Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, May 8, 2018

लक्ष्य साधे है धनुष सब ओर मेरी वो खड़े हैं
योजना में रखना होगा मुझको निर्णय जो कड़े है

रण की भेरी बज चुकी अब
युद्ध का पहला चरण है
सामने सब वो खड़े है
बौना जिनका आचरण है

रीति प्रीति भूलकर अब रण के नियम पालना
सामने भी तो सारे अपने संधान करने पर अड़े है

कुल की निष्ठा को निभाते
अश्वरथ पर द्रोण दिखते
ज्यों निराश्रित एकलव्य हो
आप ही सब विद्या सीखते

बूत बनाये किसके अब आकार किसका ढालना
इस युग के एकलव्यों ने खुद के भीतर द्रोण गढ़े है

कौन अपने क्या पराये
सोचना अब व्यर्थ है
मीन की आंखों को देखने
अब भी अर्जुन खुद समर्थ है

सोचा जैसे ही लड़ना सूर्य समय का ढल गया
रात में फिर सोचेंगे क्या हम काटते अपनी जड़ें है
©डॉ. मोहन बैरागी 15/04/18

No comments:

Post a Comment