरीका यही है की लोग घरों से ना निकले, एक दुसरे से दुरी बनाकर रखें। मुहं पर कपड़ा या मास्क पहने। देश के सारे सरकारी और प्रायेवट दफतर को अगले आदेश तक के लिए बंद किया जाता है।
यह सुनकर अजय....अरे ये क्या..... ऐसे, कैसे हो सकता है.....सब बंद हो जायेगा तो लोग क्या करेंगे। कहां जायेगें।
वह अपने आफिस बाॅस को फोन लगाता है...।
अजय-...हैलो....,बाॅस...यह क्या समाचार आ रहा है टीवी पर...की सब सरकारी और प्रायवेट दफतर बंद हो जायेंगे...तो काम कैसे होगा।
बाॅस- हाॅं, अजय...हमारे आफिस के लिए भी सरकारी लेटर आ गया है...आफिस बंद करना है....अब हमें घर रहकर ही काम करना होगा। बाकी देखते है....कंपनी के बोर्ड मेंबर और मालिक क्या कहते है....लेकिन तुम चिंता मत करो....तुम्हारे फोन पर मैसेज आएगा कि क्या करना है....ठीक है....!
अजय- ओके...ठीक है बाॅस..।
अगले ही दिन से इस आदेश का पालन देश के सभी सरकार और प्रायवेट दफतर करने लगते है। तो वहीं दुसरी और सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिए जद्दोजहद करती रहती है। समय गुज़रने लगता है। देश के आर्थिक ढांचे की कमर टुटने लगती है। दफतरों को बंद रखने की घोषणा के चलते कोई दफतर नहीं खुलता और समय गुज़रने लगता है...! इस सब में तीन महीने गुज़र जाते है। प्रायवेट कंपनियों के हाथ पैर फूलने लगते है। देश की कई कंपनिया अपने एम्प्लाई को एक महिने का वेतन देकर नौकरियों से निकलना शुरू कर देती है। इधर अजय घर से ही अपना आफिस का काम कर रहा होता है....कि एक दिन आफिस से बाॅस का फोन आता है...
बाॅस-.....हैलो, अजय......
अजय-..जी बाॅस
बाॅस- अजय कंपनी की हालत बहुत खराब हो गई है, मैनेजमेंट ने साठ परसेंट कर्मचारियों की छटनी करने का निर्णय लिया है, इन सभी को एक महिने की तनख्वाह देकर, नौकरी से रिलिव किया जा रहा है, इसमें तुम्हारा भी नाम है अजय...। यह सुनकर अजय चैंक जाता है.....!
अजय- अरे...बाॅस...ये कैसे...मेरा तो काम भी परफेक्ट है....आप खुद ही देखते है...अपना सब काम मैं टाईम पर करके देता हॅू।
बाॅस- सही है अजय, लेकिन क्या करें...?, मेनेजमेंट का फैसला है।, एक महीने की एडवांस सेलेरी तुम्हारे बैंक अकांउट में क्रेडिट हो जायेगी और रिलिविंग लेटर तुम्हे मेल कर दिया जायेगा।
यह सुन अजय मायुसी के भाव में आ जाता है, और खुद को कुछ परेशान सा महसुस करने लगता है।
तभी अचानक कविता की आवाज आती है.......सुनो........अजय..........?
बंटी दो दिन बहुत रो रहा है......उसको सर्दी, खांसी भी बहुत हो रही है, मैं दवाई दे रही थी......उससे थोड़ी देर ठीक रहता लेकिन...फिर वैसा ही....प्लिज देखों ना क्या हुआ इसको.....?
अजय तुरंत उठ कर बंटी के पास जाता है, उसे रोता देख और परेशान हो जाता है....और कविता को डांटने लगता है....तुमसे ज़रा भी ध्यान रखते नहीं बनता...! झल्लाते हुए......बंटी बीमार है और तुम हो कि....! चलो, अस्पताल डाक्टर के पास....!
