Dr.Mohan Bairagi

Wednesday, May 12, 2021

कहानी - अंतिम तर्पण आनलाईन

 कहानी  

अंतिम तर्पण आनलाईन

शमशान घाट के हर चबुतरे पर लाशें जल रही हैं, कुछ लाशें खाली पड़ी जगहों पर जल रहीं हैं तो कुछ के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही है,  घाट पर खडे लोग इंतज़ार में हैं कि कुछ चबुतरे खाली हो तो दुसरी लाशों का अंतिम संस्कार हो सके। विडंबना कि मरने के बाद भी सुकून से जलना नसीब नहीं इन लाशों को....? शहर के हर शमशान की यही हालत हैं....भरे पड़े हैं लाशों से...? लाशों से उठते धुएं से आसमान भर गया और आँखों में धुंध सा धुंआ लेकर भीषण गर्मी में माथे पर सफेद कपड़ा लपेटे बनियान व धोती पहने मुख्य शमशान घाट में एक चबुतरे पर बिखरी पड़ी राख में अस्थियां ढुंढते हुए विजय की आँखों से अकस्मात आँसू झरने लगे, भीतर की संवेदना उमड़कर बाहर आ रही है, मस्तिष्क में विचारों का समंदर तैर रहा है, जैसे दुनिया सिर्फ गारे, मिट्टी की और अंतिम सत्य यही है, क्यूं न मैं भी इसमें समा जाऊ..? यह चबुतरे की राख और मैं एकाकार होकर सदैव साथ रहें। शरीर बिल्कूल सुस्त सा....! मानो सिर्फ हाड़-मांस का पिंजड़ा हो..? कुछ इस तरह की हालत में एक-एक कर छोटी अस्थियों को स्टील के लोटे में डालते हुए उसके मन को पहाड़ सी पीड़ा घेर रखा था, हो भी क्यों न...? ये अस्थियां उसकी स्वर्गवासी माँ की थी, जिसकों गुज़रे अभी तीन दिन ही हुए थे। सबसे बड़ा बेटा होने के नाते विजय ने ही माँ की चिता को मुखाग्नि दी थी। कोई दो सप्ताह अस्पताल में बीमारी से जंग लड़ने के बाद माँ की मौत महामारी की वजह से हुई थी। विजय का दुःख तब और बड़ा हो गया जब रह रह कर बार-बार उसके ज़हन में ख्याल आ रहा था कि किस तरह अस्पताल में पलंग उपलब्ध नहीं था, शहर के सारे अस्पताल मरीजों से भरे पड़े थे..? तब अपने प्रभाव और पहचान का इस्तेमाल करते हुए मिनिस्टर के फोन लगाने पर अस्पताल में एक अदद पंलग मिल पाया था। प्रकृति का मज़ाक या प्रकृति से किये मज़ाक का परिणाम है कि सारी दुनिया इस समय महामारी की चपेट में....और हालत इतनी भयावह कि अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह नहीं, मौतें इतनी की शमशान में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं.....इस विकट समय में झुझते हुए इससे लड़ने के सिवा करें भी तो क्या...? पास खड़े दो छोटे भाई और साथ आये चाचा भी रूंवासे से चबुतरे के पास आकर अस्थियां बिनने में विजय की मदद करते हुए कहने लगे...बस....बस...कुछ खास अस्थियां ही चुनना है....बाकी राख समेटकर नदी में प्रवाहित करना पड़ेगी....