पेâसबुक मैत्री : दुर की राम राम : दंभियों से कैसे हो संबंध
पेâसबुक मैत्री यानी दुर की राम राम,क्या एैसा कहा जा सकता है,मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि पेâसबूक लोगो को जोड़ने का माध्यम है या फिर सिर्पâ दुर की राम राम करने के लिए है। मेरे साथ मेरे एक पेâसबुक मित्र की बातचीत से मुझे यही लगा,उन्होने मुझे उनके दंभी होने का एहसास करवाया। मैं नही समझ पाया कि पेâसबूक ने सीमाएं तोड़ी है या फिर गैप बनाया है या सिर्फ झूठ,नकलीपन,दिखावा,छलावा,यही सब कुछ है यहां। मैं मानता था कि पेâसबुक दुनिया के उन छ अरब से अधिक लोगो को जोड़ने का शसक्त माध्यम है जिनके साथ हम व्यवहारिक,व्यवसायिक,मैत्रीपूर्ण,दोस्ताना,या पारिवारिक भी संबंध रख सकते है।
लेकिन कल मेरे एक मित्र जिन्होने मुझे मेरे परीक्षण (मेरी पुरी जानकारी लेने के बाद)के बाद अपनी मित्र सुची में शामिल किया और अपनी स्वयं की पहचान को सुरक्षित रखा। पश्चात अगले दिन जब सामान्य कनर्वसेशन शुरू हुआ तो इन्होनें धीरे धीरे मेरा संपूर्ण परिचय लेकर तथा मेरे विचारों को जानकर अपना परिचय देना शुरू किया,जिसमें दंभ,अभिमान,और अपने बड़े होने का एहसास करवाया,मेरे ये मित्र भारत सरकार के एक बड़े उपक्रम में बड़े अधिकारी है,मुझे इन्होने अपना नाम,पद,उम्र,वेतन,कार्य स्थल,तथा वर्वâ प्रोफाईल भी बताया,उन्होने दंभी अंदाज में मुझसे पुछा और कहा कि वे गरीबों की सेवा के लिए डोनेशन देते है,क्या मै एैसा करता हॅू ?
उन्होनें कहा वे उन्मुक्त विचारों के नहीं है,यहां उन्मुक्त विचार से तात्पर्य स्वच्छंद होकर गरिमा अनुरूप सभी से अपनी बातों को, विचारो को शेयर करना तथा जितना संभव हो खुशियों का संचार किया जाना था,लेकिन मेरे इन मित्र का मानना है कि वे एैसा नही करते है तथा मैं गलत हूं,उन्होंने अपने उंचें पद और प्रतिष्ठित होने के प्रमाण के लिए मुझे बड़े समाचार पत्रों जैस टाईम्स आफ इंडिया तथा एक अन्य समाचार पत्र के कुछ लोगो का हवाला दिया कि मै उनसे पुछ सकता हुं,परंतु मै समझ नही पा रहा था कि इतथा दंभ और अभिमान किसलिए,मै साधारण सोच से सिर्पâ यह समझ और कह सकता था कि यदि हम पेâसबुक पर अपनी मित्र सुची बढ़ाते है और अच्छे लोगो का चयन करते है तब हम सब सभी से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करते है तथा सभी से मजबूत ओर स्थायी संबंध बनाने की चेष्टा करते है,कम से कम मैं तो एैसा ही करता हूँ। लेकिन इतना सब कुछ बताने के बाद भी पेâसबुक पर किसी की भी असली पहचान वैâसे कि जा सकती है,क्यूकि पेâसबुक मे करोड़ो लोगो के प्रोफाईलस है तथा आधे ज्यादा पेâक है,अब एैसे में यदि कोई अपना बखान करता भी है तो वैâसे माना जाय कि वो सही है या नही।
खैर में अपने अन्य सभी मित्रों से अपेक्षा करता हूं कि वे मेरे विचारों का सम्मान करेंगें,जिसमें सभी के लिए आदर है,मैं आपकी प्रतिष्ठा को नमन करता हूूं।
अंत में आपको बता दूं मैं जिनकी बात कर रहा हूं वे मेरी महिला मित्र है।