अजय और कविता बंटी को अस्पताल डाक्टर के पास लेकर जाते है......डाक्टर बंटी का चैकअप करता है, और तुरंत कुछ इंजेक्शन लिखकर अजय को कहता है......... ये इंजेक्शन तुरंत लेकर आओ.....बच्चे की हातल खराब है...मैं कुछ जांच भी लिख रहा हूॅं....इसको करवाना होगा और बच्चे को अस्पताल में एडमिट करना होगा।
अजय- डाक्टर साहब, जो करना है किजिये.....प्लीज...लेकिन बंटी को ठीक कर दिजिये.....।
डाक्टर- घबराओ मत...सब ठीक होगा...पहले जाओ...फार्मेलिटी पुरी करके बच्चे को इंजेक्शन लगवाओ...जांच करवाओं...ओर भर्ती करो।
अजय तुरंत सारी प्रक्रिया पुरी करता है और डाक्टर को इंजेक्शन लाकर देता हैकृडाॅक्टर बच्चे को इंजेक्शन लगाकर जांच के लिए लेबोरेटरी में सेंपल भेजकर अस्पताल में एडमिट कर देता है। अब बंटी को कुछ आराम है और वह गहरी नींद में सो जाता है। उधर कविता की आॅंखों में आॅंसू है...वह अजय के गले लगकर रो पड़ती है....अजय कहता है...धैर्य रखो...ठीक हो जायेगा बंटी।
अगले दिन बंटी की जांच रिपोर्ट आती है, जिसमें बंटी कोरोना से संक्रमित पाया जाता है.....?
अजय को रिपोर्ट बताते हुए डाक्टर.....देखिये अजय जी...आपके बेटे के टेस्ट में कोरोना की बीमारी का संक्रमण आया है। बंटी को आईसीयु में भर्ती करना होगा.....और विशेष देखभाल और ईलाज की जरूरत होगी।
अजय- डाक्टर साहब, जो भी करना है, किजिये.....मेरे बेटे को अच्छा कर दिजिये आप....!
डाक्टर- ठीक है, घबराओ मत...सब ठीक होगा।
अजय खुद का ढांढस बंधाता है...और एक लाचार से पिता की तरह अपने बच्चे के पास आकर बैठ जाता है।
अस्पताल में लगातार एक सप्ताह तक भर्ती रहने और तमाम तरह की दवाईयां व ईलाज करने के बाद भी बंटी की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है। इधर अजय और कविता की हालत मानसिक ओर शारीरिक हालत भी खराब होने लगती है।
एक दिन सुबह-सुबह अचानक बंटी रोने लगता है, और उसकी खांसी है कि बंद होने का नाम ही नहीं ले रही....? अजय और कविता तुंरत भाग कर डाक्टर के पास जाते है, डाक्टर साहब.....डाक्टर साहब.....प्लीज देखिये बंटी को क्या हुआ........रोना बंद हीं नहीं कर रहा है ओर ज़ोर ज़ोर से खासी हो रही है उसको।
डाक्टर अपना आला लेकर, अजय के साथ बंटी को देखने भागकर आता है.....।
तीनों आकर देखते है कि बंटी एकदम चुप है....रोने की आवाज भी नहीं आ रही.....डाॅक्टर अपना आला बंटी के सीने पर लगाकर देखता है....उसे बंटी में कोई हलचल नहीं दिखाई देती....वह बच्चे के सीने में ज़ोर से पम्प करने लगता है....लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता....सारी कोशिश करने के बाद डाक्टर अजय से कहता है....साॅरी.....बंटी अब इस दुनिया में नहीं रहा.....?
यह सुन कविता ज़ोर से दहाड़ मारकर रोने लगती है....अजय भी आपे में नहीं रहता....उसकी आॅंखो से झर-झर आॅंसू बहने लगते है...इतने में कविता देखता है...कि कविता बेहोश हो गई है.....डाॅक्टर उसे उठाते है....मुंह पर पानी मारते है...थोड़ी देर में कविता को होश आता है, लेकिन यह क्या.....उसकी दुनिया तो जा खत्म हो चुकी है...उसका बंटी अब इस दुनिया में नहीं है....अजय कविता को ढांढस बंधाता है। कविता और अजय दोनो अपने छोटे से दो साल के बेटे बंटी की लाश लेकर अस्पताल से निकलते है, और अपने शहर की उसी नदी में एक टोकरी में रख देते है। अजय अपनी जेब में हाथ डालता है, बंटी के पास रखने के लिए सिक्का चाहिये था, लेकिन अपनी सारी जेब देखने के बाद उसकी जेब में कोई सिक्का नहीं मिलता, तब कविता अपने पर्स में हाथ डालती है और उसके पर्स से पाॅंच रूपये का सिक्का निकलता है.....! अजय और कविता....बंटी को सफेद कपडे़ में लपेटकर उसे टोकरी मे लिटाते है और उसके पास पाॅंच रूपये का सिक्का रखते है। टोकरी को दोनो अपने हाथों से नदी में अंदर की और धकेल देते है।
लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी
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