Dr.Mohan Bairagi

Monday, May 17, 2021

geet.....मैं गंगा सा निर्मल जल हूँ।

 मैं गीतों का राजकुंवर हूँ

शिलालेख हूँ इतिहासों का

याद नही में अफसानों का

व्याकरण मैं दिनमानो का

मैं भटका बादल हूँ

मैं गंगा सा निर्मल जल हूँ।


मैं मानस की चोपाई सा

नही विरुदावली गाई सा

पीर नही मैं कोलाहल की

प्रीत हूँ हर मन हलचल सी

मैं खुशबू संदल हूँ

मैं गंगा सा निर्मल जल हूँ।


सबके मन की पीड़ा को गाता

शब्दों का व्यापार मुझे न आता

मैं तुम्हारी अनकही बोली हूँ

मैं घर आंगन बनी रंगोली हूँ

मैं तारा पुच्छल हूँ

मैं गंगा सा निर्मल जल हूँ।


पगडंडी पर चलता रहा अकेला

और आगे पीछे दुनिया का मेला

पर मोल लगाया जिसने मेरा

क्या समझे दुनिया का फेरा

आंसू का छल छल हूँ

मैं गंगा सा निर्मल जल हूँ।

©डॉ. मोहन बैरागी

16/5/2021

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