पेâसबुक मैत्री यानी दुर की राम राम,क्या एैसा कहा जा सकता है,मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि पेâसबूक लोगो को जोड़ने का माध्यम है या फिर सिर्पâ दुर की राम राम करने के लिए है। मेरे साथ मेरे एक पेâसबुक मित्र की बातचीत से मुझे यही लगा,उन्होने मुझे उनके दंभी होने का एहसास करवाया। मैं नही समझ पाया कि पेâसबूक ने सीमाएं तोड़ी है या फिर गैप बनाया है या सिर्फ झूठ,नकलीपन,दिखावा,छलावा,यही सब कुछ है यहां। मैं मानता था कि पेâसबुक दुनिया के उन छ अरब से अधिक लोगो को जोड़ने का शसक्त माध्यम है जिनके साथ हम व्यवहारिक,व्यवसायिक,मैत्रीपूर्ण,दोस्ताना,या पारिवारिक भी संबंध रख सकते है।
लेकिन कल मेरे एक मित्र जिन्होने मुझे मेरे परीक्षण (मेरी पुरी जानकारी लेने के बाद)के बाद अपनी मित्र सुची में शामिल किया और अपनी स्वयं की पहचान को सुरक्षित रखा। पश्चात अगले दिन जब सामान्य कनर्वसेशन शुरू हुआ तो इन्होनें धीरे धीरे मेरा संपूर्ण परिचय लेकर तथा मेरे विचारों को जानकर अपना परिचय देना शुरू किया,जिसमें दंभ,अभिमान,और अपने बड़े होने का एहसास करवाया,मेरे ये मित्र भारत सरकार के एक बड़े उपक्रम में बड़े अधिकारी है,मुझे इन्होने अपना नाम,पद,उम्र,वेतन,कार्य स्थल,तथा वर्वâ प्रोफाईल भी बताया,उन्होने दंभी अंदाज में मुझसे पुछा और कहा कि वे गरीबों की सेवा के लिए डोनेशन देते है,क्या मै एैसा करता हॅू ?
उन्होनें कहा वे उन्मुक्त विचारों के नहीं है,यहां उन्मुक्त विचार से तात्पर्य स्वच्छंद होकर गरिमा अनुरूप सभी से अपनी बातों को, विचारो को शेयर करना तथा जितना संभव हो खुशियों का संचार किया जाना था,लेकिन मेरे इन मित्र का मानना है कि वे एैसा नही करते है तथा मैं गलत हूं,उन्होंने अपने उंचें पद और प्रतिष्ठित होने के प्रमाण के लिए मुझे बड़े समाचार पत्रों जैस टाईम्स आफ इंडिया तथा एक अन्य समाचार पत्र के कुछ लोगो का हवाला दिया कि मै उनसे पुछ सकता हुं,परंतु मै समझ नही पा रहा था कि इतथा दंभ और अभिमान किसलिए,मै साधारण सोच से सिर्पâ यह समझ और कह सकता था कि यदि हम पेâसबुक पर अपनी मित्र सुची बढ़ाते है और अच्छे लोगो का चयन करते है तब हम सब सभी से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करते है तथा सभी से मजबूत ओर स्थायी संबंध बनाने की चेष्टा करते है,कम से कम मैं तो एैसा ही करता हूँ। लेकिन इतना सब कुछ बताने के बाद भी पेâसबुक पर किसी की भी असली पहचान वैâसे कि जा सकती है,क्यूकि पेâसबुक मे करोड़ो लोगो के प्रोफाईलस है तथा आधे ज्यादा पेâक है,अब एैसे में यदि कोई अपना बखान करता भी है तो वैâसे माना जाय कि वो सही है या नही।
खैर में अपने अन्य सभी मित्रों से अपेक्षा करता हूं कि वे मेरे विचारों का सम्मान करेंगें,जिसमें सभी के लिए आदर है,मैं आपकी प्रतिष्ठा को नमन करता हूूं।
अंत में आपको बता दूं मैं जिनकी बात कर रहा हूं वे मेरी महिला मित्र है।
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