Dr.Mohan Bairagi

Monday, April 16, 2018

चलो के तन्हाईयो से बात करते है
कभी गुमसुम कभी उदास
अकेली या कभी भीड़ में
मन के भीतर और बाहर के निर्वात तक
सूक्ष्म बिंदु पर बैठकर विचरती
नहीं पहुंचती जो किसी मंज़िल तक
धीरे धीरे होती अभ्यस्त
खुद से बतियाने की
शायद,मुक्कमल हो
बात करने से
और मुस्कुरा दे
शब्द तो हैं नहीं तन्हाइयों के पास
निःशब्द होकर मौन से बोलती
चलो के तन्हाइयों से बात करते है
........
चलो के परछाइयों से बात करते है
पीछा करती रोशनी के विपरीत
अक्स अधूरे बनाती जब तब
अस्तित्वहीन होकर भी
आकार की आकांक्षा में
चयन का अधिकार नहीं जिसको
निरुद्देश्य विचरती
चाहती जीवन
शायद
बोल कर तो देखें
करेगी बात
तो चलो के परछाइयों से बात करते हैं
©डॉ. मोहन बैरागी 📞9424014366
31/03/18

No comments:

Post a Comment