जल्दी करों.....और लोग खड़े है....कितनी लाशे पड़ी हैं अंतिम संस्कार के लिए....? चलो, पंडित जी इंतज़ार कर रहे हैं घाट पर पिण्डदान और दुसरी अंतिम क्रिया करना है! विजय एक हाथ से लोटे को पकड़े अपनी धोती संभालते हुए चबुतरे से विलग होने की मुद्रा में होता है....लेकिन अंतरआत्मा उसे बार-बार कह रही हो जैसे कि अपनी माँ को यूँ छोड़कर न जा...? अगले पल खुद को संभालते हुए वह कहता है...चलो....और क्या सामान चाहिये पंडित जी को सब लाये हैं न...?, आटा...नारियल.....तेल...पत्ते....दीपक...अगरबत्ती...और जो भी लगना है...? विजय अपने दोनो छोटे भाई और चाचा के साथ शमशान घाट से नदी किनारे दुसरे घाट की और चल दिये कि तभी विजय के मोबाईल की घंटी बजती है। ट्रिन...ट्रिन....ट्रिन...ट्रिन... हेलो...., हाँ कौन....?, ‘‘मैं पंडित अनिल त्रिवेदी बोल रहा हूँ....यजमान आपकी माताजी का तर्पण नदी के घाट पर नहीं किया जा सकता....? कलेक्टर साहब के नये आदेश आए हैं.....सभी पंंिडतों को घाट पर कोई भी क्रियाविधी करने को मना किया गया है...? महामारी का हवाला देकर घरों से निकलने को रोका जा रहा हैं..? घाटों पर पुलिस का पहरा लगा दिया है...अब आप ही बताएं यजमान.....क्या किया जाये...?‘‘, ‘‘विजय चैंककर बोला.., क्या इसका कोई उपाय नहीं...?‘‘, ‘‘पंडित अनिल त्रिवेदी ने जवाब दिया.....क्या कलेक्टर और सरकार के फरमान का उल्लंघन करंेगे यजमान...?‘‘ देखा नहीं...? पुलिस घाट से पंडितों को उठा-उठाकर कैसे अपराधियों जैसे गाड़ी में ठूंसकर जेल भेज रही है.....? यजमान...ये तो जीते जी, हमारे तर्पण हो जाने जैसी स्थिति हो गई है.....? कुछ चिंता के भाव लेकर फिर बोला....आप चिंता न किजिये....पहले आप यहाँ आईये तो....! फिर कोई विचार कर रास्ता निकालते है। तभी विजय के छोटा भाई बोल पड़ा...रास्त क्या निकालेंगे.....माँ का तर्पण करना है...ये कोई तानाशाही है क्या...? हम अपनी माँ के तर्पण की क्रिया मुख्य घाट पर ही करेंगे...जहाँ करते हैं..! विजय भैय्या....देखो तो...ये भी कोई बात हुई..? विजय के मन में तो जैसे विरक्ति ने वास कर लिया था...? एक तो माँ से अत्यधिक लगाव और उस पर मौत के बाद की परेशानियाँ, मुश्किल भरा अंतिम संस्कार और अब तर्पण की क्रिया के लिए भी मनाही...? उदास मन से छोटे भाई को प्रतिक्रिया देते हुए....तु रूक मैं बात करता हँू कलेक्टर साहब से...। तर्पण करने वाले घाट की और जाते हुए चलते-चलते विजय के एक हाथ में लोटे मंे माँ की अस्थियाँ तो दुसरे हाथ से मोबाईल निकालकर कलेक्टर को काॅल लगाने कि कोशिश.....! ट्रिन....ट्रिन, ट्रिन...ट्रिन....

