Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, May 12, 2021

कहानी - प्रोफाईल लाॅक

 कहानी  

प्रोफाईल लाॅक

निबेदिता की उम्र अभी बत्तीस वर्ष है, तथा असमय बीमारी से अपने पति की मृत्यु के बाद एक छोटे से एक कमरे के मकान में अपने दस वर्षीय बेटे ‘बिप्लव‘ के साथ अकेली किराये से रहती है। ‘निबेदिता‘ के पिता ने दुसरी शादी की है, और उनकी पहली पत्नी, (निबेदिता की मां) का देहांत हो चुका है। अब ‘निबेदिता‘ का अपने पिता और परिवार से ज्यादा संपर्क नहीं हैं। ‘निबेदिता‘ ज्यादा पढी लिखी नहीं है तथा एक मोबाईल की दुकान में नौकरी करके अपना गुजारा करती है। मात्र आठ हज़ार रूपये की तनख्वाह में ‘निबेदिता‘ अपना घर भी चलाती है और बच्चे की पढ़ाई लिखाई व पालन पोषण भी करती है।

अपनी इस ज़िंदगी से ‘निबेदिता‘ बहुत परेशान है, और कभी उसके मन में आत्महत्या करने का ख्याल भी आता है। लेकिन फिर अपने छोटे से बेटे ‘बिप्लव‘ की तरफ देखकर अपनी आॅंसू पी जाती है। ना अच्छा खाने को है, ना अच्छा पहनने को है, और शौक पुरे करना तो जैसे उपर वाले में कुंडली में लिखा ही नहीं। ‘निबेदिता‘ को दुख इस बात का है कि वह अपने शौक तो ठीक...? लेकिन अपने छोटे से बच्चे ‘बिप्लव‘ के शौक भी पुरे नहीं कर पाती है। हर रोज़ सुबह-सुबह जब फेरी वाला गुब्बारे लेकर उसकी गली में आता है और ‘निबेदिता‘ का बेटा उसे लेने की ज़िद करता है, तब वह उसे कभी डांट कर तो कभी प्यार से समझाती है, कि बेटा तुम्हारे बर्डे पर हम एक साथ बहुत सारे गुब्बारे लेंगे, और घर सजाकर केक भी काटेंगे। छोटा सा मासुम कुछ देर सिसक कर फिर चुप हो जाता है।

एक रोज़ ‘निबेदिता‘ सुबह आठ बजे जल्दी जल्दी तैयार होकर घर का काम-काज निपटाने में लगी रही है कि तभी एक फेरीवाला उसके आंगन से आवाज़ लगाते हुआ गुज़रता है-

फेरीवाला- खिलोने वाला...बच्चों के खिलोने....गुड़िया-गुड्डू, ढपली-डमरू....ले लो खेल खिलोने...!

बिप्लव- मम्मी...मम्मी...खिलोने वाला आया बाहर....मुझे...गुडिया...चाहिये...मम्मी.....

निबेदिता- बेटा अभी नहीं, जब एक तारीख को सैलेरी मिलेगी तब जरूर दिलाउंगा, पक्का प्रामिस....मेरा बच्चा...उमममम...!

बिप्लव - नई मम्मा फिर वो खिलोने वाला नहीं आयेगा, कितने दिन के बाद तो आया है....मम्मा प्लिज...दिलवा दो प्लिज..!

‘निबेदिता‘- बिप्लव....अच्छे बच्चे ज़िद नहीं करते,,,,कहा ना दिलवा दुंगी...अभी मुझे दुकान जाना है, देर हो रही है...आप अच्छे बच्चे हो ना, ज़िद नहीं करते प्यारे बच्चे....चलो अभी मम्मा को बाय बोलो...!

इतना कहकर ‘निबेदिता‘ अपने अंदर ही अंदर खुन के आंसू पीती हुई दुकान के लिए घर से निकल जाती है। और पैदल चलते चलते रोते हुए अपनी किस्मत को कोसती है.... क्यूं एैसी ज़िंदगी दी...उपरवाले..? कुछ ही देर में ‘निबेदिता‘ दुकान पंहुच जाती है और अपने काम पर लग जाती है। ‘निबेदिता‘ के साथ ही काम करने वाली ‘अंजली‘, ‘निबेदिता‘ का चेहरा देख कर भांप जाती है, कि ‘निबेदिता‘ इतनी उदास क्यंू है आज..! उसे समझने में देर नहीं लगती और वह कहती है....यार ‘निबी...जस्ट चिल्ल...क्यूं इतना परेशान होती है सब ठीक हो जायेगा...सुन..! तु एक काम कर...तु...फिर से शादी कर लें...?

