लक्ष्य साधे है धनुष सब ओर मेरी वो खड़े हैं
योजना में रखना होगा मुझको निर्णय जो कड़े है
रण की भेरी बज चुकी अब
युद्ध का पहला चरण है
सामने सब वो खड़े है
बौना जिनका आचरण है
रीति प्रीति भूलकर अब रण के नियम पालना
सामने भी तो सारे अपने संधान करने पर अड़े है
कुल की निष्ठा को निभाते
अश्वरथ पर द्रोण दिखते
ज्यों निराश्रित एकलव्य हो
आप ही सब विद्या सीखते
बूत बनाये किसके अब आकार किसका ढालना
इस युग के एकलव्यों ने खुद के भीतर द्रोण गढ़े है
कौन अपने क्या पराये
सोचना अब व्यर्थ है
मीन की आंखों को देखने
अब भी अर्जुन खुद समर्थ है
सोचा जैसे ही लड़ना सूर्य समय का ढल गया
रात में फिर सोचेंगे क्या हम काटते अपनी जड़ें है
©डॉ. मोहन बैरागी 15/04/18
योजना में रखना होगा मुझको निर्णय जो कड़े है
रण की भेरी बज चुकी अब
युद्ध का पहला चरण है
सामने सब वो खड़े है
बौना जिनका आचरण है
रीति प्रीति भूलकर अब रण के नियम पालना
सामने भी तो सारे अपने संधान करने पर अड़े है
कुल की निष्ठा को निभाते
अश्वरथ पर द्रोण दिखते
ज्यों निराश्रित एकलव्य हो
आप ही सब विद्या सीखते
बूत बनाये किसके अब आकार किसका ढालना
इस युग के एकलव्यों ने खुद के भीतर द्रोण गढ़े है
कौन अपने क्या पराये
सोचना अब व्यर्थ है
मीन की आंखों को देखने
अब भी अर्जुन खुद समर्थ है
सोचा जैसे ही लड़ना सूर्य समय का ढल गया
रात में फिर सोचेंगे क्या हम काटते अपनी जड़ें है
©डॉ. मोहन बैरागी 15/04/18
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