Dr.Mohan Bairagi

Tuesday, May 8, 2018

बोल कर देखिये,देख कर बोलिये
जो है दिल में छुपे राज़ सब खोलिये

भावनाएं हृदय की कहो तो कभी
सारी अनुकूल है ये फिजायें अभी
गांठ रेशम की है नेह से खोल दो
है शिकायत कोई मुँह से बोल दो
हो रहा हल्का मन हवा से अधिक
प्रेम या द्वेष है देखकर तोलिये
बोलकर देखिये......

अधिकता लिए खालीपन रोज एक
रोकती राह फिर रिक्तता रोज एक
दुख के हालात या सुख का समय
नियति ये नही करते हम ही है तय
मुस्कुराहट परोसें खुशनुमा नैन से
देखिये कौन फिर साथ संग हो लिए
बोलकर देखिये.....

यादें तन्हा उकेरे हर घड़ी कोई चित्र
आप खुद ही नही रहे खुद के मित्र
मित्रता भी निभाओ मगर प्यार से
मिल के रहना जरूरी है संसार से
आंसुओ से कहो आंख में ही रहे
जो बह चुके उनसे गम धो लिये
बोलकर देखिये.....
©डॉ मोहन बैरागी, 18/4/18

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