मैं महकता उन सांसों मे,तुम चहकती इस धड़कन में
जज्.बातों से बातें होती,अरमानों से मुलाकातें होती
स्पर्श संवेदनाओं के होते....
कुछ तो मोल लगाती मेरे अस्तित्व का
लेकिन तुमने सिर्पâ अपने लिए चुना सिर्पâ?
मै नहीं बन पाया किसी भी रूप में तुम्हारे लायक
क्यूंकि मैं अपनी ़जमीन को नही छोड़ पाया
मूझे अपने सही होने का गर्व था,
लेकिन तुमने मेरे अस्तित्व का झंकझोर दिया,
शायद सच हो तुम,किसी के भी तो काम का नही मेरा अस्तित्व
क्यूंकि मै नही औरो के जैसा
क्यूंकि मुझमें झूठ,फरेब,धोखा,और अहंकार नही था,
नहीं तो शायद मै भी होता आज तुम्हारे साथ
मोहन बैरागी
२५/०६/२०१४
जज्.बातों से बातें होती,अरमानों से मुलाकातें होती
स्पर्श संवेदनाओं के होते....
कुछ तो मोल लगाती मेरे अस्तित्व का
लेकिन तुमने सिर्पâ अपने लिए चुना सिर्पâ?
मै नहीं बन पाया किसी भी रूप में तुम्हारे लायक
क्यूंकि मैं अपनी ़जमीन को नही छोड़ पाया
मूझे अपने सही होने का गर्व था,
लेकिन तुमने मेरे अस्तित्व का झंकझोर दिया,
शायद सच हो तुम,किसी के भी तो काम का नही मेरा अस्तित्व
क्यूंकि मै नही औरो के जैसा
क्यूंकि मुझमें झूठ,फरेब,धोखा,और अहंकार नही था,
नहीं तो शायद मै भी होता आज तुम्हारे साथ
मोहन बैरागी
२५/०६/२०१४
बहुत बढ़िया
ReplyDeletedhanyawad Dr. monika sharma ji
Deletebhaut ..bdiya hai ................
ReplyDeletedhanyawad sanjay ji
Deletehttp://sanjayjoshisajag.blogspot.in/...dekhe/aur jude
ReplyDeletebahut badiya
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