Dr.Mohan Bairagi

Friday, October 13, 2023

मीत मिलता ही नहीं है, मीत मिलता ही नहीं

 मीत मिलता ही नहीं है, मीत मिलता ही नहीं


प्रेम में गर सिक्त है तो 

प्रेम में ही रिक्त बंधु

झोंकना खुद को पड़ेगा

तुझकों भी अतिरिक्त बंधु

बाद उपवन के उजड़ऩे, पुष्प खिलता ही नही

मीत मिलता ही नहीं है, मीत मिलता ही नही


चाँदनी जो ये धवल है

स्वप्र नैनों में नवल है

मन की मछली फडफ़ड़ाती

डुब जाने को विकल है

आवरण अखरोट दुनिया का यहां छिलता नही

मीत मिलता ही नहीं है, मीत मिलता ही नही


हमने नापा पग पगों से

प्रेम की तिरछी गली को

रोंदते है हमने देखा

प्रीत की नन्ही कली को

प्रेम का फटता जो कपड़ा फिर ये सिलता ही नही

मीत मिलता ही नहीं है, मीत मिलता ही नही

@डॉ.मोहन बैरागी

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