Dr.Mohan Bairagi

Monday, August 22, 2022

अस्तित्व की तलाश और स्वयं से अनजाने हम...! लेखक :- डॉ. मोहन बैरागी

 


अस्तित्व की तलाश और स्वयं से अनजाने हम....!

लेखक :- डॉ.मोहन बैरागी

हम कौन है...? क्या हैं...? हमारा अस्तित्व क्या है....? मनुष्य के मन-मस्तिष्क में यह बात प्रारम्भ से ही बलवती रही है। क्या हमारे होने का कोई अर्थ है? किसने जीवन दिया।जीवन की सफलता और सार्थकता सभी के लिये अलग-अलग है। इस पहेली को खोजने के लिये कुछ लोग मानते है कि धर्म से जुड़ना ही जीवन का अर्थ है, कुछ लोग दान-पुण्य में तो कुछ सोचते है कि गरीबों की सेवा में तो कुछ शांति फैलाने,कुछ हिंसा में शांति ढूंढते है।यही अस्तित्ववाद है। मूलतः जिस तरह के काम करने में खुशी मिलती हो, वही जीवन का अर्थ है और वही अस्तित्ववाद है। पौराणिक कथानकों में भी मनुष्य की उत्पत्ति और विकास की धारणाओं के साथ-साथ उसके अस्तित्व विषयक आख्यान उल्लेखित है। प्रारम्भ में मनुष्य का मानना था कि जन्म से पहले ही सबकुछ तय हो जाता है। जीवन का उद्देश्य पूर्व से तय है, और यही बात कई यूनानी दार्शनिक और प्लेटो, अरस्तु जैसे दार्शनिक भी मानते रहे। 18वीं-19वीं सदी में इसके विपरीत नकारवाद की शुरुवात होने लगी। इस विचार को प्रस्तुत करने में निस्तशे का नाम प्रमुख है। एक और मनोवैज्ञानिक सार्त कहते है कि पैदा होने के बाद हमे अपने जीवन की रचना खुद करनी पड़ती है, इनका मानना है कि जन्म के बाद मनुष्य मकसद खोजने की दिशा में बढ़ता है। मूल्यों, गुणों-अवगुणों का निर्धारण मनुष्य अपने चयन या निर्णयों से कर आगे का रास्ता तय करता है। इसे एकसिस्टेन्स कहा जाता है,जबकि आम मनुष्य की दृष्टि में ये क्रांतिकारी विचारधारा रही है।

लेकिन आधुनिक युग में इस संकल्पना की अलग-अलग परिभाषायें या मान्यताएं मिलतीं है। विज्ञान के अनुसार धरती पर एक पारिस्थितिकी तंत्र काम करता है, जिसमें हर प्राणी अपने अस्तित्व को बनाएं रखने के लिए अपने से छोटे जीव का ग्रास करता है। पर बात तब भी प्रश्न रूप में ही सामने खड़ी होती है कि आखिर कोई किसी का भी ग्रास करें, जो अंतिम प्राणी भी छूट जाता है, वह कौन है ...? उसकी पहचान क्या है...? उसके स्वरूप या आकार-प्रकार जो भौतिक युग में है, का उद्देश्य क्या है..? उसको इस तरह, इस स्वरूप में किसने बनाया है..? क्या किसी...अलौकिक शक्ति ने बनाया है..? तो फिर वो अलौकिक शक्ति कौन है....उसको किसने बनाया....? सवाल कई हैं जिनके उत्तर समय-समय मनीषियों, चिंतकों तथा विचारकों ने दिये है।  

मुझे लगता है कि आधुनिक युग मे प्राणियों के मष्तिष्क में उत्पन्न विचार, जो भाषा के माध्यम से संप्रेषित होकर परस्पर अस्तित्व का निर्माण करते है वही अस्तित्व है।  आधुनिक युग में कई दार्शनिको ने अस्तित्व की अलग-अलग व्यख्या की और अस्तित्ववाद के सिद्धान्त दिए। 

एक धारणा है कि प्राणियों का संचालन नियति करती है। इस पर निस्तशे नामक महान दार्शनिक ने कहा कि नियति हमारा संचालन नही करती, बल्कि हमारे जीवन का संचालन हम स्वयं करते है। निस्तशे ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि खुद के हो जाओ,सेल्फ कंसंट्रेशन रखो या यूं कहें कि व्यक्तिवाद अपना लो। फ्रेंच फिलॉसफर अल्बेयर कामों सहित किरकेकार्थ,दोस्तोस्की जैसे कई विद्वान दार्शनिको ने अस्तित्ववाद के सिद्धान्त दिए, हालांकि ये सभी मनोवैज्ञानिक पूर्व से ही अस्तित्ववादी थे।

सार यह कि मस्त रहें, खुश रहें, खुशियां बांटे...तब आपके अस्तित्व का निर्माण स्वयं हो जाएगा।

©डॉ.मोहन बैरागी

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