एक ऋण ज़िन्दगी का चुकाना पड़ा
आस का एक तृण चुन उठाना पड़ा
खुश हुए जब निरापद सी सांसे मिली
निर्विघ्न धड़कने सुन सब बहारें खिली
गीत खुशियों के आंगन में बजने लगे
उत्सवों की नियति को निभाना पड़ा
आस का एक तृण....
उम्र बढ़ने लगी आकार बढ़ता गया
धरा से वो आसमां को चढ़ता गया
संबंधों की उलझनें भी आने लगी
ताल से मेल फिर यों बिठाना पड़ा
आस का एक तृण....
था पता ज़िन्दगी है समय के सहारे
पल मिले कितने कितने कैसे गुज़ारे
फिर भी जीवन था जीना जरूरी हमें
सारी शर्तो को हाथों से मिटाना पड़ा
आस का एक तृण....
निभाये सभी रिश्ते हमको मिले जो
कर्म सारे किये थे विधि ने लिखे जो
उपहार ही है ये जीवन मेरा चराचर
उपहार हमको गीतों सा गाना पड़ा
आस का एक तृण...
©डॉ.मोहन बैरागी📞9424014366
25/12/2017
आस का एक तृण चुन उठाना पड़ा
खुश हुए जब निरापद सी सांसे मिली
निर्विघ्न धड़कने सुन सब बहारें खिली
गीत खुशियों के आंगन में बजने लगे
उत्सवों की नियति को निभाना पड़ा
आस का एक तृण....
उम्र बढ़ने लगी आकार बढ़ता गया
धरा से वो आसमां को चढ़ता गया
संबंधों की उलझनें भी आने लगी
ताल से मेल फिर यों बिठाना पड़ा
आस का एक तृण....
था पता ज़िन्दगी है समय के सहारे
पल मिले कितने कितने कैसे गुज़ारे
फिर भी जीवन था जीना जरूरी हमें
सारी शर्तो को हाथों से मिटाना पड़ा
आस का एक तृण....
निभाये सभी रिश्ते हमको मिले जो
कर्म सारे किये थे विधि ने लिखे जो
उपहार ही है ये जीवन मेरा चराचर
उपहार हमको गीतों सा गाना पड़ा
आस का एक तृण...
©डॉ.मोहन बैरागी📞9424014366
25/12/2017
No comments:
Post a Comment