यह सुन ‘निबेदिता‘ अचानक से चैंक जाती हैं.....लेकिन मन ही मन सोचने लगती है...हज़ार बातें उसके मन में आने लगती है। एक मन कहता है कि सही भी है...,अगर कोई अच्छा लडका मिल गया तो शादी कर लेना चाहिये, कम से कम ये रोज़ रोज़ की पेरशानियों से तो छुटकारा मिलेगा...! मेरी और मेरे बेटे की ज़िंदगी सुधर जाएगी, कोई सहारा मिल जायेगा, तो घर चलाना, बच्चे को पालना, उसके खर्चे, पढ़ाई लिखाई,...ये सब झंझट से मुक्ति मिल जायेगी।

यह सोचते हुए ‘निबेदिता‘, अंजली से कहती है...बात तो ठीक है, लेकिन किससे करूं शादी...कौन करेगा.. एक बच्चे की माॅं से शादी, और कौन लेगा जिम्मेदारी हमारी। इस पर ‘अंजली‘ कहती है...तु चिंता क्यूं करती है..! आजकल सोशल मिडिया पर बहुत सी एैसी वेबसाईट है जो रिश्ते करवाती है...और उनमें अच्छे अच्छे लड़कों के प्रोफाईल बने होते है..एक बार तु रजिस्टर तो कर... हो सकता है शायद कोई अच्छा लड़का तुझे भी मिल जाये, जो तेरी और ‘बिप्लव‘ की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो जाये। सुन...तू...शादी डाॅट काम पर अपनी प्रोफाई बना और देख कुछ दिन में तेरे प्रोफाईल से मेच करती हुई कई रिक्वेस्ट आएगी।

निबेदिता का दिनभर काम में मन नहीं लगता है... वह अपनी ज़िंदगी और उसके झंझावातों के उधेड़बुन में रहती है। अनमने मन से दिनभर दुकान पर काम करने के बाद शाम को घर जाते हुए भी रास्ते में यही सब सोचती रहती है....घर पंहुचकर अपने छोटे से बेटे को देखकर तुरंत गले लगा लेती है और सोचती है कि कल को मुझे कुछ हो गया तो इस मासुम का क्या होंगा, सोचकर उसकी आॅंख भर आती है। बच्चे की ज़िम्मेदारी और जीवन के बोझ तले दबी जा रही ‘निबेदिता‘ रोम रोम सिहर उठता है, जब उसके मन में ये सब ख्याल आते है। आखिकार वह फैसला करती है कि मेट्रीमोनियल वेबसाईट पर अपना बायोडाटा डालेगी और किसी लड़के से शादी करके दोबारा घर बसाएगी और अपने व बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करेगी।

इतना सोच ही रही होती है कि उसकी दुकान में साथ काम करने वाली सहेती ‘अंजली‘ आ जाती है।

निबी...ओ निबी...कहाॅं है तु...क्या कर रही है...

सुन मेरी एक और सहेली है... उससे मेरी बात हुई, उसने बताया कि उसके भैया ने भी मेट्रीमोनियल वेबसाईट से ही लड़की देखकर शादी की है और आज दोनो खुशी खुशी रह रहे है। चल आज तेरा भी प्रोफाईल हम बनाते है...!

इतना कहकर वह पलंग पर पालथी मारकर बैठजाती है और कहती चल बता निबी...तेरी डिटेल डालते है और बनाते है प्रोफाईल..!

