हर चेहरा खिला हुआ है
हर एक यहाँ अनुरागी
है सबका मन बैरागी
त्याग तपस्या पत्थर हो गए
भ्रम की चादर बुनने वाले
वो जी गए मधुबन में जो थे
खिली कलिया चुनने वाले
दुनिया के हो या के त्यागी
है सबका मन बैरागी
कितना बांध रखो चंचल मन
उड़ता हर पल कोई चितवन
रोक सकता न कोई इसको
कैद जो थी चिड़िया वो भी
दुनिया के पिंजरे से भागी
है सबका मन बैरागी
प्रेम मिला है तुझको मुझको
तो ओढ़े क्यों तम झुरमुट को
जी ले इसको भीतर बाहर
शाम सुबह के रात दोपहर
तो केवल एक तू सोभागी
है सबका मन बैरागी
चाहत सबकी मानव या देव
सृष्टि का सारा सार एकमेव
राग में जिया है वो बैरागी
तभी राधा के उस प्रेम का
देखो कान्हा भी है अनुरागी
है सबका मन बैरागी
©डॉ. मोहन बैरागी
15/5/2021
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