साथ चल रहे....चाचा और दोनों छोटे भाईयों ने कुछ गुस्से से पुछा.....?, क्या हुआ....कलेक्टर साहब मोबाईल नहीं उठा रहे....? उनका गुस्सा स्वाभाविक भी था। लेकिन सरकारी फरमान मानना भी जरूरी था....! महामारी भी एैसी फैली कि....न ठीक से जीने दे रही और न मरने के बाद सुकून ही नसीब...? तभी नासमझी का पर्दा आँखों से हटाते हुए चाचा ने कहा....विजय मंत्री जी को फोन लगाओ.....उन्हीं से कहो....माँ के अंतिम तर्पण की क्रिया करना है.....तो क्या करें...? विजय ने भी हाँ में अपना मुँह हिलाते हुए कहा...हम्म्म...! और दुसरा नंबर मंत्री जो डायल किया.....। ट्रिन...ट्रिन, ट्रिन....ट्रिन....उधर से मंत्री जी के पीए ने फोन उठाया....।

हैलो.....कौन....?

मैं विजय बोल रहा हँ...मंत्री जी से बात करवा दो अर्जेंट है...?

हां....एक मिनट, मंत्री जी दुसरे फोन पर हैं...अभी करवाता हँू...तभी मंत्री जी का मूंह अपने पीए की तरफ होता है और पुछते हैं...कौन है...?

जी....विजय जी है....आपसे अर्जेंट बात करना चाहते है....? 

लाओ.....मंत्री जी ने हाथ में मोबाईल लेकर.....हाँ, हेलो....बोलो विजय....क्या बात है.....

भैय्या....वो...माँ के तर्पण कि क्रिया करना है और महामारी की वजह से नदी के सभी घाट पर प्रतिबंध लगाया हुआ कलेक्टर साहब ने....प्लिज आप उनको बोल दिजिये......बस दस मिनट की क्रिया करना हैं....भैय्या कम से कम मरने के बाद कि ये क्रिया तो पुरी होना चाहिये....?

मंत्री जी,......ओह....क्या करें....महामारी ही ऐसी आई है...कि सभी जगह कई सारे प्रतिबंध लगाये गये है....फिर भी मैं एक बार कलेक्टर से बात करता हँू। 

जी भैय्या...।

उधर मंत्री जी ने कलेक्टर को फोन लगाया और......हैलो......कलेक्टर साहब....मंत्री बोल रहा हँू.....

ये मेरे परिवार के हैं विजय जी....इनकी माँ का देहावसान हुआ है और तर्पण वाली प्रक्रिया करना है.....घाट पर इन्हें रोका जा रहा है....क्या कोई प्रतिबंध लगाया हैं आपने...?

जी सर, एक्चुअली.....सरकारी आदेश है....मंत्रालय से नाटीफिकेशन सभी जिलों के कलेक्टर्स को पालनार्थ आएं है.....महामारी एक्ट के अंतर्गत.....एैसी सभी गतिविधियां बद कर दी जायें, जहां लोग एकत्रित होते हैं....इसलिए प्रतिबंध लगाया है सभी घाटों पर....।

मंत्री जी...., ओह....तो अब इसका क्या उपाय....मरने के बाद व्यक्ति इस क्रिया से भी वंचित रहेगा क्या...?

कलेक्टर...., नहीं...मंत्री जी आप उन्हें कहें कि ज्यादा भीड़ इकट्ठी न करें और ज्यादा गंदगी भी न करें...कम से कम आवश्यक सामग्री का ही उपयोग करें....और पंडित आनलाईन यह प्रक्रिया करवा सकता है...?

मंत्री जी..., ठीक है...नमस्कारकृ।

कलेक्टर का फोन बंद होते ही मंत्री जी ने अपने पीए को विजय को फोन लगाने को कहा।

हेलो....विजय भैय्या....मंत्री जी बात करेंगे....! 

हाँ, विजय....मैने कलेक्टर से बात की....हालत गंभीर हैं और मंत्रालय के आदेश हैं....महामारी की वजह से किसी को भी ऐसी किसी भी गतिविधी के लिए अनुमति नहीं दी जा रही है....तुम एक काम करों...पंिडत से कहो.....की मोबाईल पर विडियो काॅल से आनलाईन सारी प्रक्रिया करवा दे..?

विजय...., जी भैय्या....!

विजय तुरंत फोन कट करता है और पंडित को फोन लगाकर आनलाईन विडियों काॅल से प्रक्रिया करवाने को कहता हैं....। लेकिन उसके मन में हज़ार सवाल खड़े होने लगते हैं.....क्या एैसे आनलाईन तर्पण करने से किसी को मुक्ति मिलती है...? जब व्यक्ति आनलाईन पैदा भी नहीं होता....आनलाईन मरता भी नहीं....तो आनलाईन तर्पण से मुक्ति कैसे...?

विजय अपने छोटे भाईयों और चाचा के साथ चुपचाप घाट की और चल पड़ता है यह सोचते हुए कि ईश्वर किसी को ऐसी मौत न दे...? जन्म देने वाली माँ को ही जब मुक्ति नहीं दे सकते तो फिर हमकों कैसे मुक्ति मिलेगी।


कहानी- अंतिम तर्पण आनलाईन

लेखक - डाॅ. मोहन बैरागी


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