‘अंजली‘, ‘निबी‘ से उसकी डिटेल लेकर शादी डाॅट कर एप्लिकेशन डाउनलोड कर उसमें प्रोफाईल बनाकर डालना शुरू करती है और एक अच्छी इंप्रेशन वाली ‘निबेदिता‘ की प्रोफाईल बना देती है।

दो-चार दिन गुज़रते है, और ‘निबेदिता‘ की प्रोफाईल पर रिक्वेस्ट आना शुरू हो जाती है। समय गुज़रता है और हप्तेभर में करीब बारह लड़को की रिक्वेस्ट उसकी मेट्रीमोनियल वेबसाईट की प्रोफाईल पर आ जाती है। ‘निबेदिता‘ इनमें सी चार लड़को की प्रोफाईल को एक्सेप्ट करती है इनमंे चारो लड़के पढे़ लिखे और अच्छी नौकरी ओर बिजनेस वाले है, जिनकी सालाना इनकम दस लाख के उपर लिखी हुई है। एक दिन ‘निबेदिता‘ अपनी सहेली ‘अंजली‘ को ये बताती है, कि उसने चार लड़को की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की है और चारो लड़के बात करने के लिए मोबाईल नंबर मांग रहे है। तब अंजली कहती है... तु भी ना बूद्धू की बूद्धू ही रहेगी, अरे नंबर मांग रहें हैं तो दे ना...? किसका रस्ता देख रही है। ला मोबाईल दे तेरा, मैं इनको तेरा नंबर सेण्ड कर देती हॅू...इतना कहकर अंजली, निबेदिता के मोबाईल से चारो लड़को को मोबाईल नंबर सेण्ड कर देती है। 

अगले दिन सुबह....निबेदिता के मोबाईल की रिंग बजती है...टूननन.....टूनननन, टूननन....टूनननन

हैलो, कौन....जी, मैं आलोक बोल रहा हॅू, मुंबई से...क्या मेरी बार निबेदिता जी से हो रही है।

हाॅ...निबेदिता बोल रही हॅूकृ।

जी...आपने शादी डाॅट काॅम पर अपना नंबर दिया था....। कैसे है आप...आपने मेरी प्रोफाईल तो देख ही ली है..!

ओह...हाॅं....देखी है, आपकी प्रोफाईल....मैं ठीक हूॅ....आप कैसे है...?

आलोक- मैं ठीक हॅू...आपका एक बेटा भी हैं ना...कैसा है बेटा....क्या कर रहा है...?

निबेदिता- वो अभी सोया है, मैं बस सुबह के घर के काम करके जाब पे जाने की तैयारी कर रही हॅू, और आप क्या कर रहें हैं...आपको भी आॅफिस जाना होगा न...?

आलोक - हाॅं, जाना तो है...! लेकिन, जब से आपकी प्रोफाईल देखी है....दिल पर काबू नहीं रहा...?, आपके सुर्ख गुलाबी होंठ...झील सी गहरी आॅंखें....सुबह कि किरणों से सुनहरे बाल.....अहा....!, मैं तो मर ही न जाउ कहीं। बहूत खुबसूरत हो तुम...? जी करता है...बाहों में भर लूं और बस प्यार करता रहूॅं।

निबेदिता- अरे, ये क्या हो गया आपको सुबह-सुबह। आलोक जी, अभी तो बात शुरू ही कि हैं हमने, अभी मिलिये, जानिये, समझिये और लाईफ में आगे कैसे एक साथ चल सकते हैं उस पर सोचिये....?। अच्छा चलिये, अभी मुझे घर के काम करना हैं और फिर ड्यूटी पर भी जाना है, तो बाद में बात करते हैं।

आलोक- ठीक है... आप काम कर लिजिये, हम शाम को आराम से बात करते है...।, ओके

निबेदिता- ठीक है....बाय

निबेदिता कहकर बेटे को जगाती है, और उसे चाय देकर मन मन ही आलोक के बारे में सोचने लगती है, कैसा लड़का होगा...क्या इससे शादी करने पर मेरी ज़िंदगी की परेशानियां खत्म हो जायेंगी, क्या ये मेरे बेटे को अपने बेटे जैसा प्यार देगा...? तमाम सवाल उसके मन मस्तिष्क में आने लगते है, और वह फिर किचन की तरफ चली जाती है बेटे के लिए खाना तैयार करने।

