Dr.Mohan Bairagi

Monday, April 16, 2018

यक्ष प्रश्नों के तुम्हे मैं दे नही उत्तर सकूँगा
अवसान आंसुओं का है यही बस मान लो

शब्द लेकर अर्थ खिंचे रश्मियों पर धूप की
सूरज भी आँख मीचे अनमने इस रूप की
मौन पर्वत कब दहाड़े है किसी की पीर पर
कौन बोला है कब यहां उर्मिला के धीर पर
युग की टीस यही है अब इसको मान लो
अवसान आंसुओं का.....

द्वार पर ताले दरख्तों फूटते छाले यहाँ पर
ड्योडीयां सुनी परन्तु श्वान पाले मकां पर
रंग गहरा पड़ गया अब आंगनों दीवार का
खो गया जाने कहाँ था रंग वो जो प्यार का
मान के बदले मिला है तुम्हे अपमान लो
अवसान आंसुओं का.....

अब वेद से ज्ञानी हुए सब यहाँ पर देखिये
खो गया है मिला क्या अपनी रोटी सेकिये
भाव भीतर तक भरे पर भावना कोई नहीं
छद्म खुशियां ओढ़े रहते पर साफगोई नहीं
चेहरे पर चेहरे लगायें है सभी ने जान लो
अवसान आंसुओं का.....

है दिवंगत स्वप्न चढ़ते जिंदगी के व्यास पर
जागने सोने का अंतर देह के विन्यास पर
चेतना सोती नही जब शून्य के आकार पर
दीप भीतर का तुम्हारे है नहीं अधिकार पर
हृदय में जल रहे इस दीप पर अभिमान लो
अवसान आंसुओं का.....
©डॉ.मोहन बैरागी 📞 9424014366

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