लय के वलय में घूमता मनुष्य !
स्वांस के आरोह अवरोह से मनुष्य का जीवन चलता है तथा स्वांस के इसी गतिक्रम से मनुष्य जीवित रूप में समाज मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है।
अर्थात आरोह-अवरोह के क्रम को, जो लयबद्ध होकर निरंतर चलता है, जिससे मनुष्य के जीवित होने की अनुभूति स्वयं तथा दूसरों को होती है, जिससे लयात्मक होने का प्रमाण मिलता है, यही लय है।
मनुष्य के मश्तिष्क की स्थिति यह होती है कि जब किसी खास क्रम में कोई चेतना उत्पन्न होती है तब वह किसी रिदम में अनुभूत होती है और यही रिदम या लय उसे आत्मसंतुष्टि की और लेकर जाती है और आत्मसंतुष्ट मनुष्य जीवन को मधुरम तल्लीनता के जीता है।
जीवन के कथानक और कथावस्तु में लय न हो तो जीवन नीरस हो जाता है। मनुष्य का जीवन प्रारम्भ से ही लयबद्ध रहा है। उत्पत्ति तथा विकास के क्रम अथवा उसके आदर्श व यथार्थ को तात्कालिक रूप से नजरअंदाज कर दें तो भी यह स्पष्ट है कि भौतिक वस्तु को नकार कर हम चेतना की तरफ दृष्टिगत होते है तब यही पाते है कि जीवन अथवा जैविक शरीर से संयोजित मनुष्य प्रत्येक चरण व स्तर पर लयबद्ध है।
हिंदी साहित्य में भी लय को महत्वपूर्ण माना है। साहित्य का पद्य भाग तो लय के बिना अधूरा ही माना जाता है, कमाल यह कि परिभाषा के मान से व्याकरण के मानकों को भंग कर सृजित की गई रचना को पद्य (लयबद्ध) की श्रेणी में रखा जाता है, और व्याकरणगत फ्रेम में लिखी या कही गयी रचना गद्य का हिस्सा हो जाती है, जिसमे लय की अनुपलब्धता होती है।
गहनता व गंभीरता से ध्यान दें तो हम पाते हैं कि हमारे वेद व पुराण तथा ऐतिहासिक/पौराणिक ग्रंथों से भी समझ आता है कि लय के बिना मानव जीवन की कल्पना ही व्यर्थ है।
वेद की ऋचाओ से शुरू कर या वाल्मीकि से लेकर सुर, कबीर, मीरा तुलसी के साहित्य से जब दुनिया परिचित हुई या आधुनिक मनुष्य ने जब इनके कहे को जाना तब यह माना कि वाकई सबकुछ लयबद्ध है। रामचरित मानस से लेकर महाभारत में लयबद्धता दिखाई देती है, या कालिदास की शकुंतला से लेकर आधुनिक गद्य कविताएं भी जीवन के लय को प्रदर्शित करती है। इसी लय के तारतम्य में जीवन के बनने की कुंजी है। मूलतः यह आज का यथार्थवाद भी है। इसी यथार्थ की वजह से दुनियां/ धरती की प्रत्येक वस्तु अपने लय में सुचारू रूप से संचलित हो रही है।
मनुष्य के जीवनक्रम में उसके जीवित रहने को आवश्यक यह लय उसके द्वारा बनाये रिश्तों अथवा जन्मजात प्राप्त रिश्तों में भी आवश्यक होती है। यह लय ही है जो रिश्तों को मधुरता प्रदान करती है तथा उन्हें जीवंत बनाती है। रिश्तों में यदि लय का तानाबाना बिगड़ता है तब लय भंग होती है और रिश्तें टूटन की और बढ़ने लगते है। आधुनिक समाज मे एक साहित्यकार द्वारा कहानी लिखी गयी जिसका नाम था "अलग्योझा" ।
इस कहानी के शीर्षक का तात्पर्य है रिश्तों का या परिवार या संयुक्त परिवार का टूट जाना ? वर्तमान दौर में आत्मनिष्ठ होने की चेष्ठा में हर व्यक्ति या परिवार एक दूसरे से तथा निकटतम रिश्तों से भी विलग होते जा रहे है। यह विलगता या टूटन से दूरियां इस तरह से तय हो रही है,जैसे मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ हूँ और बाकी रिश्ते और विचार मुझ पर अनावश्यक रूप से थोपे जा रहे हैं ? जुड़ाव की अपेक्षा टूटन ज्यादा दिखाई देती है ,और यह टूटन भी वर्तमान संदर्भ में लय के टूटने को दर्शाती है। स्पष्ट है कि प्रकृति में, चल-अचल में, संसार में या मनुष्य जीवन में लय भंग होगी तो गीत नही बनेगा, और जीवन एक सुरीले गीत का नाम है।
अंततः प्रयास हो, सुर, ताल और लय को साधकर सुरीले गीत सा जीवन हो।
©डॉ.मोहन बैरागी
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