अगले दो दिनों में तीन और लड़कों के फोन निबेदिता के पास आते है, वह धीरे -धीरे सभी से बात करना शुरू करती है, दो चार दिन सामान्य बातें और एक दुसरे के बारें में जानतें है, उसके बाद सभी लड़के हर रोज़ रात-दिन व्हाट्सएप पर मैसेज भेजना शुरू करते है। और फिर फोन से भी एक-एक कर बातें करना शुरू हो जाती है। लेकिन निबेदिता तब दंग रह जाती है जब सारे लड़के जिम्मेदारियों, शादी की बात न करके रोमांस के नाम वल्गर बातें करना शुरू कर देते है। निबेदिता इस सब से और परेशान हो जाती है। एक रोज़ शाम को मेट्रीमोनियल वेबसाईट से एक लड़के ‘प्रणब‘ को फोन ‘निबेदिता‘ के मोबाईल पर आता है, ‘प्रणब‘ भी वहीं लड़का है जिसकी प्रोफाईल ‘निबेदिता‘ ने एक्सेप्ट की थी।

‘प्रणब - हैलो.......

‘निबेदिता‘- हैलो....

मै प्रणब बोल रहा हॅू बैंगलोर से....

अच्छा...बोलिये, प्रणब जी, कैसे हैं...आप

मैं ठीक हूॅं, तुम कैसी हो...क्या कर रही हो...?

और बताओं,....तुमको क्या पसंद है..?

निबेदिता -बस, सब ठीक है...आप बताईये.....आपको क्या पसंद है...?  

प्रणब - मुझे तो बस तुम पसंद हो....! 

निबेदिता-ओह.... अभी तो हम मिलें भी नहीं, ज़्यादा बात भी नहीं हुई, अभी आप जानते ही कितना हैं मुझे...? 

प्रणब-तुम्हारा फोटो देख लिया और हो गया बस प्यार, अब और कुछ नहीं देखना..?,अब तो बस तुम ही तुम दिखाई देती हो हर तरफ..! 

तुम्हारे गुलाब की पंखड़ियों से होंठ, तुम्हारी कत्थई आॅंखें, तुम्हारे रेशमी बाल....बस जी करता है....देखता ही रहूॅं...!

तम्हारे खयाल से ही शरीर का रोम-रोम बोलने लगता है...? कितनी खुबसूरत हो तुम....बस तुमसे प्यार करता रहा रहूॅं...!

अच्छा सुनो....एक किस्स दो ना....?

निबेदिता - अरे....अभी हम मिले नहीं, बात नहीं हुई, एक दुसरे को जानते नहीं...और आप कैसी बात कर रहें हैं...।

प्रणब- तो क्या हुआ मिल भी लेंगे। मेट्रीमोनियल पर हम मिलने के लिए ही तो आए हैं..? और अगर प्यार ही नहीं तो फिर रिश्ता कैसे आगे बढ़ेगा। 

निबेदिता- ...तो प्यार ऐसे प्रोफाईल देखने से नहीं होता है। मिलिए पहले, देखिये, पहले एक दुसरे को जानना जरूरी है। एक दुसरे के बारे में जानना जरूरी है। और हम दोनों एक दुसरे का साथ अपनी जिम्मेदारियों के साथ ज़िंदगीभर निभा सकते हैं...? या नहीं। 

ये सब देखना है, उसके बाद आगे का सोचेंगे।

प्रणब फिर भी नहीं मानता हैं और रिश्ते के नाम पर निबेदिता से आलिंगन कर लेने और इसके बाद अश्लिल बातें शुरू कर देता है। इससे निबेदिता असहज महसुस करने लगती है और प्रणब को कहती है....

उल्टी सीधी बात ना करें, अभी से आप....! अभी मुझे काम है, हम बाद में बात करते है...और यह कहते हुए निबेदिता फोन काट देती है। ‘निबेदिता‘ को ‘प्रणब‘ के इरादे समझते देर न लगी...? वह सोचने लगी की, क्या मेट्रीमोनियल वेबसाईट में इसी तरह के लोग रहते है...और फिर निबेदिता दोबारा शादी के निर्णय का ख्याल करते हुए साथ ही अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोचते हुए उसकी तरफ देखती है...., उसकी आॅंखे भर आती है...वह अपने बेटे को गले से लगा लेती है। और मेट्रीमोनियल वेबसाईट से अपनी प्रोफाईल लाॅक कर देती है।

लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी



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